देहरादून : ट्रस्टीशिप का सिद्वान्त अनेक समस्याओ का समाधान देता है। ट्रस्टीशिप में मै और मेरा पन का भाव समाप्त हो जाता है, इसके कारण हम अनेक जिम्मेदारी से मुक्त हो जाते है। गृहस्थीपन का भाव हमें जिम्मेदारी के बोझ से दबा देता है। गृहस्थी व प्रवृति की विस्मृति ही ट्रस्टीशिप है।
गृहस्थी के विपरीत ट्रस्टीशिप में हम अपने को जहाँ चाहे, जैसा चाहे वैसे ही परिवर्तन ला सकते है। स्वंय में परिवर्तन लाने के लिए, परिवर्तन शक्ति की आवश्यकता होती है। परिवर्तन शक्ति की सहायता से कैसा भी वायू मण्डल हो, कैसी भी परिस्थिति हो हमारे स्व की स्थिति बनी रहती है। स्व की स्थिति की सहायता से हम वायुमण्डल, वातावरण और परिस्थिति को परिवर्तित कर सकते है।
हर चीज को सम्भालने के लिए ट्रस्टी नियुक्त होता है, उसी प्रकार अपने का सम्भालने के लिए ट्रस्टी बनना होगा। मै ट्रस्टी बन कर हर चीज को सम्भालने का निमित्त बना हॅू। ट्रस्टी में मेरापन नही होता है और प्रवृति मार्ग की वृत्ति बिलकुल नही होती है।
हमें समय प्रति समय अनुभव करना है कि हम निरन्तर उॅची स्टेट पर जा रहे है। यदि अपनी स्थिति व वृत्ति को उॅचा नही किया तब अपने में परिवर्तन नही ला सकते है। हमारा उद्देश्य प्रवृतिपन से दूर रह कर ट्रस्टी बन करना है और गृहस्थी की वृत्ति से परे अवस्था में चाल चलन रखना है। ट्रस्टीशिप में अलौकिक चाल चलन रहती है। अलौकिक चीज सभी को स्वतः आकर्षित करती है।
हमारी सूरत का प्रभाव तभी दिखेगा जब चलते फिरते ऐसी श्रेष्ठ स्थिति बने रहे जो अपने चारो ओर की वृत्ति को अपनी ओर आकार्षित कर सके। जैसे साधारण बात में भी रायॅल फैमिली जो एक्टिविटी करती है, उसे देकर लोग स्वतः समझ जाते है कि इनका सम्बन्ध रायॅल फैमिली से है। इस प्रकार हमें भी रायॅल चाल चलन रख कर अपनी वृत्ति को पावॅरफुल बनाना है।
हम विश्व परिवर्तन की डेट ना देखे बल्कि स्वंय के परिवर्तन का समय निश्चित कर लें। स्वंय परिवर्तन से विश्व परिवर्तन स्वत हो जाता है। हमें अपने अन्दर हिम्मत और शक्ति जमा करनी है, जिससे किसी भी वातावरण में जाना पडे़, वा परिस्थिति हमें हिला ना सके। अपनी स्थिति को एकरस, अटल और अचल बनाने का अभ्यास करना है।
वायुमण्डल ठीक होने का इन्तजार न करें, क्योकि दिन प्रतिदिन वायुमण्डल बिगडने वाला ही है। इसलिए स्वयं में परिवर्तन लाने का प्रयास करें। किचड़ में रहते हुए कमल बने रहने पर, हम यह नही कहगे कि बात ही ऐसी थी, जिसके कारण अवस्था उपर नीचे हो गयी।
चाहे प्रकृति द्वारा या परिवार द्वारा कोई परीक्षा है, कोई परिवर्तन आये, उस स्थिति में भी अचल अडोल रहना है। वैसे भी जीवन में परीक्षाएं बहुत आनी है, जीवन का पेपर तो होना ही है। जैसे-जैसे अन्तिम फाइनल रिजल्ट के समीप आते है वैसे-वैसे समय प्रति समय प्रैक्टिकल पेपर स्वतः होता रहता है।
जीवन का पेपर पहले से बताये गये टाईम टेबल के अनुसार नही आता है, आटोमैटेकली समय प्रति समय पेपर आता रहता है। पेपर में पास होने के लिए हिम्मत रखनी होती है, अंगद के समान अपने बुद्वि योग को हिलने नही देना है।
अव्यक्त महावाक्य बाप दादा मुरली, 12 जुलाई 1972
लेखक : मनोज श्रीवास्तव, सहायक निदेशक सूचना एवं लोकसम्पर्क विभाग उत्तराखंड देहरादून
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