देहरादून : वर्तमान समय की विशेषताओं को जानते हुए अपने में अपनी शक्तियो को जागृत करना होगा। इसके लिए वर्तमान समय की विशेषताओं को अपने भीतर देखने का प्रयास होना चाहिए चेक करे कि यह विशेषतांए समय में ज्यादा है कि स्वयं में कम है। स्वयं में यदि अन्तर है तो कितना अन्तर है। चेक करे कि हम पावरफुल है अथवा समय पावरफुल है।
यदि हम कहते ही कि यह होना चाहिए तब हमारे और दुनियावालों में कोई अन्तर नही रह जाता है। क्योकि ऐसा होना चाहिए, या होना चाहिए, यह तो दुनियावाले कहते ही रहते है। यदि हम भी वही कहने लगे जो दुनिया वाले कहा रहे है तब हमारे और दुनियावालों के बीच कोई अन्तर नही रह जाता है। दुनियावाले कहते है, चाहिए-चाहिए, लेकिन विशेष व्यक्ति कभी चाहिए शब्द का प्रयोग नही करता है बल्कि जो होना चाहिए उसे करके दिखाता है।
जो सदैव मगन में होगा वह कभी विघ्न में नही होगा। क्योकि मिलन विघ्न को हटा देती है। इसलिए मगन अवस्था विघ्न विनाशक बना देती है। मिलन को ही लगन कहते है। हम अपना लक्ष्य श्रेष्ठ व्यक्ति बनने का रखते है। प्रश्न है कि लक्ष्य श्रेष्ठ रखते है, तब पुरूषार्थ साधारण क्यो करते है। जब लक्ष्य श्रेष्ठ है तब लक्षण साधारण व्यक्ति का क्यो है।
लक्ष्य रखने वाले अपने लक्ष्य को क्यो भूल जाते है। किसी विघ्न का निवारण करने की शक्ति हममे कम क्यों है। श्रीमत पर चलने वालों का जैसे लक्ष्य होता है वैसे ही लक्षण होते है। यदि लक्ष्य श्रेष्ठ है और लक्षण साधारण है तब इसके कारण हम अपने विध्नों का निवारण नही कर पाते है।
विघ्नों का निवारण नही कर पाने का प्रमुख कारण शक्ति की कमी है। इसके लिए हमें अपनी निर्णय शक्ति को ठीक रखनी होगी। क्योकि जब हम निर्णय नही कर पाते है तब निवारण भी नही कर पाते है। विघ्नों का निवारण नही कर पाने के कारण किसी न किसी आवरण के वश में आ जाते है।
निर्णय शक्ति को बढाने का साधन अपनाना होगा। जैसे सोने को परखने की कसौटी से जान लेते है कौन सा सोना सच्चा है अथवा झूठा। इसी प्रकार अपने निर्णय शक्ति को बढाने वाले कसौटी को देखे। यदि कोई कर्म करें या संकल्प करें तब चेक करें कि यह यथार्थ है अथवा अयथार्थ, व्यर्थ है या सामर्थ है इस कसौटी पर जो भी संकल्प या कर्म करेगे वह स्वत ही श्रेष्ठ होगा।
इस सहज युक्ति को भूलने के कारण विघ्नों से मुक्ति नही प्राप्त कर पाते है, जिसके कारण घोखा खा जाते है। युक्ति को सही ढ़ंग से यूज करने पर मुक्ति मिल जाती है। चाहे संकल्प के तूफान हो या सम्बन्ध के तूफान हो अथवा प्रकृति के तूफान हो उससे मुक्ति पाने का प्रमुख उपाय, सही युक्ति को अपनाना है।
जीवन मुक्ति का अनुभव अभी करना है ना कि भविष्य में करना है। भविष्य में तो वर्तमान के प्राप्ति का प्रारब्ध, भाग्य मिलता ही है। हमें सफलता प्राप्ति का अनुभव अभी करना है, इसके लिए भविष्य का इंतजार नही करना है, इसकी प्राप्ति तो भविष्य में मिलना ही है। इसलिए भविष्य के दिलासे पर नही रहना है। ऐसा करके हम अभी प्राप्ति का अनुभव कर सकते है। समय गवाने के कारण अधिकारी की जगह भिखारी बन जाते है और अधिकारी के जगह अधीन बन जाते है।
अव्यक्त महावाक्य बाप दादा मुरली, 11 जुलाई 1972
लेखक : मनोज श्रीवास्तव, सहायक निदेशक सूचना एवं लोकसम्पर्क विभाग उत्तराखंड देहरादून
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