देहरादून : लॉ ब्रेकर की जगह लॉ मेकर बनना है। लॉ मेकर होने के लिए लॉ फुल बनना होगा, लॉ फुल बनने के लिए लवफुल बनना होगा। जब लवफुल होंगे तभी लॉ फुल होंगे, लवफुल नहीं होंगे तब लॉ फुल भी नहीं होंगे। दोंनो में संतुलन होना जरूरी है। लेकिन एक पर फोकस करके दूसरे को भूल जाते है। अर्थात हम लॉ फुल तो रहते है परन्तु लवफुल नहीं रहते है अथवा हम लॉ लव तो रहते है परन्तु लॉ फुल नहीं रहते है।
दूसरों से पहले अपने लिए लॉ फुल बनना होगा। जो स्वयं के लिए लॉ फुल होते है। वही दूसरों को भी लॉ फुल बना सकते है। यदि स्वयं के प्रति किसी प्रकार का लॉ ब्रेक करते है तब दूसरों के ऊपर अपनी लॉ नहीं चला सकते है। जो लॉ ब्रेकर होगा वह दुनिया का मेकर नहीं बन सकता है। हमारा लक्ष्य न्यू वर्ड मेकर या पीस मेकर बनना है।
लॉ मेकर केवल एक छोटी मात्रा की गलती के कारण लॉ ब्रेकर बन जाते है। छोटी गलती के कारण हम शिव को शव के रूप में देखते है और शव को देखकर शिव को भूल जाते है। छोटी गलती का भी परिणाम उलटा निकलता है। इसलिए शरीर के स्थान पर आत्मा को देखना है और शव के स्थान पर शिव को देखना है, अर्थात विनाश के स्थान पर कल्याण को देखना है।
लॉ को जानना अर्थात लॉ को मानना अर्थात लॉ पर चलना होता है। जानने के बाद मानना होता है और मानने के बाद चलना होता है। चैक करें कि हमारे जानने में परसैंटेज तो नहीं है। यदि जानने में परसैंटेज होगा तब मानने में परसैंटेज होगा और चलने में भी परसैंटेज होगा। हमें सौ प्रतिशत जानना है, सौ प्रतिशत मानना है और सौ प्रतिशत चलना भी है।
जब हम यर्थात रूप से नहीं जानते है, तब यर्थात रूप से मान नहीं सकते है और यर्थात रूप से चल भी नहीं सकते है। जब जानना, मानना और चलना सौ प्रतिशत होगा तब सौ प्रतिशत सफलता भी होगी। सफलता के लिए पुरूषार्थ करना होता है। पुरूषार्थी शब्द ही असफलता से छुटकारा दिलाने में ढाल का कार्य करता है। इस रूप में पुरूषार्थ करना अर्थात आत्मिक स्वरूप में हम इस शरीर के मालिक है। पुरूषार्थी का अर्थ शरीर रूपी रथ को चलाने वाला रथी, वह पुरूषार्थी। जिस शरीर में आत्मा न हो, वह है अर्थी।
पुरूषार्थी सदैव मंजिल को सामने रखकर, देखकर चलता है और कभी रूकता नहीं है। मंजिल के बीच-बीच में आने वाले साईड़ सीन को देखकर रूकता नहीं है बल्कि देखते हुए, बिना विचलित होकर, निरन्तर चलता रहता है। पुरूषार्थी कभी भी अपना हिम्मत, उल्लास नहीं छोड़ता है। जब हिम्मत होगा तब उल्लास अवश्य होगा। जब हम हिम्मतहीन होंगे उल्लास के स्थान पर आलस्य होगा, जब आलस्य होगा तब हमारी हार अवश्य होगी।
हर संकल्प में श्रेष्ठता भरनी है। क्योंकि हमारी मंजिल बहुत ऊंची है, इसलिए हमंे कदम-कदम पर अटेन्शन रखना है। एक कदम में भी अटेन्शन कम रह गया तब रिजल्ट भी खतरनाक होता है। इसका परिणाम उल्टा होता है, हम ऊंचाई पर जाने की जगह धीरे-धीरे नीचे खिसकने लगते है। हर कदम पर चैकिंग जरूरी है क्योंकि कई कदम गंवाने के बाद हमें होश आता है।
हमें पहले से ही सावधान रहना है। ऐसा नहीं करना चाहिए कि ऐसा तो हमने समझाने का, यह तो हमारे लिए नई बात हो गई, पहले तो हमने कभी सुना नहीं था। परखने की शक्ति में अन्तर होने के कारण नुकसान उठाना पड़ता है। क्योंकि हम श्रीमत, ईश्वरीय मत में अपना मत मिक्स कर देते है। जहां परख नहीं सकते है, वहां सहयोग लें, वरिष्ठ से वैरिफाई करायें कि यह श्रीमत है अथवा नहीं। इसके बाद प्रैक्टिकल में चलें।
अव्यक्त महावाक्य बाप दादा मुरली 03 मई, 1972
लेखक : मनोज श्रीवास्तव, सहायक निदेशक सूचना एवं लोक सम्पर्क विभाग उत्तराखंड
Discussion about this post