देहरादून : लोगो की शिकायत रहती है कि परिश्रम ,पराक्रम और पुरुषार्थ करने पर भी सफलता नही मिल पाई। इसके आगे कहते है कि लगता है कि मेरी किस्मत में यही लिखा था। अपने तरीके से हर प्रयास कर लिया था लेकिन ड्रामा में यही लिखा है। लेकिन मेहनती, पराक्रमी और पुरुषार्थी को यह सोचना चाहिए कि मेरे पुरुषार्थ के बाद असफलता किसी भी रूप में आ नही सकता है। सदैव यही सोचना चाहिए कि जो भी परिश्रम किया वह कभी व्यर्थ नही जा सकता है। यदि यही तरीके से पुरुषार्थ किया जाए तब सफलता अभी नहीं तो कभी न कभी अवश्य मिलेगी।
यदि जीवन मे हमे कभी असफलता मिल भी जाये तब सोचना चाहिये कि यह मेरी परीक्षा थी। इसे पार कर लेने के बाद मेरी अंदर परिपक्वता आ ही जाएगी। वास्तव मिली असफलता कोई असफलता न होकर मेरे जीवन के अनुभव के फाउंडेशन को पक्का करने का साधन है। कभी कभी किसी चीज को याद मजबूत करना होता है,उसे ठोका पीटा जाता है और थोक पिट कर फाउंडेशन को पक्का किया जाता है। यह ठोकना पीटना ही हमारे परिपक्वता का साधन है। अर्थात बाहरी रूप से दिखाई देने वाली असफलता हमारे परिपक्वता का साधन है। तूफान को तोहफा समझ कर आगे बढ़ना चाहिए और हमारी नैय्या को लगने वाले झोंके आगे बढ़ने का साधन होती है। अर्थात हमारी असफलता में भी सफलता समाई होती है। यह समझानी रखकर आगे बढ़ना चाहिये।
यदि पुरुषार्थ सही तरीके से चल रहा है तब असफलता शब्द बुद्धि में नही लानी चाहिये। इसके लिये हमें नॉलेजफुल बनना होगा। आर्थात परिस्थिति के आदि, मध्य और अंत का नॉलेज रखना चाहिये। नॉलेजफुल अर्थात हर संकल्प, बोल और ज्ञान स्वरूप होना। नॉलेजफुल तभी होंगे जब केयरफुल होंगे। केयरफुल होने की निशानी है चियरफुल होना। यदि चियरफुल नही है तब सक्सेसफुल भी नही हो सकते हैं। चियरफुल, और केयरफुल बनकर ही सक्सेफुल बन सकते है। सफलता की स्टेज पर पहुचने के तीनों के सहयोग की जरूरत होती है।
चियरफुल के बिना मुख की वाणी प्रभाव नही डालती है। दुःख की लहर संकल्प में भी न हो ,इसे कहते है चियरफुल होना। चियरफुल व्यक्ति चुम्बक की तरह ऑटोमैटिकली आकर्षित करता है। इनको देख कर स्वतः लोग इनके समीप आ जाते है। लोगो के मन में चलता है कि जब दुनिया मे चारो तरफ दुःख और अशांति के बादल है ऐसे वातावरण में ये कैसे चियरफुल रह लेते है । इनके भीतर चियरफुलनेस क्यो और कैसे रहती है इसकी उत्कंठा बनी रहती है।
जब भारी बारिश, तूफान में लोग बचाव खोजते है तब चियरफुल लोग वर्षा में भीगने का आनन्द कैसे लेते है। ऐसे लोगो के अधीन आ कर लोग अपने सेफ्टी का साधन समझते है। जब हम अपना केयर करते करते ,चेयर छोड़ देते है तब चियरफुल नही रह सकते है। केयरफुल बनना अर्थात सीता के मर्यादा की लकीर का उलंघन नही करना है। जब हम ईश्वरीय मूल्यों के लकीर के मर्यादा का उलंघन करते है तब फ़क़ीर बन जाते है। यदि कुछ प्राप्ति भी हुई है तब उसे भूल कर भिखारीपन में फकीर बन जाते है। फकीर बनकर चिल्लाते है पैसे दे दो, कपड़े दे दो। अर्थात जो मर्यादा का उलंघन करता है वह फकीर बन जाता है। इनकी सदैव यही मांग रहती है कि कृपा करो, दया करो, आशीर्वाद दो, सहयोग करो।
यदि हम मर्यादा की लकीर के बाहर निकल जाते है तब हमें लोगो से मदद की जरूरत पड़ती है। लेकिन यदि मर्यादा के अंदर रह कर केयरफुल रहेंगे तब ऑटोमेटिकली चियरफुल रहेंगे और फिर सक्सेसफुल रहेंगे। यदि कोई सक्सेफुल नही है तब यही समझना चाहिए कि इसने किसी न किसी मर्यादा का उलंघन अवश्य किया है। व्यर्थ संकल्प ,संकल्पी के मर्यादा का उलंघन है। मर्यादा हमारी वाणी के लिये भी होती है। यदि हमने वाणी के मर्यादा का उलंघन कर दे तब चियरफुल नही रह सकते है। वास्तव में व्यर्थ ,संकल्प, विकल्प हमे चियरफुल स्टेज से गिरा देता है। इसके प्रमुख कारण मर्यादा का उलंघन है। यदि हमारे जीवन मे विघ्न, परेशानी,उदासी आती है तब समझना चाहिये कि किसी न किसी रूप में मर्यादा की लकीर के बाहर हमने पावँ को रखा है।
अव्यक्त महावाक्य बाप दादा मुरली 27 अप्रैल 1972
लेखक : मनोज श्रीवास्तव, सहायक निदेशक सूचना एवं लोकसम्पर्क विभाग उत्तराखंड देहरादून
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