देहरादून : कोई हमारी प्रशंसा करें और हम मुस्कुराए, इसको सहनशीलता नहीं कह सकते है , लेकिन यदि कोई दुश्मन बनकर, क्रोधित होकर, अपशब्दों की वर्षा करें, ऐसे समय पर भी हम सदा मुस्कुराते रहै और संकल्प मात्र भी मुरझाने का चिन्ह चेहरे पर ना हो, इसको कहा जाता है वास्तविक सहनशीलता ।
दुश्मन व्यक्ति को भी रहमदिल भावना से देखना, बोलना, संपर्क में आना, इसको कहते हैं सहनशीलता। किसी महत्त्वपूर्ण कार्य में, यदि कभी तूफान आ जाए और इस प्रकार की पहाड़ समान समस्या हो, विघ्न हो फिर भी हम बड़ी बात को छोटा सा खिलौना बनाकर ,खेल की रीति से पार करे व बड़ी भारी बात को सदा हल्का बनाकर , स्वयं भी हल्का रहें और दूसरों को भी हल्का बनाये इसको कहते हैं सहनशीलता।
सहनशीलता के लिये सहन करने की शक्ति की जरूरत होती है। सहन शक्ति से सर्व गुणों की प्राप्ति हो ही जाती है। जो व्यक्ति सहन शक्ति वाला होगा, उसमें निर्णय शक्ति, परखने की शक्ति और गंभीरता की शक्ति ऑटोमेटिकली एक के साथ आ जाते हैं। सहन शक्ति भी आवश्यक है और मनन शक्ति भी आवश्यक है। मनसा के लिए मनन शक्ति और वाचा तथा कर्मणा के लिए है सहन शक्ति। सहन शक्ति है, तो फिर जो भी शब्द बोलेंगे वह साधारण नहीं होगा।
इसके अतिरिक्त हम जो कर्म करेंगे वह भी असाधारण ही करेंगे। सहन शक्ति वाले व्यक्ति अपने कार्य में भी सफल हो जाते हैं। अर्थात सहन शक्ति की कमी के कारण कार्य की सफलता में भी कमी आ जाती है। सहन शक्ति वाले व्यक्ति शुद्ध संकल्पों के स्वरूप की स्थित रहता है और सहनशील व्यक्ति की सूरत में चमक रहेगी। सहन शक्ति है तो व्यर्थ संकल्पों को भी कंट्रोल कर सकते हैं ,इसके कारण नेगेटिविटी से दूर रहते है।
अव्यक्त महावाक्य बाप दादा मुरली 29-06-1971
लेखक : मनोज श्रीवास्तव, सहायक निदेशक सूचना एवं लोकसम्पर्क विभाग उत्तराखण्ड देहरादून
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