देहरादून : चेक करें कि वर्तमान अवस्था में हमारी प्रीत बुद्धि है या विपरीत बुद्धि है। यदि श्रेष्ठ मत, श्रीमत, के विपरीत हमारा संकल्प, वचन और कर्म है तब उसे प्रीत बुद्धि नहीं कहेंगे। जब केवल एक श्रेष्ठ ज्ञान सूर्य के साथ प्रीत हो जाता है तब अन्य के साथ, वैभव के साथ प्रीत जुड़ नहीं सकता है, क्योंकि जब हम श्रेष्ठ के सम्मुख होंगे, तब हम कहीं और विमुख नहीं होंगे।
ज्ञान सूर्य के साथ बुद्धि योग में सम्मुख रहने का अभ्यास करना है। जिस प्रकार सूर्य को देखने से सूर्य की किरण अवश्य मिलती है उसी प्रकार ज्ञान सूर्य के सम्मुख होने से ज्ञान सूर्य के सर्वगुणों के किरणें, न चाहते हुए भी अवश्य धारण करती हैं। इसलिए चेक करें कि कब हम प्रीत बुद्धि के लिस्ट में आते हैं और कब लिस्ट से बाहर निकल जाते हैं।
हमारी प्रीत बुद्धि नहीं है अर्थात सूक्ष्म या स्थूल से कहीं न कहीं प्रीत लगी हुई है। पेपर का समय नजदीक होने पर स्कूल बीच-बीच में छोटा पेपर लेकर उसका माक्र्स फाईनल पेपर में जोड़ देता है, उसी प्रकार वर्तमान समय हम जो भी कर्म करते हैं उसे अपना प्रैक्टिकल पेपर समझें।
प्रैक्टिकल पेपर का रिजल्ट फाईनल पेपर में जुड़ जाता है। एक का सौ गुना लाभ मिलता है, लेकिन जरा भी गफलत करने पर एक सौ गुना दण्ड भी मिलता है। एक संकल्प में सदा दृढ़ हो जाए क्योंकि अगर एक ईट भी हिलती है तो पूरी दीवार को हिला देती है। एक का भी संकल्प इसमें थोड़ा-सा, कारण अकारण, होता है तो सारा प्रोग्राम हल्का हो जाता है।
स्वयं की स्थिति में रहकर जो कर्म करता, बोलता है और संकल्प करता है वही सयंम बन जाता है और जो हूँ, जैसा हूँ यह जान कर और मान कर जो चलता है उसका सयंम ऊपर-नीचे नही होता है। पहली स्टेज पर हर कर्म करना पड़ता है, हर कदम में सोचना पड़ता है कि यह राईट है या रांग, यह सयंम है अथवा नही है। लेकिन जब स्वयं की स्मृति मंे रहते हैं तब यह नेचुरल बन जाता है। फिर सोचने की कोई आवश्यकता नही होती है। हमारा हर कर्म सयंम के बिना नही रह पाता है।
जो कर्म मैं करूँगा उसे देख सब करेंगे। ऐसी स्मृति को जान लेने वाला जो कर्म करेगा वही सयंम बन जाता है और उसे सभी लोग फॉलो करने लगते है। स्वयं के स्मृति के रहने पर हमारा हर कर्म सयंम बन जाता है और समय की पहचान स्पष्ट हो जाती है।
जब अपने स्वमान में रहेंगे, तब अभिमान से छूट जाएंगे। विघ्नों की लिस्ट तब आती है जब रूहानियत का फोर्स कम हो जाता है। यथार्थ विधि से व्यर्थ को समाप्त हो जाता है। जैसे रोशनी से अंधकार स्वतः खत्म हो जाता है। इस प्रकार, समय, संकल्प, श्वांस को सफल करने से व्यर्थ स्वतः समाप्त हो जाता है। क्योंकि सफल करने का अर्थ है श्रेष्ठ तरफ लगाना,तो श्रेष्ठ तरफ लगाने से, उन्हें व्यर्थ को स्टॉप करने की सिद्धि प्राप्त हो जाती है। यही परमात्म रिद्धि और सिद्धि है।
अव्यक्त स्थिति में रहने वाले का हर संकल्प, हर वचन और हर कर्म अलौकिक होता है। ऐसे अव्यक्त स्थिति वाले लोग देवता कहलाते हैं, क्योंकि इनकी प्रीत बुद्धि होती है। विनाशकाले विपरीत बुद्धि कौरव विन्श्यंती और विनाशकाले प्रीत बुद्धि पाण्डव विजयंती। प्रीत बुद्धि वाले कभी माया से हार नहीं खा सकते हैं।
अव्यक्त महावाक्य बाप दादा मुरली 02 फरवरी, 1972
लेखक : मनोज श्रीवास्तव, सहायक निदेशक सूचना एवं लोकसम्पर्क विभाग देहरादून
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