देहरादून : यदि हम किसी व्यक्ति समझते हैं कि यह रांग है, यह अच्छा काम नहीं कर रहा है। प्रश्न है कि रॉन्ग को राइट करने की विधि क्या विधि है अथवा यथार्थ कर्म नही करने वाले को यथार्थ कर्म सिखाने की विधि क्या है। कभी भी उस व्यक्ति को सीधा नहीं कहै कि तुम तो रांग हो , यह कह देने से वह कभी नहीं बदलेगा। जैसे आग बुझाने के लिए आग नहीं जलाई जाती है बल्कि अग्नि में ठण्डा पानी डाला जाता है। इसलिए कभी भी उस व्यक्ति को पहले ही कह दिया जाए कि तुम रांग हो, तुम रांग हो तो वह और अधिक दिलशिकस्त हो जायेगा, कमजोर बन जायेगा ।
इसलिये पहले उसको अच्छा- अच्छा कह करके शक्ति प्रदान करे, अर्थात पहले आग में पानी तो डाले फिर उसको सुनाओ कि आग क्यों लगी, आग लगने का क्या कारण है और आग बुझाने के क्या साधन है। पहले यह नहीं कह दे कि तुम ऐसे हो,तुम तो वैसे हो, तुमने यह किया, यह किया, वह किया। पहले ठण्डा पानी डाले, पीछे वह भी महसूस करेगा कि हाँ, आग लगने का कारण क्या है और आग बुझाने का साधन क्या है!
अगर बुरे को बुरा कह देते है तब आग में तेल डालने के समान हो जाता है । इसीलिए पहले बहुत अच्छा, बहुत अच्छा कह करके, बाद में उसको कोई भी बात समझाने का प्रयास करे तब उसमें सुनने की, धारण करने की हिम्मत आ जाती है। अर्थात कभी किसको डायरेक्ट रांग नहीं कहना चाहिए। बात-बात में सुना दे कि राइट क्या है, रांग क्या है।
अगर कोई सीधा आकर पूछे भी कि मैं रांग हूँ? तो कहना चाहिए कि नहीं तुम तो बहुत राइट हो क्योंकि उसमें उस समय रॉन्ग को रॉन्ग सुनने की हिम्मत नहीं होती है। जैसे पेशेन्ट मरने जा भी रहा होता है, आखरी साँस भी होता है तो भी डाक्टर से अगर पूछेगा कि मैं जा रहा हूँ तो डॉक्टर कभी नहीं कहेगा हाँ, जा रहे हो,जाओ ।
यदि मरीज का दिल कमजोर हो और हम उसको ऐसी बात कह दो, वह तो हार्टफेल हो ही जायेगा अर्थात् पुरुषार्थ में परिवर्तन करने के लिये शक्ति की जरूरत होती है, जो देनी पड़ती है लेकिन थोड़ा धैर्य रखना होता, इशारा तो देना पड़ेगा लेकिन टाइम और स्थिति देखकर।
पहले उसकी हिम्मत देखनी होती है ,यदि सलाह पालन की हिम्मत नही है तब हिम्मत बढ़ानी होती है। बहुत अच्छा, ‘बहुत अच्छा’ कहने से हिम्मत आ जाती है। लेकिन यह दिल से कहना होता है।ऐसे नहीं बाहर से कह दे ,तब वह समझे कि मेरे को ऐसे ही कह रहे है।
किसी को भी यदि पक्ष में करना हो तब उसे कुछ थोड़ा भी देकर फिर आप उनसे कुछ ले लो तो उसको फील नहीं करेगा। फिर कुछ भी उसको मना सकते है , लेकिन पहले उसको देना होगा। हिम्मत दे , उमंग दे, खुशी दे, फिर उससे कुछ भी बात मनाने चाहो तो मना सकते हो । किसी से सहयोग लेने के लिये पहले उसके मतलब की बात करनी होती है।
अव्यक्त महावक्त, बाप दादा मुरली 7 मार्च 1986
लेखक : मनोज श्रीवास्तव, सहायक निदेशक सूचना एवं लोकसम्पर्क विभाग उत्तराखंड, देहरादून
Discussion about this post