एकाग्रता में सभी क्वेश्चन समाप्त हो जाते है
देहरादून : सिद्धि स्वरूप होने की विधि एकाग्रता है। जितनी एकाग्रता होती है, उतना व्यर्थपन समाप्त होकर समर्थपन आ जाता है। एकाग्र व्यक्ति दुसरो को भी एकाग्रता का अनुभव कराते है।एकाग्रता से संकल्प ,बोल और कर्म सिद्ध हो जाता है। एकाग्रता हमारे संकल्प, बोल और कर्म में समानता लाता है। एकाग्रता कम होने से हलचल होती है,जहाँ एकाग्रता होती है वहॉं स्वतः एकरस स्थिति बन जाती है। एकाग्रता अर्थात एक ही श्रेष्ठ संकल्प में स्थित रहना है। एकांतवासी होने से एकाग्र सहज ही बन जाते है। एकाग्रता के आधार पर जो बस्तु जैसी है वैसी ही स्पष्ट दिखाई देगी।
एकाग्र स्थिति में स्थित होने वाला स्वयं को भी,जो है जैसे है ,वैसा ही स्पष्ट अनुभव कराती है । इस कारण कैसे हो, क्या हो है यह हलचल वाली संकल्प समाप्त हो जाता है। जैसे कोई बस्तु स्पष्ट दिखता है, वहां पर कोई क्वेश्चन नही उठता है। यह क्या है यह क्वेश्चन समाप्त हो जाता है। एकाग्र स्थिति में, उसी प्रकार स्वयं के बारे में सभी क्वेश्चन समाप्त हो जाता है और एकाग्रता के आधार पर हमारा स्वयं का स्वरूप दिखाई देगा। अर्थात एकाग्रता में सभी प्रकार के हलचल समाप्त हो जाता है,हर संकल्प भी स्पष्ट हो जाता है। एकाग्रता में प्रत्येक संकल्प ,बोल और कर्म के स्तर पर, तीनों काल का ज्ञान ऐसे स्पष्ट होता है, जिस प्रकार वर्तमान काल मे होता है। परिणामस्वरूप एकाग्रता सर्व प्रकार की हलचल समाप्त कर देती है।
लेखक : मनोज श्रीवास्तव, सहायक निदेशक सूचना एवं लोकसम्पर्क विभाग उत्तराखंड, देहरादून
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