नई दिल्ली: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सोमवार को राष्ट्रपति भवन में एक भव्य समारोह में जस्टिस सूर्यकांत को भारत के 53वें मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) के रूप में शपथ दिलाई। जस्टिस सूर्यकांत ने हिंदी में शपथ ली, जो उनके पारंपरिक मूल्यों को दर्शाता है। यह समारोह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उपराष्ट्रपति सी.पी. राधाकृष्णन, गृह मंत्री अमित शाह, लोकसभा स्पीकर ओम बिरला और कई अन्य वरिष्ठ नेताओं की उपस्थिति में संपन्न हुआ।
जस्टिस सूर्यकांत जस्टिस बी.आर. गवई का स्थान लेंगे, जिन्होंने रविवार शाम को सेवानिवृत्ति ली। 10 फरवरी 1962 को हरियाणा के हिसार जिले में जन्मे जस्टिस सूर्यकांत का कार्यकाल लगभग 15 महीने का होगा, जो 9 फरवरी 2027 को उनके 65 वर्षीय सेवानिवृत्ति आयु तक चलेगा। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम न्यायाधीश के रूप में उनकी नियुक्ति 30 अक्टूबर को राष्ट्रपति द्वारा स्वीकृत की गई थी।
समारोह की झलकियां: शपथ ग्रहण के बाद जस्टिस सूर्यकांत ने अपने बुजुर्ग परिवारजन के चरण स्पर्श किए, जो एक भावुक क्षण था। समारोह में भूटान, केन्या, मलेशिया, ब्राजील, मॉरीशस, नेपाल और श्रीलंका के मुख्य न्यायाधीशों और न्यायाधीशों की मजबूत उपस्थिति रही, जो भारत की न्यायिक कूटनीति को रेखांकित करती है। हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी भी विशेष अतिथि के रूप में मौजूद रहे।
कैरियर की प्रमुख उपलब्धियां: जस्टिस सूर्यकांत का न्यायिक सफर प्रेरणादायक है। 2000 में वे हरियाणा के सबसे युवा महाधिवक्ता बने और 2001 में वरिष्ठ अधिवक्ता घोषित हुए। 9 जनवरी 2004 को पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के न्यायाधीश बने, जबकि 5 अक्टूबर 2018 से हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रहे। 24 मई 2019 को वे सुप्रीम कोर्ट पहुंचे।
उनकी प्रमुख निर्णयों में अनुच्छेद 370 की समाप्ति (जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा हटाना), पेगासस जासूसी कांड, बिहार निर्वाचन सूची संशोधन, राजद्रोह कानून, इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को असंवैधानिक घोषित करना, नागरिकता संशोधन, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और राज्यपालों की शक्तियों पर राष्ट्रपति संदर्भ शामिल हैं। उन्होंने लिंग भेदभाव के मामलों में महिलाओं के अधिकारों की रक्षा की, जैसे एक महिला सरपंच की बहाली का आदेश देते हुए जेंडर बायस पर टिप्पणी की। वे राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) और इंडियन लॉ इंस्टीट्यूट से भी जुड़े रहे।
शपथ लेने के बाद जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, “न्यायपालिका का कर्तव्य है कि अंतिम नागरिक की रक्षा करें।” उनके कार्यकाल में न्यायिक सुधार, डिजिटल न्याय प्रणाली और संवैधानिक मामलों पर विशेष ध्यान अपेक्षित है। यह नियुक्ति भारतीय न्याय व्यवस्था के लिए एक नया अध्याय खोलती है।


