- मनोज श्रीवास्तव
देहरादून : क्रोध करने से छुटटी ले लेनी है। थोड़ा-थोड़ा तो क्रोध करना पड़ता है, यह कहना गलत है। क्रोध करने के लिए लोग तरह तरह के बहाने बनाते हैं, पूछा जाएगा की आपने क्रोध क्यों किया, कहते मैंने नहीं किया, लेकिन उन्होंने मुझे क्रोध कराया। मुझसे क्रोध कराया गया, वैसे में क्रोध से दूर रहता हूं।
प्रतिज्ञा कमजोर होने का एक ही कारण है, एक ही शब्द है मैं पन का आ जाना। अभिमान के रूप में मैं आता है और कमजोर करने में भी मैं आता है। मैंने जो कहा, मैंने जो किया, मैंने जो समझा, वही राइट है, वही होना चाहिए। यह अभिमान का रूप है। मैं जब पूरा नहीं होता है तो हम दिल से हार महसूस करते हैं। मैं कर नहीं सकता, चल नहीं सकता, बहुत मुश्किल है, इस तरह के शब्द निकलने लगते हैं। एक बाॅडी कान्स्सनेंस का मैं बदल जाए तो मैं स्वमान की याद दिलाता हूं लेकिन मैं पन में देह अभिमान आता है। मैं दिल शिकस्त ही महसूस कराता है और मैं दिल खुश करता है लेकिन अभिमान की निशानी भी चेक करनी होगी। यदि कभी भी किसी में बाॅडी कान्सेस का अभिमान है अथार्त यदि अभिमान है तो वह व्यक्ति अपमान सहन नही कर सकेगा। अभिमान, अपमान सहन नही कराएगा। जरा भी कोई कहेगा कि यह ठीक नहीं है, थोड़ा सुधर जाओ तो अपमान की फिलिंग आएगी, यही अभिमान की निशानी है।
लेखक : मनोज श्रीवास्तव, सहायक निदेशक सूचना एवं लोकसम्पर्क विभाग उत्तराखंड