देहरादून : लक्ष्य भी श्रेष्ठ है और कदम भी तीव्र गति के समान है। लेकिन, अभी जो यह रूप दिखाई देता है कुछ समय बाद इस रूप पर नजर लग जाने के कारण रूपरंग बदल जाता है। कदमों की तीव्र गति यथार्थ मार्ग की बजाये व्यर्थ मार्ग पर तीव्र गति से चलने लगते हैं। ईश्वरी खुशी के बजाये अनेक प्रकार के विनाषी नाशे में मस्त हो जाते है।
खुशी हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है, इस अनुभव के कारण दुख सुख में बदल जाता है। अशांति शांति में बदल जाती है और भटकना बंद हो जाता है तथा ठिकाना मिल जाता है। इस प्रकार पवारफुल होने का अनुभव करना है। लेकिन, चलते-चलते हम अपने पुरूषार्थ, खुशी और उमंग से संतुष्ट नही रहते है। अपने आप से क्वेचन करते रहते है कि पहले ऐसा था, लेकिन अब ऐसा क्यों होता है, पहले जैसा उमंग कहां चला गया। पहले वाली खुशी गायब क्यो हो गई। जब सफलता का समय नजदीक आ रहा है। साघन भी बहुत प्राप्त हो रहे है, लेकिन पहले जैसा अनुभव क्यो नहीं होता है। इसका कारण यह है जब चलते-चलते कोई एक सीमित पोजिशन को प्राप्त कर लेते हैं, तब संपर्क में आने वाले अपने साथियों का अपोजिशन करने लग जाते है। इस संबंध में क्वेश्चन करके करेक्शन करने लग जाते है फिर दूसरे की कोटेशन, उदाहरण देने लगते है। दूसरे के दृष्टांत से अपना सिद्धांत बनाने में लग जाते हैं।
हमारे अंदर अहम आ जाता है। मैं ज्यादा सबसे ज्यादा सर्विसएबल हूं, प्लानिंग बुद्धि हूं, इन्वेंटर हूं, धन का सहयोगी हूं, दिनरात काम करने वाला हूं, हार्डवर्कर हूं या इंचार्ज हूं। इस प्रकार नाम, मान और शान के उल्टे चलने वाले पोजिशन को पकड लेते हैं, अथार्थ यथार्थ मंजिल व्यर्थ मार्ग पर तीव्र गति से चल पडते है। माया से अपोजिशन करना था, लेकिन हम माया को मित्र बना लेते है। टीचर से भी अपोजिशन करते है। तुम अनुभवी नहीं हो मैं तुमसे ज्यादा अनुभवी हूं, तुम अनपढ हो, मैं पढा लिखा हूं। इस प्रकार के अपोजिशन करने में अपना सदा काल का श्रेष्ठ पोजिशन को गवां देते हैं। अपोजिशन का काम अपोजिशन के कारण अपनी पोजिशन कमजोर कर लेते है।
क्वेश्चन, करेक्शन और कोटेशन देने में बडे होशियर वकील और जज बन जाते है। अपने को छुडाने के लिए अथार्थ अपनी गलती को छिपाने के लिए कोटेशन देते है। कहते है मेरे से बडे महारथी भी ऐसा करते है। इस समस्या पर फलाने ने ऐसा ही कहा था। समय और सरकमस्टान्सेज को नहीं देखते हैं, लेकिन शब्द को पकड लेते हैं। इन्हीं भूलों के कारण एक भूल से अनेक भूल करने लगते है। गलत धारणा अपनाने के कारण अपना करेक्शन करने की बजाये दूसरो का करेक्शन करते रहते है। ईश्वरीय शक्ति से कनेक्शन तोड देते है और शक्तिहीन होकर उलझते रहते है। इसलिए अपने आपको चेक करें, उल्टे और व्यर्थ मार्ग पर चलना बंद करें, अपने को चेक करके चेंज करें।
अव्यक्त बाप दादा, महावाक्य मुरली 27 अक्टूबर 1975
लेखक : मनोज श्रीवास्तव, सहायक निदेशक सूचना एवं लोकसम्पर्क विभाग उत्तराखंड
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