देहरादून : एक ही लगन में, एक ही संकल्प में बैठना अर्थात दृढ संकल्प कर लेना है। इसके लिए अपने लगन में अग्नि को महसूस करना होगा। अपने लगन में अग्नि को पैदा करने की युक्ति की तिली से अग्नि को जला कर रखना है। लगन के अग्नि की तीली है, दृढ संकल्प करना।
दृढ संकल्प का अर्थ है मर जायेगें, मिट जायेंगे लेकिन करके ही छोडेगें। करना तो चाहिए, होना तो चाहिए, कर ही रहे है, हो ही जायेगा, यह हम बोलते रहते है। ऐसा सोचना और बोलना एक बुछी हुई तीली के समान बनना है। इस कारण हम बार-बार मेहनत भी करते है और समय भी देते है फिर भी लगन की अग्नि प्रज्वलित नही होती है। क्योकि संकल्प रूपी बीज और दृढता रूपी जल का अभाव होता है। इस कारण हम जो फल की आशा रखते है वह पूर्ण नही होता है अथवा मेहनत अधिक और प्राप्ति कम होती है। सामान्य भाषा में इसे कहते है हम करते तो है लेकिन हमें मिलता नही है।
लगन की अग्नि होने से हम असम्भव को भी संभव बना सकते है। जिस कार्य को दुनिया असम्भव मानती है उस कार्य को हम एक सेकेण्ड में करके दिखा सकते है, इसका आधार हमारा दृढ संकल्प है। वर्तमान समय तेजी का समय है, जिसमें प्रति सेकेण्ड गति की रफतार अधिक होनी चाहिए। यदि समय और स्वंय दोनो की रफतार एक समान होगी तभी हम फास्ट रहकर फस्र्ट आ सकते है। इसके लिए हमें सर्व शक्तियों को अपने अधिकार में रखना होगा।
सर्व शाक्तियाॅ सर्व शाक्तिमान के पास होती है। इसलिए हमें सर्व शाक्तिमान के गुणों को धारण करना होगा। अर्थात जो समीप होते है वही समान बनते है। तन से दूर रहने वाले भी मन से नजदीक रहते है। हम प्रकृति को दासी बनकर सदा के लिए अपनी उदासी दूर कर सकते है।
अव्यक्त बापदादा महावक्य मुरली 01 फरवरी 1975
लेखक : मनोज श्रीवास्तव, सहायक निदेशक सूचना एवं लोकसम्पर्क विभाग उत्तराखंड
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