देहरादून : स्वयं का स्वयं ही टीचर बनने पर दूसरों का टीचर बन सकते है । टीचर बनना अथार्त सहयोग देना है। इस सेवा में सहयोग देने का चांस स्वयं लेना चाहिए। जितना सहयोग देने का अनुभव होगा, उतनी ही हमारी वैल्यू होगी। अनुभवी व्यक्ति के राय की ही वैल्यू होती है। इसलिए सहयोग देने का चांस स्वयं लेना होगा। चांस लेने के लिए आफर का इंतजार नहीं करना चाहिए। ऐसा नहीं कहना चाहिए कि मुझे योग्य समझा जाए, बल्कि स्वयं अपनी योग्यता को आगे बढकर दिखाना चाहिए। यह नहीं सोचना चाहिए अथवा इंतजार करना चाहिए कि मुझे चांस मिलेगा मैं तभी करूंगा।
सेवा में इगो या मेरा पन नहीं होगा चाहिए। मेरा माना जाए, मेरा सुना जाए, मैं ही सब कुछ हूं, यह सब इगो के रूप है। इगो के स्थान पर सेल्फ रिस्पेक्ट, स्वमान में रहना चाहिए। स्व को मान देने स्वयं को वैल्यू देने पर ही दूसरे हमें वैल्यू देंगे। इसके लिए हर चीजों को जो है, जैसा है उसी रूप में देखना चाहिए। इसे साक्षी दृष्टा या तटस्थ दृष्टा कहते हैं। यह योग की अवस्था में, यह अपनी आत्मा को साथ चलने की स्थिति है। जितना समय आत्मा का साथी रहेंगे, उतना अखंड योग बना रहेगा। अन्यथा खंडित योग हो जाता है। खंडित चीज फेंकने वाली होती है। कोई मूर्ति जो पूजन योग्य होती है जब खंडित हो जाती है तो उसकी कोई वैल्यू नहीं होती। इसी प्रकार जब योग खंडित हो जाता है तब हमारी कोई वैल्यू नहीं होती है। अखंड योगी, अटूट योगी बनना ही साक्ष्य दृष्टा है। यह हमारे समान को सैल्फ रिस्पेक्ट को बढाने वाला है और इगो से दूर रखने वाला है।
लेखक : मनोज श्रीवास्तव, सहायक निदेशक सूचना एवं लोकसम्पर्क विभाग उत्तराखंड