गोपेश्वर (प्रवीण आलोक): बसन्त को धत्ता बता कर सर्द मौसम में खूबसूरती बिखेरता सभी को अपनी और बरबस आकर्षित करता यह पँया का बृक्ष, आजकल गाँवों में खेत खलियानों इस गुलाबी सफेद फूलों से लदे इस बृक्ष की अपनी अलग ही पहचान होती है पशु-पक्षी, भंवरे मानव सभी अनायस ही इसकी और खिंचे आते हैं । मैं बायो का छात्र नही रहा इसलिए मुझे जानकारी नही इसका साइंटिफिक नाम क्या है लेकिन मैरे सरकारी निवास गोपेश्वर के करीब ही फूलों से लदा यह बृक्ष मुझे अपने बचपन की याद दिलाता है, तब हम इसके फल खाने के इसके उन्हें इकठ्ठा करते थे, स्वाद में कसीला यह फल मुझे पसन्द नही था किंतु दिखने में लाल पीले छोटे फलों को साथियों की देखा देखी खा लेता था, बसन्त में आडू का बृक्ष भी इसी प्रकार दिखता है इसलिए में बचपन मे इन फूलों को देखकर भ्रमित रहता था।आज इतनी फुर्सत ही नही होती कि इस प्रकृति को इस नजरिए से देखा जाए किंतु हम सभी का बचपन इसी परिधि में गुजरा है, इस बृक्ष ओर बृक्ष की छाया (पँया डाली कु छेल) पर प्रकृति प्रेमियों, गढकवियो ने अनेक गीत और कविताएं श्रंगारित किये है और सजोयें रखा है हमारे बचपन के खूबसूरत पलों को।