posted on : मार्च 3, 2022 12:39 अपराह्न
उत्तरकाशी (कीर्तिनिधी सजवाण): यूं तो भारतवर्ष में अनेक पर्व और त्योहार मनाए जाते हैं ।इसी के चलते भाषा,बोली, प्रांत के लोग अपने पर्व और त्योहारों को अपने अनोखे अंदाज में मनाते है। उन्हीं पर्व और त्योहारों में से एक पर्व सीमांत जनपद उत्तरकाशी के डुंडा तहसील में स्थित हरसिल ,बगोरी, बीरपुर के लोग शीतकाल के उत्तरार्ध में लोसर मेले का आयोजन बड़े हर्ष और उल्लास के साथ करते हैं ।लोसर मेले में बौद्ध धर्माम्बलम्बीयो मे नव वर्ष के प्रतीक पर्व के रूप में मनाया जाता है। क्योंकि शिशिर ऋतु समाप्ति पर होती है और बसंत ऋतु सरसों के पीले फूल के साथ दस्तक दे रही होती है। प्रकृति नाना प्रकार के फूलों का श्रृंगार कर आनंदित हो रही होती है। इसे नवपल्लव उत्सव के रूप में लोसर मेले का आयोजन किया जाता है । लोसर मेला कब से मनाया जाता है इसका ठीक से इतिहास किसी को भी पता नहीं है। हां इतना जरूर है कि इसके नाम नाम भर से आनंद और उल्लास का वातावरण अवश्य दिखाई पड़ता है।
हफ्ते भर तक चलने वाले इस मेले में स्थानीय लोगों लोग दैनिक दिनचर्या के कार्यों को छोड़कर केवल दूसरे को वह दूसरों को बधाइयां और शुभकामनाएं देते हुए नजर आते हैं। इस मेले की सबसे प्रमुख विशेषता यह है कि यह चीन के नव वर्ष लोसर के साथ ही प्रारंभ होता है। उसमें प्रथम दिवस की रात्रि में दीपावली पर्व का आयोजन किया जाता है। उसी दिन लोग जंगल से चीड़ के पेड़ की तेल वाली लकड़ी स्थानीय भाषा में “दल्लीयो” की मशाल बनाकर गांव के बीच में हुजूम बनाकर ढोल की थाप के साथ नाचते गाते हुए गांव के अंतिम छोर पर मसाले एक जगह पर एकत्रित कर देते हैं । इन मसालों के एकत्रित होने से विशाल अग्नि प्रज्ज्वलित हो उठती है इस अग्नि के चारों ओर लोग एकत्रित होकर नाचते गाते हुए अपने घरों को लौट लौटते हुए पत्थर के छोटे-छोटे टुकड़े को” तिररिगं था मिररिंग भी” भी कहते हुये अपने बंधुओं को उपहार स्वरूप भेट करते हैं। यह पत्थर के टुकड़े हीरे मोतियों के प्रतीक स्वरूप भेंट किए जाते हैं । जिसका आशय होता है कि आपके परिवार में नववर्ष हीरे मोतियों की सौगात लेकर आए और आप खुशहाल रहें बड़े बुजुर्ग बच्चों को उपहार स्वरूप मिष्ठान,काफी, पैसे आदि के रूप में अपना आशीष प्रदान करते हैं। दूसरे दिन सभी लोग प्रातः स्नान से निवृत्त होकर नए वस्त्र धारण कर अपने इष्ट देव की स्तुति के साथ छोटे -छोटे बच्चों के हाथों में हरियाली की पौध लेकर अपने परिजनों रिश्तेदारों के यहां जाकर उन्हें पौधे के प्रतीक स्वरूप शुभकामनाएं देते हुए राम राम कहते हैं। भेंट स्वरूप प्राप्त टॉफियां ,पैसे आदि एक घर से दूसरे घर में हर्ष उल्लास के घूमते हुए मनाते हैं।