posted on : अक्टूबर 24, 2024 10:19 अपराह्न
- राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस : शोध, औषधि मानकीकरण और आयुर्वेदिक सिद्धांतों की प्रासंगिकता
हरिद्वार : ऋषिकुल राजकीय आयुर्वैदिक फार्मेसी हरिद्वार के निर्माण वैद्य और राष्ट्रीय आयुष मिशन की नोडल अधिकारी डॉ. अवनीश उपाध्याय राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के अवसर पर आयुर्वेद के महत्वपूर्ण बिंदुओं पर प्रकाश डालते हुए बता रहे हैं। आयुर्वेद केवल एक चिकित्सा पद्धति नहीं बल्कि यह संपूर्ण जीवन शैली का मार्गदर्शन भी प्रदान करती है। हर साल धन्वंतरि जयंती, यानी धनतेरस के दिन, भारत सरकार राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में मनाती है, आधुनिक युग में जब चिकित्सा पद्धतियों में विज्ञान का समावेश अनिवार्य हो गया है, आयुर्वेद के सिद्धांतों को भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सुसज्जित करने की आवश्यकता है।
आयुर्वेद में अनुसंधान की आवश्यकता को बताते हुए डॉ. अवनीश उपाध्याय कहते हैं कि आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति की प्राचीनता और इसकी व्यापकता को देखते हुए इसके शोध की आवश्यकता अत्यधिक महत्वपूर्ण है। हालांकि, आयुर्वेद में पहले से ही ज्ञान का विशाल भंडार उपलब्ध है, परंतु आधुनिक अनुसंधान और वैज्ञानिक परीक्षणों की आवश्यकता इसके प्रमाणिकता और सार्वभौमिकता को सुदृढ़ करने के लिए महत्वपूर्ण है। अनुसंधान के माध्यम से विभिन्न बीमारियों के उपचार में आयुर्वेदिक औषधियों के परिणामस्वरूप प्राप्त होने वाले लाभ को वैश्विक चिकित्सा समुदाय के समक्ष प्रमाणित करना आवश्यक है।
आयुर्वेद अनुसंधान के तीन प्रमुख आयामों पर ध्यान केंद्रित करना आवश्यक
- दवाओं की प्रभावशीलता पर परीक्षण – आयुर्वेदिक औषधियों को आयुर्वेदिक चिकित्सा सिद्धांतों के साथ आधुनिक परीक्षण पद्धतियों से परखा जाना चाहिए ताकि उनकी वैज्ञानिकता स्थापित हो सके।
- बीमारियों के नए उपचार विकल्प – अनुसंधान द्वारा यह पता लगाया जा सकता है कि आयुर्वेदिक औषधियाँ किन-किन नई बीमारियों के उपचार में कारगर हो सकती हैं।
- अन्य चिकित्सा प्रणालियों के साथ समन्वय – आयुर्वेदिक पद्धतियों और अन्य चिकित्सा प्रणालियों के बीच एक समन्वित दृष्टिकोण विकसित करने के लिए अनुसंधान को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। इस प्रकार की शोध आधुनिक चिकित्सा प्रणाली के साथ आयुर्वेद को जोड़ने में मदद करेगी।
- औषधियों के मानकीकरण की आवश्यकता – आयुर्वेदिक औषधियों का मानकीकरण करना एक महत्वपूर्ण कदम है, जिससे इन औषधियों की गुणवत्ता, शुद्धता और प्रभावशीलता को सुनिश्चित किया जा सके। आयुर्वेद की प्रमुख समस्या यह है कि विभिन्न स्थानों पर एक ही औषधि की अलग-अलग गुणवत्ता और प्रभावशीलता होती है, जिससे उनके उपयोग में असंतुलन उत्पन्न हो सकता है। औषधियों के मानकीकरण से तात्पर्य है कि उनकी तैयारी, भंडारण, और वितरण की प्रक्रिया में एक निश्चित मानक निर्धारित किया जाए। इसमें औषधियों के घटक पदार्थों की पहचान, शुद्धता और उनकी गुणवत्ता सुनिश्चित करना शामिल है।
आयुर्वेदिक औषधियों के मानकीकरण के प्रमुख घटक निम्नलिखित हो सकते हैं:
- औषधियों की गुणवत्ता का परीक्षण – प्रत्येक औषधि को उसके घटक तत्वों के आधार पर मानकीकृत किया जाना चाहिए। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी औषधि बिना किसी मिलावट के उच्चतम गुणवत्ता में उपलब्ध हो।
- उत्पादन प्रक्रिया का मानकीकरण – औषधियों के उत्पादन में इस्तेमाल होने वाले उपकरणों और प्रक्रियाओं का मानकीकरण भी आवश्यक है, जिससे हर बार एक समान गुणवत्ता वाली औषधि तैयार की जा सके।
- औषधीय घटकों की शुद्धता और स्थिरता – आयुर्वेदिक औषधियों में प्रयुक्त होने वाले विभिन्न घटक जैसे जड़ी-बूटियाँ, खनिज, और अन्य प्राकृतिक तत्वों की शुद्धता और उनकी जैविक स्थिरता की पहचान सुनिश्चित करना आवश्यक है। इसके लिए वैज्ञानिक पद्धतियों का उपयोग कर उनके गुणधर्मों का परीक्षण किया जाना चाहिए।
- वैश्विक स्वीकृति के लिए मानकीकरण – आयुर्वेदिक औषधियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृति दिलाने के लिए उन्हें वैश्विक मानकों के अनुरूप विकसित करना भी आवश्यक है। यह कदम आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित करने में सहायक हो सकता है।
आयुर्वेदिक सिद्धांतों का मानकीकरण
आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति का एक और प्रमुख पहलू है इसके सिद्धांतों का मानकीकरण। आयुर्वेद के सिद्धांतों को व्यापक रूप से स्वीकार्यता दिलाने के लिए उनके मानकीकरण की आवश्यकता है। जैसे कि “त्रिदोष सिद्धांत” (वात, पित्त, कफ) और पंचमहाभूत सिद्धांत (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) आदि को वैज्ञानिक रूप से परिभाषित और प्रमाणित करने की आवश्यकता है। आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणाली में निदान और उपचार की प्रक्रिया इन सिद्धांतों पर आधारित होती है। इन सिद्धांतों को आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के साथ मिलाने से उनकी स्वीकार्यता बढ़ेगी। उदाहरण के लिए, वात, पित्त, कफ के असंतुलन को आधुनिक विज्ञान के संदर्भ में समझाया जा सकता है ताकि इसे चिकित्सकीय रूप से प्रमाणित किया जा सके।
आयुर्वेदिक सिद्धांतों का मानकीकरण करने के लिए निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान दिया जाना चाहिए
- त्रिदोष सिद्धांत का वैज्ञानिकीकरण – वात, पित्त, कफ के आधार पर शरीर की क्रियाओं का समन्वय किया जाता है। इसे आधुनिक जैव रसायन और शरीर क्रिया विज्ञान के माध्यम से प्रमाणित किया जाना चाहिए ताकि इसके वैज्ञानिक आधार को मजबूत किया जा सके।
- रोगों के वर्गीकरण का मानकीकरण – आयुर्वेद में विभिन्न रोगों के निदान और उपचार के लिए अलग-अलग सिद्धांत होते हैं। इन सिद्धांतों का आधुनिक विज्ञान की मदद से वर्गीकरण और परिभाषा करना आवश्यक है। इससे चिकित्सकों के बीच एकरूपता और सहमति बन सकेगी।
- आहार और दिनचर्या सिद्धांतों का मानकीकरण – आयुर्वेद में आहार और दिनचर्या का विशेष महत्व है। विभिन्न व्यक्तियों के लिए विभिन्न प्रकार के आहार और जीवनशैली के सिद्धांतों को एक निश्चित मानक में बदलने की आवश्यकता है ताकि उनका सार्वभौमिक उपयोग हो सके।
- प्रमाण आधारित आयुर्वेद – आयुर्वेदिक सिद्धांतों को प्रमाण आधारित चिकित्सा के रूप में प्रस्तुत करने के लिए अनुसंधान और वैज्ञानिक परीक्षणों की आवश्यकता है। इससे आयुर्वेद की विश्वसनीयता और स्वीकार्यता में वृद्धि होगी।
आयुर्वेदिक औषधियों और चिकित्सा पद्धति की वैश्विक भूमिका
आज जब पूरी दुनिया में आधुनिक चिकित्सा पद्धतियाँ तेजी से बढ़ रही हैं, आयुर्वेद का महत्व कम नहीं हुआ है। बल्कि, यह पद्धति प्राकृतिक और समग्र चिकित्सा के रूप में अधिक प्रासंगिक होती जा रही है। वैश्विक स्तर पर स्वास्थ्य समस्याओं में वृद्धि के साथ-साथ लोगों का रुझान भी पारंपरिक और वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों की ओर बढ़ रहा है। आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में रोगों का जड़ से उपचार करने की क्षमता है, और यह शरीर, मन और आत्मा के संतुलन पर जोर देती है।
औषधियों और आयुर्वेदिक सिद्धांतों के मानकीकरण के साथ ही आयुर्वेद की वैश्विक स्वीकार्यता में वृद्धि होगी। आयुर्वेद का प्रचार-प्रसार सिर्फ भारत तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि इसे एक वैश्विक चिकित्सा पद्धति के रूप में प्रस्तुत किया जाना चाहिए। इसके लिए आयुर्वेदिक संस्थानों और शोधकर्ताओं को अंतरराष्ट्रीय चिकित्सा समुदाय के साथ सहयोग करना होगा।
राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस आयुर्वेद के पुनरुत्थान और इसके भविष्य के विकास की दिशा में महत्वपूर्ण अवसर है। अनुसंधान, औषधियों के मानकीकरण और आयुर्वेदिक सिद्धांतों के मानकीकरण जैसे पहलुओं पर ध्यान देकर आयुर्वेद को एक नई ऊँचाई पर पहुँचाया जा सकता है। इससे न केवल भारत में, बल्कि पूरी दुनिया में।