- बिग कैट्स के संरक्षण के लिए आईसीसीओएन 2025 में विचार-मंथन सत्र हुआ आयोजित
- भारतीय संरक्षण सम्मेलन (आईसीसीओएन 2025) के दूसरे दिन संरक्षण के क्षेत्र में अनुसंधान, और साझेदारी से संबंधित विभिन्न सत्र आयोजित किए गए
- विज्ञान-नीति को मजबूत करने, दीर्घकालिक संरक्षण में गश्त और आवास निगरानी में प्रौद्योगिकी को एकीकृत करने की आवश्यकता – एडीजी वन वन्यजीव आरके पांडे
देहरादून : भारतीय वन्यजीव संस्थान में आयोजित भारतीय संरक्षण सम्मेलन (आईसीसीओएन 2025) के दूसरे दिन गुरुवार को अनुसंधान और साझेदारी की कहानियाँ सामने आईं साथ ही संरक्षणवादियों की अगली पीढ़ी पर प्रकाश डाला गया और विज्ञान, समुदाय और नीति के बीच पुल का निर्माण कैसे हो इस पर मंथन किया गया। 25 जून को केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री द्वारा इस तीन दिवसीय सम्मेलन का उद्घाटन किया गया था।
दूसरे दिन की शुरुआत डॉ. रमना अथरेया (आईआईएसईआर पुणे) के सत्र के साथ हुई, जिन्हें अरुणाचल प्रदेश में स्थानिक रूप से एक आकर्षक और गंभीर रूप से लुप्तप्राय पक्षी प्रजाति बुगुन लियोसिक्ला की खोज के लिए जाना जाता है। प्रसिद्ध खगोल वैज्ञानिक से पक्षी विज्ञानी बने डॉ. रमना ने बताया कि कैसे अकादमिक शोध, आदिवासी आजीविका और जैव विविधता संरक्षण को अरुणाचल प्रदेश के समुदाय-नेतृत्व वाले मॉडल से समझा जा सकता है।
इसके बाद स्पीड टॉक का दौर चला, जिसमें युवा शोधकर्ताओं ने वन्यजीव संरक्षण और मानव-संशोधित परिदृश्यों में पक्षी विविधता जैसे विषयों पर चर्चा बात। इसके अलावा सम्मेलन के दूसरे दिन चार समानांतर मौखिक प्रस्तुति सत्र हुए, जिसमें प्रजाति और आवास मॉडलिंग, वन्यजीव शरीर विज्ञान और पारिस्थितिक निगरानी, बड़े शाकाहारी जानवरों के साथ सह-अस्तित्व, शहरी और समुदाय से जुड़ी जैव विविधता चुनौतियों जैसे विषयों को शामिल किया गया।
इसके अलावा सम्मेलन के दूसरे दिन प्रमुख आकर्षण रहा इंटरनेशनल बिग कैट अलायंस (आईबीसीए) का सत्र, जिसमें भारत, यूके, यूएस और अफ्रीका के विशेषज्ञ बड़ी बिल्लियों के संरक्षण के लिए वैश्विक रणनीतियों पर चर्चा करने के लिए एक साथ आए। वर्ल्ड वाइड फंड (WWF), स्नो लेपर्ड ट्रस्ट और गो इनसाइट यूके के वक्ताओं ने विज्ञान-संचालित प्रवर्तन से लेकर सामुदायिक भागीदारी और डेटा-आधारित व्यापार निगरानी तक के नवाचारों को साझा किया।
दूसरे दिन का दूसरा सत्र रमेश कुमार पांडे, अतिरिक्त वन महानिदेशक (वन्यजीव) का रहा। यूएनईपी एशिया पर्यावरण प्रवर्तन पुरस्कार विजेता, रमेश कुमार पांडे ने विज्ञान-नीति इंटरफेस को मजबूत करने, गश्त और आवास निगरानी में प्रौद्योगिकी को एकीकृत करने और दीर्घकालिक संरक्षण में फ्रंटलाइन कर्मचारियों और सामुदायिक लोगों का समर्थन करने की आवश्यकता के बारे में बात की। दिन का समापन वन्यजीव वृत्तचित्र ‘डेन-मो’ की स्क्रीनिंग के साथ हुआ, जिसमें हिमालयी भूरे भालू को दिखाया गया है, जो पुरस्कार विजेता श्रृंखला ऑन द ब्रिंक सीज़न-3 से लिया गया है। इस फिल्म ने भारत के पर्वतीय पारिस्थितिकी तंत्र की नाजुक सुंदरता और बदलती जलवायु में सह-अस्तित्व की चुनौतियों पर एक सिनेमाई प्रतिबिंब पेश किया।


