देहरादून: भाजपा राष्ट्रीय सह कोषाध्यक्ष व सांसद डॉ. नरेश बंसल ने सदन मे अतारांकित प्रश्न के माध्यम से देहरादून और उत्तराखण्ड के अन्य इलाकों में नदियों का पुनर्जीवन का प्रश्न किया।
डॉ. नरेश बंसल ने अपने प्रश्न में पूछा किः-
क्या जल शक्ति मंत्री यह बताने की कृपा करेंगे किः-
क- सीवेज उपचार, औद्योगिक प्रदूषण प्रबंधन और बाढ़ क्षेत्र संरक्षण में मौजूद कमियों को दूर करने के लिए सरकार द्वारा कौन-कौन से उपाय किए जा रहे हैं।
ख- वे राज्य कौन से हैं जिन्होंने प्रदूषित नदी खंडों में कमी लाने या अपशिष्ट जल के पुनः उपयोग को बढ़ाने में उल्लेखनीय प्रगति दिखाई है
ग- प्रदूषण मुक्त और लचीले नदी पारिस्थतिकी तंत्र को प्राप्त करने के लिए नियमित निगरानी और अंतर-राज्यीय समन्वय सुनिश्चित करने के लिए सरकार द्वारा कौन-सी प्रणाली अपनाई गई है और
घ- क्या देहरादून और उत्तराखण्ड राज्य के अन्य स्थानों में नदी सुधार कार्य किए जाने की कोई योजना है?
प्रश्न के जवाब मे जल शक्ति राज्य मंत्री राज भूषण चौधरी ने उत्तर दिया किः-
देहरादून में, 118.14 एमएलडी क्षमती की एसटीपी हैं और कुल 44 एमएलडी क्षमता वाले 3 एसटीपी निर्माणाधीन हैं। देहरादून में निर्माणाधीन एसटीपी में नमामि गंगे कार्यक्रम के अंतर्गत स्वीकृत 15 एमएलडी भी शामिल हैं।
जल शक्ति राज्य मंत्री राज भूषण चौधरी ने अपने उत्तर मे बताया किः-
क- सीवेज उपचारः- नमामि गंगे कार्यक्रम के अंतर्गत, अक्टूबर 2025 तक गंगा बेसिन मे 34,809 करोड रूपए की लागत से कुल 216 सीवरेज अवसंरचना परियोजनाएं शुरू की गई हैं, जिससे 6560 मिलियन लीटर प्रतिदिन (एमएलडी) सीवेज उपचार संयंत्रों की क्षमता सृजित की जा सकेगी। इनमें से 3805 एमएलडी क्षमता वाली 138 परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं और चालू हैं।
उपरोक्त के अतिरिक्त, नमामि गंगे के अंतर्गत गंगा बेसिन में सीवेज उपचार की कमियों को दूर करने के लिए संस्थागत, तकनीकी और वित्तीय उपाय किए गए हैं। ये पहल सतत संचालन, बेहतर बहिस्राव गुणवत्ता, सुदृढ़ निगरानी और एकीकृत अवसंरचना विकास सुनिश्चित करती है।
1- हाइब्रिड वार्षिकी माॅडल (एचएएम) के माध्यम से सतत संचालन एवं रखरखाव
एचएएम ने कार्य-निष्पादन-आधारित वार्षिकी भुगतान के साथ दीर्घ-कालिक संचालन एवं रखरखाव की शुरूआत की, जिससे निरंतर, उच्च गुणवत्ता वाला कार्य संचालन सुनिश्चित हुआ है।
2- केपीआई आधारित भुगतान और डिजिटल निगरानी निरंतर ऑनलाइन बहिस्राव जल निगरानी प्रणालियां (ओसीईएमएस) और स्काडा, बीओडी आदि जैसे प्रमुख कार्य-प्रदर्शन संकेतकों की वास्तविक समय पर ट्रेकिंग किया जाना सुनिश्चित करते हैं।
3- सुदृढ़ अवरोधन और विपथन (आई-डी)- नदी में आकर मिलने से पहले प्रमुख नालों को मिलने से रोकने के लिए नई आई-डी संरचनाएं निर्मित की गई हैं। इससे एसटीपी में अंतर्वाह बढा है और अनुपचारित निर्वहन जल कम हुआ है।
4- आधुनिक उपचार प्रौद्योगिकियां- नए एसटीपी में एसीबीआर, एमबीबीआर और ए2ओ प्रक्रियाओं जैसी प्रौद्योगिकियों का उपयोग किया जाता है। उच्च उपचार गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए बहिस्राव जल मानकों को बीओडी ढ. 10 मि.ग्रा/ली. तक सीमित कर दिया गया है।
5- सेप्टेज और फेकल स्लज प्रबंधन (एफएसएम) सीवर रहित शहरों के लिए, एफएसटीपी और एसटीपी में सह-उपचार ड्रेनों में आकर मिलने वाले सेप्टेज-संबंधी प्रदूषण का समाधान करते हैं।
6- तृतीय पक्ष आकलन और गुणवत्ता आश्वासन आईआईटी और अन्य प्रतिष्ठित संस्थान/एजेंसियां विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) और यदि आवश्यक हो तो, निर्माण कमीशनिंग और कार्य प्रदर्शन मापदंडों का स्वतंत्र सत्यापन प्रदान करती है।
औद्योगिक प्रदूषण का प्रबंधनः-
1- सीपीसीबी वर्ष 2017 से तृतीय पक्ष तकनीकी संस्थानों और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड/समिति (एसपीसीबी/पीसीसी) के अधिकारियों की संयुक्त टीमों द्वारा गंगा नदी के मुख्य भाग वाले राज्यों मेें संचालित ऐसे अत्यधिक की संयुक्त टीमों द्वारा गंगा नदी के मुख्य भाग वाले राज्यों में संचालित ऐसे अत्यधिक प्रदूषणकारी उद्योगों (जीपीआई) जिनमें गंगा नदी और उसकी सहायक नदियों में निर्वहन की संभावना होती है, का वार्षिक निरीक्षण करता है। वर्ष 2020 से यमुना नदी के मुख्य प्रवाह वाले राज्यों में संचालित जीपीआई को भी वार्षिक निरीक्षण में शामिल किया गया है। यह ध्यान देने योग्य है कि, जीपीआई ऐसे उद्योग हैं जिनमें 100 कि0ग्रा0/दिन बीओडी भार और विषाक्त बहिस्राव निर्वहन की क्षमता होती है। प्रदूषण नियंत्रण प्रणाली की विफलता की स्थिति में एसपीसीबी/पीसीसी द्वारा आवश्यक कार्रवाई की जाती है, या तो कारण बताओं नोटिस जारी किया जाता है या जल अधिनियम, 1974/वायु अधिनियम, 1981 के अंतर्गत बंद करने के निर्देश दिए जाते हैं।
2- सीपीसीबी ने लुगदी और कागज, चीनी, डिस्टीलेरी, कपडा और चर्मशोधन जैसे प्रमुख औद्योगिक क्षेत्रों के परामर्श से चार्टर विकसित किया, जिसके परिणामस्वरूप ताजे पानी की खपत, अपशिष्ट जल निर्वहन और प्रदूषण भार कम हुआ और अनुपालन में सुधार हुआ।
बाढ़ मैदान का संरक्षण
जल शक्ति मंत्रालय के अंतर्गत केंद्रीय जल आयोग ने ‘‘जुलाई, 2025 में बाढ़ क्षेत्रीकरण पर तकनीकी दिशानिर्देश’’ जारी किए हैं। ये दिशानिर्देश संबंधित राज्यों में बाढ़ मैदानों के सीमांकन के लिए एक संरचित मार्गदर्शन दस्तावेज प्रदान करते हैं।
ख- केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) वर्तमान में राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों (एसपीसीबी)/प्रदूषण नियंत्रण समितियों (पीसीसी) के साथ मिलकर देश के 4922 स्थानों पर जलीय संसाधनों की जल गुणवत्ता की निगरानी करता है, जिसमें नदियों पर 2260 स्थान, झीलों पर 587, तालाबों पर 143 टैंकों पर 102, भूजल पर 1271 स्थान और राष्ट्रीय जल गुणवत्ता निगरानी कार्यक्रम (एनडब्ल्यूएमपी) के तहत अन्य जल निकायों पर 559 निगरानी स्थान शामिल हैं।
सीपीसीबी नदियों के जल गुणवत्ता आंकडों के आधार पर प्रदूषित नदी खंडों (पीआरएस) को चिन्हित करता है, नदी के वे ख्ंाड जो बाहर स्नान के लिए जैव रासायनिक ऑक्सीजन मांग (बीओडी), (जैविक प्रदूषण सूचक) के प्राथमिक जल गुणवत्ता मापदंड को पूरा नहीं करते, उन्हें प्रदूषित खंड माना जाता है। 3 मिलीग्राम/लीटर से अधिक बीओडी मान को प्रदूषित खंड माना जाता है। पीआरएस को प्राथमिकता वर्ग I से V तक वर्गीकृत किया गया है। प्राथमिकता I सबसे प्रदूषित (बीओडी मान > 30 मिलीग्राम/लीटर) और प्राथमिकता V सबसे कम प्रदूषित (बीओडी मान 3-6 मिलीग्राम/लीटर के बीच) है।
जिन राज्यों ने वर्ष 2018 में चिन्हित किए गए और वर्ष 2022 और 2023 के जल गुणवत्ता आंकडों के आकलन में चिन्हित नहीं गए पीआरएस की संख्या में कमी करके प्रगति प्रमाणित किए गए उन्हें अनुलग्नक-1 में रखा गया हैैै। जिन राज्यों ने वर्ष 2022 और 2023 के जल गुणवत्ता आंकडों के आकलन के दौरान वर्ष 2018 में चिन्हित किए गए (पीआरएस के प्राथमिकता वर्गीकरण के अनुसार निम्न प्राथमिकता वर्ग में बदलाव से परिलक्षित) की जल गुणवत्ता में सुधार करके प्रगति प्रमाणित किए है, उन्हें अनुलग्नक-1 में रखा गया है।
राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन ने उपचारित जल के सुरक्षित पुनः उपयोग हेतु एक राष्ट्रीय रूपरेखा (एसआरटीडब्ल्यू) विकसित किया है जो उपचारित अपशिष्ट जल के पुनः उपयोग पर राज्य नीतियां विकसित करने में राज्यों में मार्गदर्शन प्रदान करता है। उपचारित जल के पुनः उपयोग के कुछ उल्लेखनीय उदाहरण गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, हरियाणा और तमिलनाडू राज्यों में हैं।
गः- नमामि गंगे कार्यक्रम के अंतर्गत, केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर मजबूत निगरानी तंत्र मौजूद हैं, और इनमें निम्नलिखित शामिल हैंः-
- सशक्त कार्यबल (ईटीएफ) की बैठकेंः गंगा संरक्षण पर सशक्त कार्यबल की बैठकें केंद्रीय जल शक्ति मंत्री की अध्यक्षता में संबंधित राज्यों और हितधारकों की भागीदारी के साथ की जाती हैं।
- केंद्रीय निगरानी समिति (सीएमसी): सचिव, जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग की अध्यक्षता में केंद्रीय निगरानी समिति के माध्यम से समीक्षा की जाती है।
- एनएमसीजी द्वारा समीक्षाः- राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) द्वारा राज्य स्तर पर प्रगति और समन्वय की समीक्षा के लिए राज्य कार्यक्रम प्रबंधन समूहों/राज्य स्वच्छ गंगा मिशनों के साथ बैठकें की जाती हैं।
- नदी जल की गुणवत्ता और एसटीपी के कार्य निष्पादन के लिए सीपीसीबी/एसपीसीबी द्वारा नियमित निगरानी।
(घ): नमामि गंगे कार्यक्रम के अंतर्गत, अक्टूबर 2025 तक, गंगा बेसिन में 244 मिलियन लीटर प्रतिदिन (एमएलडी) एसटीपी उपचार क्षमता सृजित करने के लिए 1,743 करोड रूपये की लागत से कुल 42 सीवरेज अवसंरचना परियोजनाएं शुरू की गई हैं। इनमें से 195 एमएलडी क्षमता वाली 38 एसटीपी परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं और संचालित हो गई हैं।
देहरादून में, 118.14 एमएलडी क्षमती की एसटीपी हैं और कुल 44 एमएलडी क्षमता वाले 3 एसटीपी निर्माणाधीन हैं। देहरादून में निर्माणाधीन एसटीपी में नमामि गंगे कार्यक्रम के अंतर्गत स्वीकृत 15 एमएलडी भी शामिल हैं।


