कोटद्वार : नगर का विजयदशमी उत्सव मंगलवार प्रातः 7.30 बजे को जानकीनगर विद्यामंदिर में हुआ। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) ने विजयदशमी के पर्व को स्थापना दिवस के रूप में मनाया गया। आरएसएस के सदस्यों ने शस्त्र पूजन किया। इस अवसर पर सुबह के समय कार्यक्रम का शुभारंभ शस्त्र पूजन के साथ हुआ, जिसमें जिला संचालन विषणु, जिला बौद्धिक प्रमुख सतीश, नगर कार्यवाह प्रशांत, नगर सह कार्यवाह राजेश, नगर प्रचार प्रमुख राजेश जोशी समेत कई स्वमसेवको ने शस्त्रों पर पुष्प चढ़ाकर पूजन किया। जिला बैद्धिक प्रमुख सतीश ने अपने उद्बोधन में कहा कि विजयादशमी का मतलब बुराई पर अच्छाई की विजय है। उन्होंने बताया कि हिंदुओं को एकजुट करने के लिए 1925 में विजयादशमी के दिन आरएसएस की स्थापना की गई थी। धीरे-धीरे लोग संघ के साथ जुड़ते गए। वर्तमान में देश में संघ की चार हजार से ज्यादा शाखाएं चल रही हैं। विदेशों में भी संघ का कार्य फैल रहा है। उन्होंने कहा कि भारत देश ही दुनिया में एक मात्र ऐसा देश है, जहां पर स्वतंत्रता के उपरांत भी सीमाओं पर आए दिन फायरिंग होती है।
प्रभु उन्होंने स्मरण करवाया की श्रीराम का जीवन आदर्श और कर्तव्यों पर आधारित है इसलिए उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है। रामचरित मानस के द्वारा तुलसीदास ने प्रभु श्रीराम के जीवन से उनके आदर्शों को सीखने का संदेश दिया है। लंका चढ़ाई के समय श्रीराम ने विनयपूर्वक समुद्र से मार्ग देने की गुहार लगाई। समुद्र से आग्रह करते हुए श्रीराम को तीन दिन बीत गए। लेकिन समुद्र का उस पर कोई प्रभाव नहीं हुआ, तब भगवान राम समझ गए कि अब अपनी शक्ति से उसमें भय उत्पन्न करना अनिवार्य है। वहीं लक्ष्मण तो पहले से ही आग्रह के पक्ष में नहीं थे, क्योंकि वे श्रीराम के बाण की अमोघ शक्ति से परिचित थे। वे चाहते थे कि उनका बाण समुद्र को सुखा दे और सेना सुविधा से उस पार शत्रु के गढ़ लंका में पहुंच जाएप्रभु श्रीराम समुद्र के चरित्र को देखकर ये समझ गए कि अब आग्रह से काम नहीं चलेगा, बल्कि भय से काम होगा। तभी श्रीराम ने अपने महा-अग्निपुंज-शर का संधान किया, जिससे समुद्र के अन्दर ऐसी आग लग गई कि उसमें वास करने वाले जीव-जन्तु जलने लगे। तब समुद्र प्रभु श्रीराम के समक्ष प्रकट होकर हाथ में अनेक बहुमूल्य रत्नों का उपहार ले अपनी रक्षा के लिए याचना करने लगा और कहने लगा कि वह पंच महाभूतों में एक होने के कारण जड़ है। अतः श्रीराम ने शस्त्र उठाकर उसे उचित सीख दी। रामायण की कथा से हमें यह सीख मिलती है कि यदि आग्रह से जब काम न बने तो फिर भय से काम निकाला जाता है।
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