कोटद्वार : आज पत्रकारिता दिवस है। पीएम से सीएम तक सब बधाइयां दे रहें हैं। पत्रकारों के योगदान को सलाम ठोका जा रहा है, पर वह सलाम बस सोशल मीडिया में ही नजर आता है। उत्तराखंड में जीरो टॉलरेंस का दावा करने वाली त्रिवेंद्र सरकार में हिंदी पत्रकारिता दिवस के दिन ही खनन माफिया ने पत्रकार को ठोकने का प्लान बना डाला।
रात के अंधेरे में नदियों का सीना छलनी किया जा रहा है और जब इस काले कारनामे को उजागर करने के लिए राज्य आंदोलनकारी और सीनियर जर्नलिस्ट राजीव गौड़ अपने साथियों के साथ पहुंचे तो खनन माफियाओं ने उन पर पहले फायर झोंका और जब बच गए तो पिस्तौल की बट से उनका सर पर आघात किया है । इस हमले में राजीव गौड़ घायल हो गए।
सवाल केवल घायल होने का नहीं। सवाल खनन माफिया के बुलंद हौसलों का है। सरकार पुलिस और प्रशासन की खुली छूट से ही खनन माफिया इतनी हिम्मत जुटा पा रहे हैं कि वह पत्रकारों पर भी जानलेवा हमला करने से पीछे नहीं रह रहे। इतना ही नहीं पत्रकार के साथ मारपीट करने और गोली चलाने के बाद थाने में भी पुलिस के सामने ही अभद्रता की गई।
पत्रकार पर हमला करने का प्रयास किया गया और पुलिस चुपचाप देखती रही। इतना कुछ होने के बाद भी पुलिस तहरीर मांग रही है। सवाल यह है कि क्या पुलिस तभी कार्रवाई करेगी जब कोई तहरीर देगा? सवाल इस बात पर है कि जीरो टालरेंस की त्रिवेंद्र सरकार में रात को नदियों का सीना छलनी करने की परमिशन किसने दी ? वह कौन जिम्मेदार अधिकारी है, जिसके रहते अवैध खनन किया जा रहा है ?
खनन माफिया की करतूत को पुलिस और प्रशासन को उजागर करना था। उन पर नकेल कसनी थी ? ऐसे में पत्रकार ने खनन माफिया के कारनामों को उजागर करने का प्रयास किया तो सफेदपोशों के चेलों ने पत्रकार पर ही हमला कर दिया। पत्रकार संगठनों ने चेतावनी दी है कि अगर जल्द कार्रवाई नहीं हुई तो आंदोलन किया जाएगा।
Discussion about this post