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IIT रुड़की के रिसर्च स्कॉलर प्रतीक त्रिपाठी ने नासा के एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन के प्रतिष्ठित आर्टेमिस प्रोग्राम में दिया अहम् योगदान

शोधार्थी ने उच्च स्तरीय चयन के माध्यम से 10-सप्ताह के सालाना समर इंटर्न प्रोग्राम में भाग लिया

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posted on : सितम्बर 15, 2022 12:10 पूर्वाह्न
उनका शोध बताता है कि अंतरिक्ष यात्री 2 घंटे के भीतर लैंडिंग साइट से एक स्थायी छाया क्षेत्र (पीएसआर) जा कर लौट सकते हैं।
प्रोग्राम का क्रियान्वय लूनर एंड प्लैनेटरी इंस्टीट्यूट (एलपीआई) और नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (एनएएसए) ने किया।

रुड़की : भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की (आईआईटी रुड़की) के रिसर्च स्कॉलर प्रतीक त्रिपाठी एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (एनएएसए) के प्रतिष्ठित आर्टेमिस प्रोग्राम में योगदान देने के लिए चुने गए थे। यह उच्च स्तरीय चयन के माध्यम से 10-सप्ताह का सालाना समर इंटर्न प्रोग्राम ग्रैजुएट शोध विद्वानों के लिए है जो चंद्रमा के लिए आर्टेमिस मिशन में सहायक योगदान देंगे। प्रोग्राम का आयोजन लूनर एण्ड प्लैनेटरी इंस्टीट्यूट (एलपीआई) और नासा ने किया और यह 31 मई से 5 अगस्त 2022 तक के लिए था। इस यात्रा के लिए आर्थिक अनुदान यूनिवर्सिटी स्पेस रिसर्च एसोसिएशन (यूएसआरए) ने दिया था। इस साल प्रोग्राम के लिए आए 300 से अधिक आवेदनों में से चुने गए केवल पांच फेलोशिप में एक प्रतीक त्रिपाठी को दिया गया जो एक रिसर्च स्कॉलर (जियोमैटिक्स इंजीनियरिंग ग्रुप, सिविल इंजीनियरिंग विभाग) हैं और आईआईटी रुड़की के प्रोफेसर राहुल देव गर्ग के मार्गदर्शन में कार्यरत हैं।

 रिसर्च स्कॉलर प्रतीक त्रिपाठी को नासा में स्पेन, यूनाइटेड किंगडम और डोमिनिका के शोधकर्ताओं की अंतर्राष्ट्रीय टीम के साथ काम करने का अवसर मिला और उन्होंने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव में तीन संभावित लैंडिंग साइटों का आकलन किया। उनका मार्गदर्शन एलपीआई के अत्यधिक अनुभवी वरिष्ठ चंद्र वैज्ञानिक डॉ डेविड क्रिंग ने किया। नासा में काम का अनुभव साझा करते हुए  प्रतीक त्रिपाठी, रिसर्च स्कॉलर, आईआईटी रुड़की ने कहा, “एलपीआई के वरिष्ठ चंद्र वैज्ञानिक डॉ डेविड क्रिंग के साथ काम करना बहुत उत्साहवर्धक अनुभव था। मैं आईआईटी रुड़की का भी आभारी हूं जहां मुझे पृथ्वी, चंद्रमा और मंगल के खनिज विज्ञान क्षेत्र में काम करने का अवसर दिया गया।’’

आईआईटी रुड़की के निदेशक प्रो. अजीत कुमार चतुर्वेदी ने उन्हें बधाई देते हुए कहा, “मैं नासा के इस प्रतिष्ठित प्रोग्राम में प्रतीक के चयन और नासा के आगामी चंद्र मिशन के डिजाइन में उनके योगदान के लिए प्रतीक त्रिपाठी और उनके सुपरवाइजर प्रोफेसर आर.डी. गर्ग को बधाई देता हूं।” रिसर्च स्कॉलर प्रतीक त्रिपाठी के शोध कार्य के बारे में प्रोफेसर राहुल देव गर्ग, प्रोफेसर, आईआईटी रुड़की, ने कहा, “प्रतीक अपने काम के प्रति समर्पित हैं और इस सम्मान के बड़े हकदार हैं। मुझे विश्वास है कि वे नासा में प्राप्त ज्ञान का भारत में उपयोग करेंगे जिससे राष्ट्र लाभान्वित होगा।’’

रिसर्च स्कॉलर प्रतीक त्रिपाठी का कार्य लैंडिंग साइटों से स्थायी छाया क्षेत्रों (पीएसआर) तक आने-जाने की संभावित योजनाओं के मद्देनजर ढलान, तापमान, रोशनी और पैदल चलने में लगे समय जैसे मानकों का आकलन करना है। इन पीएसआर में आरंभिक सौर मंडल से अब तक के हाइड्रोजन, हिम जल और अन्य वाष्पशील जीवाश्मों के रिकॉर्ड होते हैं। प्रतीक के परीक्षण में वैज्ञानिकों ने खास दिलचस्पी ली है और यह नासा के आर्टेमिस ।।। मिशन का बुनियादी उद्देश्य बन गया है। रिसर्च स्कॉलर प्रतीक त्रिपाठी के शोध कार्यों के निष्कर्षों के अनुसार अंतरिक्ष यात्री 2 घंटे में लैंडिंग साइट से सुगम पीएसआर आना-जाना कर सकते हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि पहुंचने में आसान पीएसआर में पूरे वर्ष पृथ्वी पर अब तक के न्यूनतम तापमान से काफी अधिक तापमान रहता है। रिसर्च स्कॉलर प्रतीक आईआईटी रुड़की के आभारी हैं जहां उन्हें शांतिपूर्ण और अनुकूल परिवेश और पीएच.डी. करने की सभी सुविधाएं देकर पृथ्वी, चंद्रमा और मंगल के खनिज विज्ञान की विशेषता पर अभूतपूर्व शोध करने का अवसर दिया गया।

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