पहाडों में रोजगार सृजन की उम्मीदों को लगाये पंख
गैरसैण (चमोली)। सपना वह नहीं जो हम नींद में देखते हैं, बल्कि सपना वो है जो आपको सोने नहीं देता… देश के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की कही गयी इन पंक्तियों को सीमांत जनपद चमोली के गैरसैंण ब्लाॅक के सिलंगा गांव निवासी हरेन्द्र शाह नें हकीकत में चरितार्थ करके दिखाया है। हरेन्द्र का सपना था कि वह अपने पहाड़ की बंजर खेती को उपजाऊ बनाए और पहाड़ में ही रोजगार के अवसरों का सृजन करके दूसरे युवाओं को भी रोजगार मुहैया करवाये। खुली आंखों से देखा हरेन्द्र का यह सपना अब धरातल में हकीकत पूरा हो चुका है। हरेन्द्र नें बंजर खेतों को इस कदर उपजाऊ बनाया कि आज ये खेत सोना उगल रहा है। आज हरेन्द्र शाह का वोकल फॉर लोकल माॅडल युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत है।
गैरसैंण प्रखंड के सिलंगा गांव के बेहद सामान्य परिवार से ताल्लुक रखने वाले हरेन्द्र शाह नें बीएससी (पीसीएम) की डिग्री देहरादून के डीएवी कालेज से पूरी की। डिग्री प्राप्त करने के बाद हरेन्द्र के पास अपने सुनहरे भविष्य के लिए बहुत सारे विकल्प थे। वो चाहता तो अच्छी खासी नौकरी के लिए प्रयास करता लेकिन हरेन्द्र का सपना था अपने पहाड़ में रहकर ही कुछ बडा करना है और लोगो के लिए एक उदाहरण भी प्रस्तुत करना है। अपने सपने को सच करने के लिए हरेन्द्र नें सब्जी उत्पादन की ठानी। अपने गांव सिलंगा में खिल नामक स्थान पर बंजर पडी 10 नाली भूमि पर हरेन्द्र नें दो पाॅली हाउस लगाये और बंजर भूमि को उपजाऊ योग्य बनाने में दिन रात एक कर दिया। इसमें हरेन्द्र के परिवार नें भरपूर साथ दिया। हरेन्द्र के परिवार में उनके मां-पिताजी के अलावा तीन बहिनें हैं जिनमें से एक की शादी हो चुकी है। आखिरकार हरेन्द्र की जिद और मेहनत रंग लाई फलतः आज बंजर भूमि में सोना उग रहा है। बीते एक साल के दौरान हरेन्द्र नें लगभग हर प्रकार की सब्जी का उत्पादन किया। मटर, गोबी, शिमला मिर्च, टमाटर, प्याज, मूली, ककडी, खीरा, बैंगन, फ्रासबीन से लेकर हर वो सब्जी उगाई जो आपको सब्जी मंडी में दिखाई देती है।
हरेन्द्र बताते हैं कि शुरू-शुरू में तो उन्हें बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। लोगों नें हतोत्साहित भी किया परंतु परिवार और दोस्तों के सहयोग से ही अपने सपने को सच कर पा रहा हूँ। हरेन्द्र कहते हैं कि मैं सुबह पांच बजे उठ जाता हूं और शाम के ७ बजे तक अपने फार्म में काम करता हूँ। बीते एक साल पहले उन्होंने अपने इस पूरे मिशन को साकार करने में तीन लाख रूपये लगाये। कहते है कि अब जब पीछे मुडकर देखता हूं तो बहुत सुकून मिलता है। आज ये फार्म मुझे अच्छी खासी आमदनी दे रहा है। चार युवाओं को भी रोजगार दिया है और उनका पूरा परिवार भी इससे जुड़ा हुआ है। बताते है कि उन्होंने पूरी तरह जैविक खेती पर जोर दिया है। इसलिए इनकी बहुत मांग है। पूरी सब्जी की खफत मेहलचैरी बाजार में ही हो जाती है। जबकि मांग बहुत है। अब धीरे-धीरे इसको बडे स्तर पर ले जाने का सपना है। सब्जी उत्पादन के साथ साथ डेरी, कुकुट, मत्स्य, मशरूम, कीवी उत्पादन के जरिए मल्टी व्यवसाय को प्राथमिकता देने का प्रयास किया जा रहा है। ताकि लोगों को हर चीज मिल जाये और युवाओं को रोजगार के अवसर। उन्होंने युवाओं से अपील करते हुए कहा कि पहाड़ में रहकर भी बहुत कुछ किया जा सकता है। बस सकारात्मक दिशा में सोचने की आवश्यकता है। साथ ही सरकार को भी युवाओं को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। कोरोना वाइरस के वैश्विक संकट में रोजगार के अवसर सीमित हो गयें हैं ऐसे में युवाओं को इस अवसर को भुना करके अपनी माटी पर भरोसा करना चाहिए। यही माटी बहुत कुछ दे सकती है। सबको आगे आना होगा।
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