चमोली । पहाड़ में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। कहा जाता है की कला और कलाकार को सरहदों के बंधन में नहीं बांधा जा सकता है। राजेन्द्र ने इस कहावत को चरितार्थ करके दिखाया है। राजेन्द्र कभी भी पशुपतिनाथ मंदिर नहीं गये, केवल फोटो में ही मंदिर देखा। लेकिन राजेन्द्र की प्रतिभा ऐसी है की हजारों किलोमीटर दूर स्थित मंदिर को बिना देखें हुये भी उन्होंने उसे आकार देकर जींवत बना डाला।
सीमांत जनपद चमोली के किरूली गांव के बेजोड हस्तशिल्पि राजेन्द्र बडवाल ने पहाड़ की हस्तशिल्प कला को नयी पहचान और नयी ऊंचाई प्रदान की है। राजेंद्र नें लाॅकडाउन का सदुपयोग करते हुए विभिन्न मंदिरों के डिजाइन तैयार किये हैं। इसी कड़ी में उन्होंने पडोसी देश नेपाल के काठमांडू में स्थित प्रसिद्ध पशुपतिनाथ मंदिर का रिंगाल और बांस से हुबहु डिजाइन बना कर हर किसी को अचंभित कर दिया है।
राजेंद्र बडवाल विगत सात सालों से अपनें पिताजी दरमानी बडवाल के साथ मिलकर हस्तशिल्प का कार्य कर रहें हैं। उसके पिताजी पिछले 45 सालों से हस्तशिल्प का कार्य करते आ रहें हैं। राजेन्द्र पिछले पांच सालों से रिंगाल के परम्परागत उत्पादों के साथ-साथ, नये-नये प्रयोग कर इन्हें मार्डन लुक देकर डिजाइन तैयार कर रहे हैं। उनकी बनाई गयी रिंगाल की छंतोली, ढोल दमाऊ, हुडका, लैंप शेड, लालटेन, गैस, टोकरी, फूलदान, घौंसला, पेन होल्डर, फुलारी टोकरी, चाय ट्रे, नमकीन ट्रे, डस्टबिन, फूलदान, टोपी, स्ट्रैं, वाटर बोतल, बदरीनाथ, केदारनाथ, पशुपतिनाथ मंदिर सहित अन्य मंदिरों के डिज़ायनों को लोगों नें बेहद पसंद किया और खरीदा। जिससे राजेन्द्र को अच्छा खासा मुनाफा भी हुआ।
राजेन्द्र बडवाल की हस्तशिल्प के मुरीद उत्तराखंड में हीं नहीं बल्कि देश के विभिन्न प्रदेशों से लेकर विदेशों में बसे लोग भी है। राजेंद्र कहते है कि रिंगाल से विभिन्न प्रकार के डिजायन तैयार करने में काफी मेहनत लग जाती है। मगर उस हिसाब से मुनाफा कम मिलता हैं। सरकार को चाहिए कि हस्त शिल्पियों के लिए कोई ठोस योजना बनाकर उसने उत्पादों को बाजार उपलब्ध करवाये।
कहां है पशुपतिनाथ मंदिर और क्यों है प्रसिद्ध
विश्व में दो पशुपतिनाथ मंदिर प्रसिद्ध है। एक नेपाल के काठमांडू का और दूसरा भारत के मंदसौर का। दोनों ही मंदिर में मुर्तियां समान आकृति वाली है। नेपाल का मंदिर बागमती नदी के किनारे काठमांडू में स्थित है और इसे यूनेस्को की विश्व धरोहर में शामिल किया गया है। यह मंदिर भव्य है और यहां पर सालभर देश-विदेश से पर्यटक मंदिर के दर्शनार्थ आते हैं।
मंदिर में भगवान शिव की एक पांच मुंह वाली मूर्ति है। पशुपतिनाथ विग्रह में चारों दिशाओं में एक मुख और एकमुख ऊपर की ओर है। प्रत्येक मुख के दाएं हाथ में रुद्राक्ष की माला और बाएं हाथ में कमंडल मौजूद है। इस मंदिर में भगवान शिव की मूर्ति तक पहुंचने के चार दरवाजे बने हुए हैं। वे चारों दरवाजे चांदी के हैं। मंदिर प्रत्येक दिन प्रातः चार बजे से रात्रि नो बजे तक खुला रहता है। केवल दोपहर के समय और साय पांच बजे मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते है। पशुपतिनाथ मंदिर को शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक, केदारनाथ मंदिर का आधा भाग माना जाता है।
महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे। इसके लिए वे भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना चाहते थे, लेकिन वे उन लोगों से रुष्ट थे। इसलिए भगवान शंकर अंतध्र्यान होकर केदार में जा बसे। पांडव उनका पीछा करते-करते केदार पहुंच ही गए। भगवान शंकर ने तब तक भैंसे का रूप धारण कर लिया और वे अन्य पशुओं में जा मिले। तब भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर दो पहाडों पर पैर फैला दिया। अन्य सब गाय-बैल और भैंसे तो निकल गए, पर शंकर रूपी भैंसे पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए। भीम बलपूर्वक इस भैंस पर झपटे, लेकिन भैंस भूमि में अंतध्र्यान होने लगा। तब भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया। जो बाद में धरती में समा गए लेकिन पूर्णतः समाने से पूर्व भीम ने उनकी पुंछ पकड़ ली थी। जिस स्थान पर भीम ने इस कार्य को किया था उसे वर्तमान में केदारनाथ धाम के नाम से जाना जाता है। एवं जिस स्थान पर उनका मुख धरती से बाहर आया उसे पशुपतिनाथ कहा जाता है।



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