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फूलचंद नारी शिल्प गर्ल्स इंटर कॉलेज में “स्किल डे” के रूप में मनाया गया “बैग-फ्री डे”

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posted on : अगस्त 30, 2025 4:05 अपराह्न

देहरादून : फूल चंद नारी शिल्प गर्ल्स इंटर कॉलेज ने “बैग-फ्री डे” इस विशेष अवसर को ‘स्किल डे’ के रूप में मनाया। “स्किल डे के आयोजन में तकनीकी सहयोग ‘स्पेक्स’ (SPECS) नामक विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी से जुड़ी गैर-सरकारी संस्था (NGO) द्वारा प्रदान किया गया।” उत्तराखंड राज्य के सभी स्कूलों में आज “बैग-फ्री डे” मनाया गया। इस दिन बच्चों को किताबों और कॉपियों के बोझ से मुक्त कर रचनात्मकता, विज्ञान और जीवन-उपयोगी कौशल (life skills) सिखाने पर ज़ोर दिया गया।

कार्यक्रम का उद्देश्य छात्राओं में वैज्ञानिक दृष्टिकोण, नवाचार (innovation) और उद्यमशीलता (entrepreneurship) की भावना विकसित करना था। अलग-अलग गतिविधियों के माध्यम से बच्चियों को यह अनुभव कराया गया कि कैसे साधारण वस्तुओं से उपयोगी चीजें बनाई जा सकती हैं, और कैसे विज्ञान जीवन को सरल और टिकाऊ (sustainable) बना सकता है।

गोबर से दीया बनाने की कला-इस गतिविधि में छात्राओं को गोबर से सुंदर दीये बनाना सिखाया गया। सबसे पहले गोबर को सुखाकर उसका महीन पाउडर तैयार किया गया। इसके बाद उसमें मुल्तानी मिट्टी और ग्वारगम मिलाकर एक मज़बूत मिश्रण (paste) तैयार किया गया। फिर तैयार मिश्रण को डाई और मशीन की मदद से दीये के आकार में ढाला गया। इस प्रक्रिया के माध्यम से छात्राओं को यह भी समझाया गया कि मिट्टी का संरक्षण क्यों आवश्यक है। मिट्टी बनने में सैकड़ों वर्ष लग जाते हैं जबकि गोबर रोज़ाना आसानी से उपलब्ध होता है। अतः गोबर से दीया बनाना न केवल पर्यावरण के अनुकूल है, बल्कि इससे व्यवसायिक अवसर भी पैदा हो सकते हैं। यह गतिविधि छात्राओं के लिए सस्टेनेबल डेवलपमेंट (Sustainable Development) का एक जीवंत उदाहरण बनी।

एलईडी बल्ब बनाने की गतिविधि-दूसरी गतिविधि में छात्राओं को इलेक्ट्रॉनिक किट से परिचित कराया गया। विशेषज्ञों ने उन्हें इलेक्ट्रॉनिक पार्ट्स, उनके कार्य और जोड़ने की प्रक्रिया के बारे में विस्तार से बताया। इस प्रशिक्षण से बच्चियों को इलेक्ट्रॉनिक साक्षरता (Electronic Literacy) मिली। इसके बाद उन्हें एलईडी बल्ब बनाना सिखाया गया। छात्राओं ने खुद अपने हाथों से बल्ब तैयार किए और उसकी कार्यप्रणाली समझी। यह न केवल विज्ञान की व्यावहारिक शिक्षा थी, बल्कि छात्रों को भविष्य में नवाचार आधारित स्टार्टअप्स (innovation-based startups) की संभावनाओं से भी अवगत कराया गया।

वेस्ट से बेस्ट – रचनात्मक कौशल-कार्यक्रम का तीसरा आकर्षण था – वेस्ट मटेरियल का उपयोग करके उपयोगी वस्तुएँ बनाना। पुरानी काँच की बोतलों से एलईडी लैंप तैयार करना सिखाया गया। यह पूरी तरह से हैंड्स-ऑन एक्टिविटी थी। छात्राओं ने बोतलों को सजाकर उन्हें सुंदर लैंप का रूप दिया, जिससे रचनात्मकता और विज्ञान का अद्भुत मेल दिखाई दिया। इसके अलावा, पुरानी प्लास्टिक बोतल से ‘टिप-टिप वॉश बोतल’ बनाई गई। यह बोतल हाथ धोने के लिए उपयोगी है और इससे लगभग 70% पानी की बचत होती है। इस गतिविधि ने छात्राओं को जल संरक्षण (water conservation) और अपशिष्ट प्रबंधन (waste management) का व्यावहारिक ज्ञान दिया।

‘स्किल डे’ कार्यक्रम ने छात्राओं को यह अनुभव कराया कि सीखना केवल किताबों तक सीमित नहीं है, बल्कि रोज़मर्रा की चीजों और वैज्ञानिक प्रयोगों से भी ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। इस अवसर पर बच्चियों ने न केवल नए कौशल सीखे, बल्कि पर्यावरण संरक्षण, ऊर्जा बचत और उद्यमशीलता के महत्व को भी समझा। इस प्रकार “बैग-फ्री डे” को एक यादगार और सार्थक ‘स्किल डे’ के रूप में मनाया गया, जिसमें विज्ञान और कौशल को खेल-खेल में जीवन से जोड़ा गया।
इस अवसर पर प्रधानाचार्या मोना बाली एवं शिक्षिकाएं शांति बिष्ट, रेनू जोशी, सुषमा कोहली, मीनू गुप्ता, यशिका बिष्ट, गीता कुमार, विजयलक्ष्मी, कृष्णा मंगाई, सुधारानी, पूनम कनौजिया, शर्मिला कोहली, बीना देवी एवं छात्राएं अदीबा, काजल, निशा, अंशिका, अंजलि, प्रिया, दिव्या, पारुल, रणजीता मदीहा, आरुषि, आराध्या, रोशनी, प्रिया, प्रियंका, रागनी, रागिनी कुमारी चांदनी, मुस्कान, इंदिरा आदि छात्राओं ने भाग लिया।

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