posted on : नवम्बर 16, 2023 4:52 अपराह्न
कोटद्वार । संस्कार भारतीयों की सम्पत्ति है संस्कार उसे कहते हैं जो स्वयं बढे और दुसरे को भी आगे बढ़ाएं । संस्कार हमारी शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक उन्नति का आधार स्तंभ हैं। अहंकारी लोग अपना ढिंढोरा खुद पीटना पसंद करते हैं। किसी का अहंकार उसकी अपनी महत्ता का बोध होता है। अहंकार से भरा व्यक्ति दूसरों को नीचा दिखाकर खुश होता है।संस्कार से भरा व्यक्ति स्वयं झुककर दूसरों को सम्मान देकर खुश होता है । यह बातें ज्योतिष्पीठ बद्रिकाश्रम व्यासपीठालंकृत आचार्य शिवप्रसाद ममगांई ने चोपड़ा कल्जीखाल पौड़ी में कहीं । श्रीमद भागवत कथा के माध्यम से गौ, गंगा, गौरी रक्षा का सन्देश देते हुए कहा कि हमारा मन वह मन और इंद्रियों से परे, निर्मल, विनाशरहित, निर्विकार, सीमारहित और सुख की राशि है। वेद ऐसा गाते हैं कि वही तू है, (तत्वमसि), जल और जल की लहर की भाँति उसमें और तुझमें कोई भेद नहीं है ईश्वर न तो दूर है और न अत्यंत दुर्लभ ही है, बोध स्वरूप एकरस अपना आत्मा ही परमेश्वर है, नाम और रूप विभिन्न दिखते हैं, आचार्य ममगांई कहते हैं धर्म को जानने वाला दुर्लभ होता है, उसे श्रेष्ठ तरीक़े से बताने वाला उससे भी दुर्लभ, श्रद्धा से सुनने वाला उससे दुर्लभ और धर्म का आचरण करने वाला सुबुद्धिमान सबसे दुर्लभ है । भगवान व्यवस्था नहीं जीवन की अवस्था देखते हैं, वो व्याकुलता देखते हैं, भगवान के लिये तड़प चाहिए ।