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विश्व का अकेला ​प्रसिद्ध त्रिनेत्र गणेश जी मंदिर, जहां गणेश जी अपने पूरे परिवार संग हैं विराजमान, लंका कूच के पहले भगवान राम ने की थी पूजा

श्रीकृष्ण ने यहीं गणेश जी को मनाया था

विश्व का अकेला ​प्रसिद्ध त्रिनेत्र गणेश जी मंदिर, जहां गणेश जी अपने पूरे परिवार संग हैं विराजमान, लंका कूच के पहले भगवान राम ने की थी पूजा
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posted on : जून 17, 2023 10:52 पूर्वाह्न

रणथंभौर : गणेश जी का यह मंदिर कई मामलों में अनूठा है। इस मंदिर को भारत का ही नहीं विश्व का पहला गणेश मंदिर माना जाता है। यहां गणेश जी की पहली त्रिनेत्र प्रतिमा विराजमान है। यह प्रतिमा स्वयंभू प्रकट है। देश में ऐसी केवल चार गणेश प्रतिमाएं ही हैं। इसके अलावा पूरी दुनिया में यह एक ही मंदिर है, जहां गणेश जी अपने पूर्ण परिवार, दो पत्नी-रिद्धि और सिद्धि एवं दो पुत्र- शुभ और लाभ, के साथ विराजमान है। यह है राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले के रणथंभौर में स्थित ​प्रसिद्ध त्रिनेत्र गणेश जी मंदिर । इसे रणतभंवर मंदिर भी कहा जाता है। यह मंदिर 1579 फीट ऊंचाई पर अरावली और विंध्याचल की पहाड़ियों में स्थित है। जयपुर से मंदिर की दूरी 142 किलोमीटर के लगभग है। इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह यहां आने वाले पत्र। घर में शुभ काम हो तो प्रथम पूज्य को निमंत्रण भेजा जाता है। इतना ही नहीं परेशानी होने पर उसे दूर करने की अरदास भक्त यहां पत्र भेजकर लगाते है। रोजाना हजारों निमंत्रण पत्र और चिट्ठियां यहां डाक से पहुंचती हैं।

जनश्रुति के अनुसार, महाराजा हम्मीरदेव चौहान व दिल्ली शासक अलाउद्दीन खिलजी का युद्ध 1299-1301 ईस्वी के बीच रणथम्भौर में हुआ था। इस दौरान नौ महीने से भी ज्यादा समय तक यह किला दुश्मनों ने घेरे रखा। दुर्ग में राशन सामग्री समाप्त होने लगी तब गणेशजी ने हमीरदेव चौहान को स्वप्न में दर्शन दिए और उस स्थान पर पूजा करने के लिए कहा जहां आज यह गणेशजी की प्रतिमा है। हमीर देव वहां पहुंचे तो उन्हे वहां स्वयंभू प्रकट गणेशजी की प्रतिमा मिली। हमीर देव ने फिर यहां मंदिर का निर्माण कराया। यहां के त्रिनेत्र गणेश जी का उल्लेख रामायण काल और द्वापर युग में भी मिलता है। कहा जाता हैं कि भगवान राम ने लंका कूच से पहले गणेशजी के इसी रूप का अभिषेक किया था। एक और मान्यता के अनुसार द्वापर युग में भगवान कृष्ण का विवाह रूकमणी से हुआ था। इस विवाह में वे गणेशजी को बुलाना भूल गए। गणेशजी के वाहन मूषकों ने कृष्ण के रथ के आगे-पीछे सब जगह राह खोद दिया। तब भगवान कृष्ण को अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने गणेशजी को मनाया। भगवान कृष्ण ने जहां गणेशजी को मनाया, वह स्थान रणथंभौर था। यही कारण है कि रणथम्भौर गणेश को भारत का प्रथम गणेश कहते है। मान्यता है कि विक्रमादित्य भी हर बुधवार को यहां पूजा करने आते थे। देश में चार स्वयंभू गणेश मंदिर माने जाते है, जिनमें रणथम्भौर स्थित त्रिनेत्र गणेश जी प्रथम है। इस मंदिर के अलावा सिद्धपुर गणेश मंदिर गुजरात, अवंतिका गणेश मंदिर उज्जैन एवं सिद्दपुर सिहोर मंदिर मध्यप्रदेश में स्थित है।

 

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