गुरूवार को विधि विधान के साथ खुले फ्यूला नारायण के कपाट
जोशीमठ (चमोली)। चमोली जिले के जोशीमठ विकास खंड के उर्गम घाटी में फ्यूला नारायण एक ऐसा मंदिर है जहां पर पुरूष पुजारी के साथ महिला पुजारी का भी विधान है। यहां पर महिला पुजारी भी वही सब अनुष्ठान करती है जो पुरूष पुजारी करता है। इस वर्ष इस मंदिर में पुरूष पुजारी के साथ महिला पुजारी का दायित्व पार्वती देवी को सौंपा गया है, जिसे फ्यूल्यांण भी कहते हैं। फ्यूला नारायण मंदिर के कपाट गुरूवार को प्रातः 11 बजे पूजा विधान के साथ आम श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गये है।
समुंद्र तल से 10 हजार फीट की उंचाई पर स्थित फ्यूला नारायण मंदिर पंच केदारों में एक केदार कल्पनाथ मंदिर के शीर्ष पर स्थित है। फ्यूला नारायण मंदिर में हर वर्ष क्षेत्र के भेटा, भर्की, पिलखी, ग्वाणा व अरोसी गांव के लोग बारी-बारी से इस मंदिर में पूजा अर्चना करते है। इस वर्ष इसका दायित्व पुरूष पुजारी के रूप में भेटा गांव के हर्षबर्धन सिंह चैहान व महिला पुजारी का दायित्व पार्वती देवी को को सौंपा गया है। कपाट खुलने से पूर्व साढे नौ बजे भर्की गांव के पंचायत चैक ने नव नियुक्त पुजारी हर्षवर्धन सिंह चैहान को चिमट्टा व घंटी सौंपी गई तथा महिला पुजारी अर्थात फ्यूल्यांण पार्वती देवी को फूलों की कंडी व मक्खन रखने वाला पात्र (वर्तन) दिया गया है। मंदिर में भंडारे का भी आयोजन किया गया। नंदा स्वनुल देवी के पुजारी अब्बल सिंह पंवार व मंगल सिंह चैहान ने विधि विधान के साथ मंदिर के कपाट खोलने की प्रक्रिया पूर्ण की।
क्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ता लक्ष्मण सिंह नेगी ने बताया कि फ्यूला नारायण मंदिर में जो भी पुजारी नियुक्त होता है उसके परिवार में जितनी भी दूध देने वाली गाय होती है सभी कपाट खुलने के दिन मंदिर में ले जायी जाती है साथ ही पुजारी गांव के प्रत्येक परिवार आटा व चावल देता है जिससे यहां पर भंडारे का आयोजन किया जाता है। कपाट खुलने के अवसर पर मेला समिति के अध्यक्ष हर्षवर्धन फरस्वाण, पूर्व अध्यक्ष रामचंद्र कंडवाल, उपाध्यक्ष प्रेमसिंह, प्रधान मंजू देवी, दुलब सिंह, लक्ष्मणसिंह नेगी आदि मौजूद थे।
यह भी थी परंपरा
लक्ष्मण सिंह नेगी ने बताया कि पुरानी पंरपरा के अनुसार फ्यूला नारायण मंदिर से ही बदरीनाथ जाने का पैदल मार्ग था। यहां ध्यानबदरी में पहले एक घराट (पन चक्की) हुआ करती थी जहां से बदरीनाथ के लिए गेहूं की पीसाई कर बकरियों में लाद कर भेजा जाता था। लेकिन जब से सड़क मार्ग बना है यह प्रक्रिया लगभग समाप्त प्राय हो गई है।
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