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उत्तराखंड के पर्यटन के लिए मील का पत्थर साबित होगा चमोली का यह हिमालयी ट्रैकिंग रूट

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posted on : अगस्त 22, 2020 4:57 अपराह्न

देवाल (चमोली)। सीमांत जनपद चमोली में पर्यटन की दृष्टि से कई ऐसे गुमनाम पर्यटन स्थल है जो आज भी देश दुनिया की नजरों से दूर हैं। यदि इन गुमनाम पर्यटक स्थलों को सुनियोजित तरीके से विकसित किया जाय तो ये आनें वाले समय में रोजगार के अवसरों का सृजन करके पहाड़ से हो रहे पलायन को रोकने में महत्वपूर्ण कदम साबित होगा। हम आज आपको हिमालय के ऐसे ही एक गुमनाम और खूबसूरत ट्रैकिंग रूट से रूबरू करवाते हैं। जहां पर्यटन की असीमित संभावनाएं हैं। प्रकृति की इस अनमोल नेमत को देखकर आप भी कह उठेंगे वाहह..

चमोली जिले के देवाल ब्लॉक में प्रकृति नें अपना सब कुछ न्योछावर किया है। यहां की बेपनाह खूबसूरती हर किसी को मंत्रमुग्ध कर देती है। एशिया के सबसे बडा आली और वेदनी के मखमली घास के बुग्याल हो या फिर रूपकुण्ड और ब्रहमताल की सुंदरता। जिनको देखने के बाद हर कोई अभिभूत हो जाता है। लेकिन इन सबके इतर पिंडर नदी और कैल नदी के बीच में लगभग 25 किलोमीटर का मानमती-चन्याली-सौरीगाड-नागाड-बगजी-दयालखेत-घेस, ट्रैकिंग रूट हिमालय का सबसे खूबसूरत ट्रैक हैं। यदि इस रूट को विकसित करके यहां पर्यटन की गतिविधियों को संचालित किया जाता है तो ये उत्तराखंड के पर्यटन के लिए मील का पत्थर साबित होगा। यही नहीं इससे हजारों लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिलेगा। जो इस सदूरवर्ती इलाके से रोजगार के लिए हो रहे पलायन को रोकने में भी मददगार साबित होगा।

गौरतलब है कि यह ट्रैकिंग रूट दो जगहों से किया जा सकता है। पहला देवाल की पिंडर घाटी में देवाल से मानमती तक गाडी में फिर वहां से चन्याली-सौरीगाड होते हुए नागाड बुग्याल जहां से बगजी बुग्याल होते हुये दयालखेत और अंत में घेस पहुंचा जा सकता है। नागाड जो समुद्रतल से 2500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित एक रमणिक स्थल है। जहां वर्षाकाल में सोरीगाढ़ एवं चन्याली के पशुपालक दो-तीन महीने अपने मवेशियों के साथ रहते हैं। यहां पहुंचकर प्रकृति की गोद में जो आनंद और सुकून मिलता है उसे शब्दों में बंया नहीं किया जा सकता है। जबकि दूसरा रास्ता कैल घाटी में देवाल से घेस तक गाडी में फिर वहां से दयालखेत- बगजी बुग्याल- नागाड- सौरीगाड- चन्याली होते हुए मानमती पहुंचा जा सकता है। बगजी बुग्याल 3200 मीटर की ऊचाई और लगभग चार किमी के विस्तृत भू भाग पर अव्यवस्थित है। इस ट्रैकिंग रूट पर आपको हिमालय के मखमली घास के बुग्याल, हिमाच्छादित शिखर, पहाड़ की परम्परागत छानियां, ताल, बादलों और फूलों का अदभुत संसार, हिमालय के पशु पक्षियों का कलरव आनंदित करता है जबकि हिमालय की बेपनाह सुंदरता और सूर्य के उगने व ढलने का नयनाभिराम दृश्य भी देखने को मिलेगा। इस ट्रैक रूट को करवाने के लिए आपको स्थानीय ट्रैकिंग गाइड आसानी से मिल जाते हैं।

बता दें कि उत्तराखंड में मात्र आठ प्रतिशत लोग ही पर्यटन से सीधा फायदा रोजगार के रूप में ले रहे हैं। पलायन आयोग की ओर से विगत दिनों चमोली की रिपोर्ट प्रस्तुत की गयी जिसमें चमोली से रोजगार के लिए पलायन करने वाले लोगों का प्रतिशत 49.30 है। जिसमें से 43 फीसदी युवा 26-35 वर्ष की उम्र के हैं। ऐसे में यदि इन युवाओं को अपनें ही घर में रोजगार के अवसर मिलते हैं तो जरूर पलायन पर रोक लग सकेगी। पलायन आयोग ने भी माना है कि यदि चमोली के पर्यटन स्थलों को विकसित करके इनके प्रचार प्रसार किया जाय तो यहां पर्यटकों को आकर्षित किया जा सकता है। इसके अलावा यहां ईको टूरिज्म, साहसिक पर्यटन, ट्रैकिंग, हाइकिंग, राफ्टिंग, वन्य जीव पर्यटन को बढ़ावा देते हुए पर्यटन गतिविधियों को संचालित किया जाता है तो इससे जरूर रोजगार के अवसर बढेंगे और स्थानीय लोगों को आजीविका के साधन उपलब्ध होंगे।

जिले में पर्यटन गतिविधियाँ बढने से स्थानीय उत्पादों को बाजार भी मिलेगा और यहां की पारम्परिक लोकसंस्कृति को बढावा भी मिलेगा। पिछले दिनों देवाल ब्लॉक के विकासपरक सोच रखनें वाले युवा ब्लॉक प्रमुख दर्शन दानू के नेतृत्व में जिला पर्यटन अधिकारी विजेंद्र पांडेय सहित वन विभाग और अन्य लोगो के एक दल नें देवाल ब्लॉक के नागाड़ टॉप का स्थलीय निरक्षण कर ट्रैकिंग व पर्यटन से संबंधित संभावनाओं को तलाशा। इस स्थलीय निरीक्षण का उद्देश्य देवाल में नये पर्यटन संभावनाएं तलाशना था। देवाल ब्लॉक के ब्लॉक प्रमुख दर्शन दानू नें मानमती-चन्याली-सौरीगाड-नागाड-बगजी-दयालखेत-घेस, ट्रैकिंग रूट शुरू करनें, पिंडारी ट्रेक को देवाल से जोड़ने, देवाल में राफ्टिंग शुरू करने एवं आली बुग्याल को औली की तर्ज पर विकसित करने की मांग की। जिससे रोजगार के नये अवसरों का सृजन हो सके और युवाओं को रोजगार मिले।

वास्तव में उत्तराखंड में नागाड-बगजी जैसे दर्जनों स्थल ऐसे हैं जो पर्यटन के लिहाज से मील का पत्थर साबित हो सकतें हैं। यदि ऐसे स्थानों को चिह्नित करके इन्हें विकसित किया जाए तो इससे न केवल पर्यटक यहां का रूख करेंगे अपितु रोजगार के अवसरों का सृजन भी होगा। उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाले दिनों में ऐसे गुमनाम स्थलों को विकसित करने के लिए वृहद कार्ययोजना बनें।

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