दिल्ली (पीयूष गुप्ता) : “कर्मनाशा नदी” भारत की एक ऐसी नदी जिसे माना जाता है अपवित्र !!! गंगा की तरह इस नदी में लोग सिक्के प्रवाहित नहीं करते !!!
क्या यह सच है ?
काले सांप का काटा आदमी बच सकता है, हलाहल ज़हर पीने वाले की मौत रुक सकती है, लेकिन जिस पौधे को एक बार कर्मनाशा का पानी छू ले, वह फिर हरा नहीं हो सकता. कर्मनाशा नदी के बारे में नदी के किनारे के लोगों में एक और विश्वास प्रचलित था कि यदि एक बार नदी में बाढ़ आए तो बिना मानुस की बलि लिए लौटती ही नहीं….
हिन्दी के मशहूर कथाकार डॉ. शिव प्रसाद सिंह की कहानी कर्मनाशा की हार के ये अंश उस नदी के बारे में हैं जो प्रचलित किंवदंतियों-आख्यानों में एक अपवित्र नदी मानी गई है, क्योंकि वह कर्मों का नाश करती है. उसके जल को छूने भर से सारे पुण्य खत्म हो जाते हैं. वैतरणी की तरह. वही वैतरणी, जिसे स्वर्ग जाने से पहले इस पाप नदी को पार करना पड़ता है. कहावत है कि कर्मनाशा को हर साल प्राणों की बलि चाहिए. बिना बलि लिए उसकी बाढ़ उतरती ही नहीं.
कर्मनाशा दुनिया की पहली ऐसी नदी है जिसके जल को अछूत माना जाता है, ऐसा कहा जाता है कि जो भी इस नदी के जल को छूता है वो अपवित्र हो जाता है, इतना ही नहीं, ये भी कहा जाता है कि, इस नदी के पानी से खेती करने से सारे फसल बर्बाद हो जाते हैं. हालांकि इन सबसे इतर सच्चाई कुछ और ही है.
दरअसल कर्मनाशा बेहद उदास नदी है. गंगा की सगी बहन. मनहूस होने के कारण गंगा भी इसे अहमियत नहीं देती. शायद गंगा को गुमान था कि वो पतित पावनी और पाप नाशिनी है. सबके पापों को हर लेती है. इसके ठीक उलट कर्मनाशा का जल स्पर्श पुण्यहीन कर देता है…. मनुष्य के बने-बनाए काम बिगड़ जाते हैं. जब सच पता चलता है कि कर्मनाशा जीवन देती है तो गंगा का भ्रम दूर हो जाता है….
सच यह है कि दुनिया भर की सभी नदियां प्राकृतिक या दैवीय स्रोतों से अवतरित हुईं, लेकिन कर्मनाशा का स्रोत मानवीय है. संभव है कि वह अस्पृश्य और अवांछित है. कर्मों का नाश करने वाली है. कथा-पुराण, आख्यान, लोक विश्वास जो भी कहें, इस सच्चाई को झुठलाने का कोई ठोस कारण नहीं है कि कर्मनाशा एक जीती-जागती नदी का नाम है. बारिश के दिनों में इसके तट पर वैसा ही जीवन राग-खटराग बजता रहता है, जैसा दूसरी नदियों के किनारे बजता है. नदी के पेट में दूर तक फैले हुए लाल बालू का मैदान, चांदनी में सीपियों के चमकते हुए टुकड़े, सामने के ऊंचे अरार पर घन-पलास के पेड़ों की आरक्त पांतें, चारों ओर जल-विहार करने वाले पक्षियों का स्वर हर किसी को अपनी आगोश में लेने को विवश कर देते हैं.
यूपी-बिहार का बंटवारा करने वाली कर्मनाशा यूपी के सोनभद्र, चंदौली, वाराणसी और गाजीपुर से होकर गुजरती है. बिहार के कैमूर से निकलने वाली इस नदी की लंबाई करीब 192 किलोमीटर है. यूपी में कर्मनाशा नदी पर पांच बड़े बांध-नगवां, भैसौड़ा, औरवाटांड़, मूसाखांड और लतीफशाह बने हैं. इन बांधों से लाखों हेक्टेयर जमीन पर लहलहाती हैं फसलें. चंदौली के नौगढ़ में इस नदी पर एक खूबसूरत जल प्रपात है- कर्मनाशा वाटरफाल. जो अपनी मनोरम सुंदरता से हर किसी को रोमांच से भर देता है. करीब 35 मीटर ऊंचे जल प्रपात में बारहो-मास दुधिया पानी गिरता रहता है. इस झरने को देखकर कोई भी कह सकता है कि कर्मनाशा एक जीती-जागती नदी का नाम है. इसकी अपवित्रता के बारे में कहीं भी कोई ठोस सबूत नहीं है.
Author : Peeyush Gupta, Asst. Real Time Information Specialist, National Mission for Clean Ganga, Ministry of Jal Shakti.
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