- इस बार विश्व पर्यावरण दिवस का विषय है ‘पृथ्वी की जैव विविधता का जश्न मनाएं’।
- पृथ्वी सम्मेलन और क्योटो प्रोटोकॉल के कुछ ख़ास परिणाम प्राप्त नही हुए थे।
- कोरोना काल में प्रदूषण कम हुआ है।
- गाँधी जी के आदर्शों पर चल प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सकता है।
नैनीताल (हिमांशु जोशी): जिस पर्यावरण में मनुष्य रह रहा है उसकी सुरक्षा की महत्वता मनुष्य को समय-समय पर याद दिलाते रहने के लिये विश्व पर्यावरण दिवस मनाने की शुरुआत की गयी थी और 5 जून 1974 में पहला संयुक्त राष्ट्र विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया था।
वर्ष 1987 में इसके केंद्र बदलते रहने का सुझाव दिया गया था। इस बार विश्व पर्यावरण दिवस का विषय है ‘पृथ्वी की जैव विविधता का जश्न मनाएं’ और इसका केंद्र कोलम्बिया में है जिसमें उसका साझेदार जर्मनी होगा । एंडीज की पर्वत श्रृंखला, अमेज़न के घने जंगल, कैरेबियन सागर और प्रशांत महासागर के तटों के साथ कोलम्बिया सर्वाधिक जैव विविधता वाले देशों में से एक है।
जैव विविधता से तात्पर्य है कि इसमें अलग-अलग तरह के प्राणी और पेड़-पौधे एक साथ रहते हैं। इसमें सब एक दूसरे ओर निर्भर और उपयोगी हैं। यह सब पृथ्वी के वातावरण को बेहतर बनाने में अपना अमूल्य योगदान देते हैं। जैव विविधता जितनी समृद्ध होगी उतना सन्तुलित हमारा वातावरण होगा। कोरोना जैसी महामारी भी इसी से छेड़छाड़ का परिणाम है।
जैव विविधता की सुरक्षा करके ही सतत् विकास का लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है। सतत् विकास का अर्थ है वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकताओं को भविष्य की पीढ़ियों की आवश्यकताओं से समझौता किये बिना पूरा करना।
वर्ष 2019 के संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में एक सोलह साल की लड़की ग्रेटा थंबर्ग ने विश्व नेताओं को उनके जलवायु परिवर्तन के अब तक के प्रयासों पर लताड़ते हुए कहा था कि आपने अपने खोखले शब्दों से मेरे सपने और मेरा बचपन चुरा लिया है।
पर्यावरण में बढ़ते प्रदूषण की चिंता के कारण वर्ष 1992 में ब्राज़ील के रियो डी जेनेरियो में विश्व के 172 देशों ने पृथ्वी सम्मेलन का आयोजन किया था और वर्ष 1997 में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन की अधिकता की वजह से हो रहे जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए जापान के क्योटो में क्योटो प्रोटोकॉल हुआ था पर यह प्रयास पर्यावरण में सुधार लाने में पूरी तरह सफल नही हुए।
यूएन की एक रिपोर्ट के अनुसार मानवीय गतिविधियों के कारण दस लाख प्रजातियों पर विलुप्ति का खतरा मंडरा रहा है। बढ़ता औद्योगीकरण प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है, मनुष्य ने विकास के लिए और अच्छे जीवन स्तर के लिये पर्यावरण का विनाश किया है।
“हवा में उड़ते जहाज़ों , उद्योगों , वाहनों से निकलने वाले धुंए के कारण वायु प्रदूषण जन्म लेता है।
उद्योगों से निकलने वाले हानिकारक रसायनों, मनुष्य की गंदगी से जल प्रदूषण जन्म लेता है।”
मनुष्य ने अपने जीविकोपार्जन के लिये प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन किया है। मनुष्य की गतिविधियां पारिस्थितिक तंत्र को बिगाड़ रही हैं। हाल ही में भारत में आए निसर्ग, अम्फान जैसे तूफ़ान और ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में लगी भीषण आग इसी का परिणाम हैं।
गांधी जी ने शायद मनुष्य के इस विकास के पीछे की इस दौड़ को और उससे पर्यावरण को होने वाले नुकसान को बहुत पहले ही भांप लिया था। अपनी पुस्तक “हिन्द स्वराज्य” में उन्होंने औद्योगीकरण पर चोट करते हुए कहा था कि मशीनें यूरोप को उजाड़ने में लगी हैं और वहाँ की हवा अब हिंदुस्तान में चलने लगी है। यन्त्र आज के सुधार की मुख्य निशानी है और वह महापाप है जैसा मैं साफतौर पर देख सकता हूँ।
“की टू हेल्थ” पुस्तक में गांधी जी ने खुले तारों के नीचे सोने की आदत डालने की बात कही थी। यह उन्होंने शुद्व हवा की वजह से बोला था पर आज नगरीकरण और वायु प्रदूषण की वज़ह से कितने लोग खुली हवा में सोते हैं यह जानने के लिये हमें पुराने भारत को ढूंढ़ कर उस पर अध्ययन करना होगा।
आज कोरोना काल में अधिकांश मानवीय गतिविधियां रुकी होने के कारण पर्यावरण में चमत्कारिक सुधार देखने को मिल रहे हैं वर्षों बाद दूर की पर्वत श्रृंखलाओं को साफ देखा जा रहा है, गंगा का जल इतना साफ कभी नही देखा गया। वृक्ष लगाओ धरती बचाओ। नदियां पूज्यनीय हैं तो उनको वस्त्र, अन्य गंदगी डालकर गंदा मत कीजिए। विश्व नेताओं के साथ – साथ हमें भी इस विश्व पर्यावरण दिवस में पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को फिर से याद करना होगा और अपने आने वाले कल को सुरक्षित करने के लिये आज ही से प्रयास शुरू करने होंगे।
लेखक हिमांशु जोशी, शोध विद्यार्थी
Discussion about this post