देहरादून : अपनी कमजोरी को छोड़ने के लिये महायज्ञ करना है, लेकिन यज्ञ में आहुति डालकर आहुति को वापस नहीं लेना है। जो प्रतिज्ञा करते हैं, इसको निभाते भी रहना है। हम प्रतिज्ञा तो करते हैं, लेकिन निभाना मुश्किल लगता है। इस सन्दर्भ में तीन प्रकार के लोग मिलते हैं। पहले प्रकार के लोग एक फरमान पर कुर्बान हो जाते हैं।
दूसरे प्रकार के लोग निभाने में भक्त बन जाते हैं और बार-बार ईश्वर से शक्ति लेते रहते हैं अर्थात शक्ति मांगते रहते हैं, कहते हैं सहनशक्ति दो तो निभाऊ और सामना करके दिखाऊ। ऐसे भीख मांगते रहते हैं। तीसरे प्रकार के लोग ठगत बन जाते हैं। इसे लोग कहते और लिखते एक हैं, लेकिन बोलते दूसरा है। ऐसे लोग स्वयं से भी ठगी करते हैं अपनी गलती को छिपाने में ठगी करते हैं।
इसके अलावा कईयों में निभाने की शक्ति लेकिन अपने को बचाने के लिये बहानेबाज बनते हैं। अपनी कमजोरी छिपाकर करते हैं फलाना सम्बन्ध ऐसा है, वातावरण और परिस्थितियां ऐसी है, इसलिये ऐसा होता है। निभाने में निभाने वालों की कई श्रेणियां बन जाती हैं। कहना सबका मालिक एक है। एक के सिवा दूसरा कोई नहीं,जो कहेंगे और करायेंगे वही करेंगे। लेकिन प्रैक्टिकल में आने पर बदल जाते हैं। इसलिये बीती बातो को भूलकर अपने ऊपर रहम करना है। महान बनना अर्थात अपने महत्व को जानना।
प्रवृत्ति में होते हुये भी स्वयं से निवृत्त रहना है। निवृत्त रहकर अपनी विशेष वृत्ति को चेक करना है। जैसी वृत्ति होगी, वैसी प्रवृत्ति होगी। हमें आत्मिक वृत्ति रखना है। आत्मिक वृत्ति रखने से प्रवृत्ति में रूहानियत आ जायेगी। ऐसे करने पर हम हर कदम अमानत समझकर चलेंगे। इससे मेरापन सहज ही समाप्त हो जायेगा। अमानत में कभी भी मेरापन नहीं आ सकता है। मेरेपन में आने से मोह आता है, जिससे अन्य विकार भी प्रवेश कर जाते हैं। मेरापन समाप्त होना अर्थात विकारों से मुक्ति पा लेना।
इससे हमारी प्रवृत्ति भी पवित्र वृत्ति बन जाती है, जिससे हम श्रेष्ठ बन जाते हैं। सबसे पहली प्रवृत्ति है, देह की प्रवृत्ति इसके बाद देह के सम्बन्धों की प्रवत्ति। अपनी प्रवृत्ति को पवित्र बनाना है। कहावत है चेरिटी बिगिन्स एट होम अर्थात अच्छे चीज की शुरूआत घर की जाये। इसलिये सबसे पहले अपने देह की प्रवृत्ति अथवा घर को पवित्र बनाना है। इसके लिये अपने संकल्प को, अपनी बृद्धि को, नयन को और मुख को इस प्रकार स्वच्छ रखना है कि एक भी कोना रह न जाये। इसका विशेष एटेंशन देना है। किसी प्रकार की अशुद्धि नहीं आने देनी है, क्योंकि जहां अशुद्धि होती है, वहां भूतों का प्रवेश हो जाता है।
अव्यक्त बाप-दादा-महा वाक्य मुरली 24 अक्टूबर, 1975
लेखक : मनोज श्रीवास्तव, सहायक निदेशक सूचना एवं लोकसम्पर्क विभाग उत्तराखंड
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