posted on : जून 2, 2020 6:55 अपराह्न
नैनीताल (हिमांशु जोशी): महामारी कोरोना की वजह से एक लाख से ऊपर हो चुकी मौतों से पहले ही जूझ रहे अमेरिका में अब नस्लीय मौत के कारण हो रहे विद्रोह की वजह से संकट और गहरा गया है।
मिनिपोलिस में बेहतर ज़िंदगी की तलाश के लिए टेक्सास से मिनिपोलिस आये एक अश्वेत अमेरिकी नागरिक जॉर्ज फ्लॉयड को नकली डॉलर चलाने के प्रयास में पकड़ा गया था। एक राह चलते व्यक्ति के द्वारा बनाई गई नौ मिनट की वीडियो में दिख रहा है कि मिनिपोलिस के एक पुलिस कर्मी डरेक चाउवीन ने जॉर्ज फ्लॉयड की गर्दन को अपने घुटनों से दबाया हुआ है और जार्ज फ्लॉयड उसमें अपने चारों ओर घिरे पुलिस कर्मियों से कह रहा है कि उसे साँस लेने में कठिनाई हो रही है। उसकी मृत्यु के बाद से पुलिस हिरासत में हुई इस मौत का विरोध पूरे अमेरिका में फ़ैल गया है और अब इस विरोध ने हिंसक रूप ले लिया है।
यह विरोध सिर्फ एक दिन हुई घटना की वज़ह से नही हो रहा है इसकी चिंगारी अमेरिका में काफी सालों से भड़क रही है। 4 जुलाई 1776 में अमेरिका को स्वतंत्रता मिल गयी थी। पर अफ्रीका से लाये गये अश्वेत गुलामों को दासता से मुक्ति नही मिली थी। उनसे घर के सारे कार्य कराए जाते थे, खेती में भी अश्वेतों से कार्य कराया जाता था और उनका शारीरिक शोषण आम बात थी। आज़ादी के बाद उनको अधिकार देने की बात शुरू हो गयी थी पर उत्तर और दक्षिणी अमेरिका में इस बात को लेकर मतभेद था। दक्षिणी राज्यों की बढ़ती नाराज़गी को कम करने के लिये वर्ष 1850 में भगोड़ा दास कानून लाया गया जिसमें मालिक से भाग चुके अश्वेतों को पकड़कर वापस लाया जा सकता था। उत्तर और दक्षिण राज्यों के बीच इन्हीं मतभेदों की वजह से 1861-1865 के बीच गृह युद्ध चला। अब्राहम लिंकन ने इन सभी आपसी मतभेदों को खत्म कर मुक्ति उद्धघोषणा लाने के बाद गृह युद्ध समाप्त कराया।
उसके सौ साल बाद भी अमेरिकी समाज में अश्वेतों की स्थिति में कुछ खास सुधार नही आये और ना ही उन्हें श्वेतों के समान अधिकार प्राप्त हुए इसी के परिणाम स्वरूप वर्ष 1955-68 तक मार्टिन लूथर किंग की अगुवाई में अमेरिका में अफ्रीकी अमेरिकी नागरिक अधिकार आंदोलन चला। इसी आंदोलन के बीच 1963 में अपने दिये गये एक भाषण में मार्टिन लूथर किंग ने कहा था कि आज मुक्ति उद्घोषणा के सौ साल बाद भी अश्वेत अमेरिकी अपने देश में ही खुद को निर्वासित पाता है और समाज के कोनों में सड़ रहा है। उन्होंने कहा था कि मेरा एक स्वप्न है कि भविष्य का अमेरिका ऐसा हो जहाँ मेरे बच्चे अपने रंग से नही अपने काम और चरित्र से पहचाने जाएं।
उसके बाद भी वर्ष 1919 में शिकागो दंगे हुए, 1992 में लांस एंजेल्स दंगों ने अमेरिका पर दाग लगाया। साल 2014 जुलाई में ठीक इसी तरह का वीडियो सामने आया था जब न्यूयॉर्क में एक अश्वेत पिता एरिक गार्नर को पुलिस द्वारा इसी तरह मारा गया था। वर्ष 2014 में ही अमेरिका के क्लेवलेंड, ओहियो में एक बारह वर्षीय बच्चे तामिर राइस को पिस्तौल लेकर घूमने की सूचना पर पुलिस कर्मियों ने गोली मार दी जिससे उसकी मौत हो गयी थी। जाँच में पाया गया कि बच्चे के पास वह पिस्तौल नकली थी। इसी साल 23 फरवरी में अहमद अरबरी नामक अश्वेत अमेरिकी को जॉगिंग करते हुए उसके घर के पास ही लुटेरा समझ कर श्वेत पिता-पुत्र ने मिलकर गोली मार दी थी।
अमेरिकी अखबार “द गार्जियन” द्वारा कराए गये एक सर्वे के अनुसार अमेरिका में पुलिस द्वारा प्रति दस लाख लोगों में मारे गये 7.13 लोग अश्वेत होते हैं वही मारे गये श्वेतों की संख्या 2.91 है। अमेरिका में पुलिस द्वारा एक साल में एक हज़ार लोग मारे जाते हैं। बराक ओबामा जब अमेरिका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने थे तब यह लगा था कि अब नस्लीय भेदभाव वाला अमेरिका पीछे छूट गया है पर ट्रम्प के अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के बाद स्थिति और बदतर हो गयी। ट्रम्प का नस्लीय भेदभाव से पुराना नाता रहा है। 1973 में ट्रम्प पर आरोप लगे थे कि उन्होंने रंग के आधार पर अपने फ़्लैट किराए पर दिए थे। अश्वेतों को अपने फ़्लैट किराए पर देने से उन्होंने साफ मना कर दिया था। 1980 में किप ब्राउन जो ट्रम्प बिल्डिंग के पुराने कर्मचारी थे उन्होंने ट्रम्प पर यह आरोप लगाया था कि जब ट्रम्प कैसिनो में आते थे तो अश्वेतों को वहाँ से हटने के लिए कहा जाता था। वर्ष 1989 में बलात्कार के आरोप में सजा होने के बाद मुक्त हो चुके पाँच अश्वेत नागरिकों पर ट्रम्प ने 2016 में बयान दिया था कि वह अब भी मानते हैं कि वो पांचों दोषी थे। 2015 में मेक्सिकन अप्रवासियों को ट्रम्प ने अपराधी, बलात्कारी और नशे का कारोबार करने वाला कहा था। 2016 में उन्होंने अश्वेतों को गरीबी में जीने वाला कहा था। ट्रम्प हमेशा से ओबामा के विरोधी भी रहे हैं।
मिनिपोलिस पुलिस ने पिछले साल ट्रम्प की एक रैली में ‘कॉप्स फ़ॉर ट्रम्प’ नारे की टीशर्ट पहन कर उनका स्वागत किया था। नस्लीय भेदभाव के खिलाफ हो रहे इन विरोधों के बीच ट्रम्प ने ट्विट कर इन प्रदर्शनकारियों को ठग्स(डाकू, अपराधी) कहा है। जिसे ट्विटर ने हिंसा भड़काने वाला ट्वीट कहा है। व्हाइट हाउस के सामने यह प्रदर्शन इतना बढ़ गया था कि सुरक्षा कारणों से ट्रम्प को बंकर में ले जाया गया और उन्होंने इस प्रदर्शन से निपटने के लिये शहरों में सेना उतारने की धमकी दे डाली है।
अब देखना यह होगा कि जॉर्ज फ्लॉयड की मौत के बाद हो रहे यह प्रदर्शन भविष्य के अमेरिका में कुछ बदलाव ला पाएंगे या नही। कोरोना की वजह से पहले ही आर्थिक रूप से टूट रहे अमेरिका को अपनी विश्व महाशक्ति की छवि बरकरार रखने के लिये गोरे काले के इस तिलिस्म को तोड़कर हर नागरिक को एक ही नज़र से देखना शुरू करना होगा। मार्टिन लूथर किंग ने श्वेत अश्वेत की धारणा मुक्त जो अमेरिका देखा था वह तभी सम्भव हो पायेगा।
लेखक हिमांशु जोशी, पत्रकारिता शोध छात्र इंवर्टिस यूनिवर्सिटी बरेली
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