नैनीताल (हिमांशु जोशी): आरोग्य सेतु एप इन दिनों चर्चा में है। प्रधानमंत्री मोदी ने देश के नाम अपने सम्बोधन में कोरोना से लड़ाई में इस एप को डाउनलोड करने के लिए भी कहा पर क्या वास्तव में यह एप इस जंग में भारत को जीत दिलाने में सक्षम है? इस सवाल का जवाब ढूंढने के लिये हमें समय में पीछे जाना होगा।
वर्ष 2010 के बाद भारतीय जनता बेसिक फ़ोन्स से स्मार्ट फ़ोन्स की ओर जाने लगी। नोकिया के बाद सेमसंग के एंड्रोइड मोबाइल लोकप्रिय होने लगे। यह नोकिया की भारतीय मोबाइल बाज़ार से विदाई की शुरुआत थी तो ओप्पो, वीवो, रेडमी, रीयलमी की भारतीय मोबाइल बाज़ार में आगमन की रूपरेखा तैयार हो रही थी। भारत के युवाओं को एक साथ कई कार्य करने वाले स्मार्टफोन भा रहे थे। अब वो कॉल्स और मैसेज से आगे बढ़कर मोबाइल का इस्तेमाल नेट सर्फिंग, फ़िल्म देखने, संगीत सुनने में करने लगे। आभासी दुनिया में युवाओं को अपनी स्वप्निल दुनिया महसूस होने लगी। युवा तो अपनी इस दुनिया में मस्त था पर युवा अवस्था पार कर चुके लोगों को इस स्मार्टफोन को समझने में मुश्किल हो रही थी । नए एप, कीबोर्ड से टचस्क्रीन उन्हें अलग दुनिया के लग रहे थे।
भारत की आबादी और उसमें युवाओं की अधिकता ने मोबाइल कंपनियों को भारत में एक बड़ा बाज़ार दिखाया। समय के साथ मोबाइल का साइज़ और दाम भी बढ़ने लगे। मोबाइल अब समाज में किसी के स्टेट्स का सिम्बल बन चुके थे। भारत में मोबाइल नेटवर्क प्रदान करने वाली कम्पनियां भी इस खेल में कहां पीछे रहने वाली थी। डाटा और कॉल्स के नाम पर जनता के जेब खाली करने का खेल शुरू हुआ । 999 तक के रिचार्ज जनता की जेब पर भारी पड़े तो इस खेल से आज के धन्नासेठों की जेबें भरी। इस खेल के नए खिलाड़ी जियो ने पुराने खिलाड़ियों की नींव तक हिला के रख दी। इन सब के बीच सरकार का ध्यान सिर्फ़ इस उद्योग से अपना राजस्व बढ़ाने पर रहा। आतंकवादियों के लोकप्रिय एप हों या अफवाहों के जनक कोई विदेशी एप इन्होंने देश को कितना खोखला किया इसकी सुध किसी को नही थी।
इंटरनेट का जो वास्तविक प्रयोग करना था वह हम सब भूल गये हैं। रेलवे ने uts एप लॉन्च किया था जिससे रेलवे स्टेशनों में भीड़ कम हो पर अब भी टिकटघर के सामने बड़ी स्क्रीन वाले मोबाइल हाथ में लिए लोगों की संख्या जस की तस है। दुरस्थ शिक्षा में इंटरनेट का जो प्रयोग होना था वह अब भी नही होता। बैंक ग्राहकों में इंटरनेट बैंकिंग का उपयोग करने वाले ग्राहकों की संख्या बहुत कम है और जो लोग उसे इस्तेमाल कर भी रहे हैं तो उन्हें बेवकूफ बना कर ऑनलाइन ठगी करने वाले अपराधियों की संख्या अधिक है। ऑनलाइन शॉपिंग, ऑनलाइन नेटवर्क वाली साइटों में भी ठगों ने अपना जाल बिछाया हुआ है। उमंग, सारथी, डिजिलॉकर जैसे एप कितने लोग चलाते हैं यह हम गूगल प्लेस्टोर के अंदर टिकटोक और इन एप्लिकेशन के डाउनलोड संख्या में अंतर से जान सकते हैं।
आज कोरोना से लड़ाई में सरकार आरोग्य एप लायी है। इससे क्या लाभ होगा यह हम जान सकते हैं। भारत लॉक्डाउन के दौरान सबसे ज्यादा पोर्न देखने वाला देश तो बन सकता है पर आरोग्य जैसे एप भारत में तब तक सफल नही हो सकते जब तक भारतीय मोबाइल उपभोक्ताओं को इंटरनेट शिक्षा नही दी जाए। यह शिक्षा सिर्फ युवा की या शहरी जनता की ही आवश्यकता नही है अपितु इंटरनेट शिक्षा हर उम्र के लोगों और ग्रामीण एवं शहरी हर क्षेत्र की जनता के लिये आवश्यक है।
लेखक हिमांशु जोशी उत्तराखण्ड पुलिस के कार्मिक है.
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