देहरादून : अवसाद से बाहर निकलकर निश्चिन्त बनना। परीक्षा अर्थात कठिन समय।यदि अनुकूल समय 100% ले ले और विपरीत परिस्थितियों में फेल हो जाये तब इसे क्या कहेंगे? कठिन परिस्थितियों में सहज सफलता का साधन है निरन्तर स्वयं की चेकिंग। इसके लिये हमें अपने थॉट प्रॉसेस को पॉज़िटिव मोड में रखना होगा।
हमारी मन ,आत्मा और बुद्धि हमारे थॉट प्रॉसेस को गाइड करती है। हम अपने मन ,आत्मा और बुद्धि को जैसे भोजन देंगे उसी दिशा में हमारी सोच भी चलेगी। हमारी सोच किस दिशा में चलेगी ,यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम मन ,बुद्धि और आत्मा को कौन सा भोजन दे रहे है-सकारात्मक अथवा नकारात्मक।
प्रश्न उठता है कि हम अपने अंदर कैसे सकारात्मकता लाये। इसके लिये प्रजापिता ब्रम्हाकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की मान्यता में 4 चरण बताये गए है- ज्ञान,योग,धारणा और सेवा।
ज्ञान का अर्थ है – आध्यात्मिक और मूल्यपरक ज्ञान,
योग का अर्थ – मेडिटेशन, ध्यान।
धारणा – आध्यत्मिक और मूल्यपरक ज्ञान को हम मेडिटेशन ,ध्यान से धारण कर सकते है।
सेवा का अर्थ – जो हमने अभी तक जीवन मे लाभ प्राप्त किया उसे दूसरे लोगो को भी बताना। वैसे यब मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि हम दूसरों को कुछ बताने की इच्छा रखते है।
लेकिन इसके साथ ही हमे अपने सामान्य जीवन मे सकारात्मक रखना होगा। इसके लिये श्रेष्ठ कर्म ,श्रेष्ठ ज्ञान और श्रेष्ठ गुणों पर फोकस रखना होगा। यह जीवन पद्धति हमारे जीवन मे सकारात्मकता लाने में मदद करते है। इसे ही जमा का खाता कहते है। इसीलिये कहा जाता है कि अपने जमा के खाते को बढ़ाये। अभी कमाया और अभी खाया इसे कोई जीवन नही कहते है। लोग कहते है कि चल रहे है। फिर पूछो कि कैसे चल रहे है ,बोलेंगे अच्छे चल रहे है। पूछो किस स्पीड से चल रहे । इसलिये चेक करे कि चींटी की चाल से चल रहे है अथवा रॉकेट के चाल से चल रहे है। क्योंकि जमा करना 5 रुपया भी होता है और 500 रुपया भी जमा करना होता है। इसलिये ऐसा नही सोचना चाहिये कि एक दो कमजोरी तो होती ही है ,यह तो चलता ही है। लेकिन यही बहुत काल की एक कमजोरी हमे समय पर धोखा दे देगी। जो हम जमा करेंगे वही आगे चल कर यूज करेंगे। इसलिये यह नही सोचना है कि कार्य को अंत में कर लेंगे।
परिस्थितियों का सामना करने के लिये हमें समस्या स्वरूप नही बल्कि समाधान स्वरूप बनना है। इसलिये चेक करें कि कहा तक स्वराज अधिकारी बने है। जो स्व राज अधिकारी नही है वह विश्व पर अधिकार किसे करेगा?स्वराज अधिकारी अर्थात स्व पर राज्य करना। अपने कर्मेन्द्रियों रूपी प्रजा का राजा बनना। इसलिये चेक करे कि प्रजा का राज्य है अथवा राजा का राज्य है। यदि प्रजा का राज्य है तब राजा नही कहलाएंगे। सुनने के समय तो सभी समझते है कि करना ही है , लेकिन जब समस्या सामने आती है तब सोचते है कि यह तो बहुत मुश्किल है। चेक करें ऐसा क्यों होता है।
लेखक
मनोज श्रीवास्तव, सहायक निदेशक
सूचना एवं लोकसम्पर्क विभाग उत्तराखंड
Discussion about this post