देहरादून : आर्गेनाईजेशन का महत्व व्यक्ति से है और व्यक्ति का महत्व आर्गेनाईजेशन से है। हम मोती के समान है लेकिन मोती की वैल्यू तभी है जब मोती माला मे होगी, माला से अलग होने पर मोती की वैल्यू कम हो जाती है, वास्तव में आर्गेनाईजेशन में होने के कारण ही उस मोती का अस्तित्व है और मोती के कारण ही वह आर्गेनाईजेशन शक्तिशाली है।
एक और एक मिलकर ग्याहरह हो जाते हैं लेकिन अकेला एक, एक ही कहलाता है। इस सम्बन्ध में चैक करना है कि हम सभी एक दूसरे से कहां तक संतुष्ट हुए हैं अथव कितने एक दूसरे के समीप आयें हैं। इसके अलावा दूसरे जहां पर हैं क्या वह हमसे संतुष्ट हैं, लेकिन इन में से सबसे अधिक महत्वपूर्ण स्वयं से संतुष्ट रहना है। क्योंकि जब स्वयं से संतुष्ट नही हैं तब हमारे भीतर कोई न कोई कमी रह जाती है।
उमंग उत्साह में अपना विशेष कर्तव्य करना है, क्योंकि हम अपने श्रेष्ठता और विशेषता को सामने लाने के निमित बने हुए हैं। सर्म्पूण सर्म्पण होने के बाद, सर्वस्व त्यागी बनने के बाद औरों के सेवा के निमित बने है। प्रत्येक व्यक्ति में कोई न कोई विशिष्टता अवश्य होती है, प्रत्येक व्यक्ति को उसकी विशेषता से परिचय होना आवश्यक है। हमें अपने कमियों को सामने रखकर अपना परिचय नही देना चाहिए।
जब सूक्ष्म कमजोरियों पर विजय मिलती है तब जो विशेषता अन्दर होती है उसका परिचय ऑटोमेटिकली मिल जाता है। इससे हमारा कमजोरियों की तरफ अटेंशन कम जाता है और विशेषता की तरफ अटेंशन बढ़ जाता है। जब टॉपिक ही विशेषता वाली होगी तब अन्य टॉपिक्स रह जायेंगे। जब पुरषार्थ की विशेषता का वर्णन करते रहेंगे तब वातावरण स्वतः अच्छा हो जायेगा। ऐसा हो ही नही सकता कि किसी भी कोई विशेषता न हो, यदि कोई ऐसा कहता है तो इससे सिद्ध होता है कि वह व्यक्ति अपने आप को नही जानता है।
हमारी दृष्टि वृती ऐसी नेचरल हंस के समान हो कि कंकण देखते हुए मोती को देखे। इसी प्रकार हमारी नेचुरल दृष्टि ऐसी हो कि कमी कमजोरी को देखते हुए भी, सुनते हुए भी, अन्दर न जाए। जिस समय किसी के कमी कमजोरी को देखते और सुनते हैं तो समझना चाहिए कि यह उनकी कमजोरी नही बल्कि मेरी है, क्योंकि हम सभी एक परिवार और एक संगठन के लिए हैं। मोती की वैल्यु कम होगी तब आर्गेनाईजेशन की वैल्यू कम हो जायेगी।
जो तीव्र पुरूषार्थि होते हैं वह अपने कमजोरी को देखते ही, मिली हुए युक्तियों के आधार पर उसे फौरन खत्म कर देते हैं और उसका वर्णन, चिन्तन और मनन नही करते हैं। जब अपनी कमजोरी को प्रसिद्ध नही करना चाहते हैं तब दूसरे के कमी का वर्णन क्यों करते हैं, फलाने ने साथ नही दिया, उसने यह कार्य नहीं किया, फलाना व्यक्ति विघ्न स्वरूप है।
यह सभी अपनी ही बुद्धि द्वारा बनाये गये आधार है जिस पर हम टिकने का प्रयास तो करते है पर टिक नही पाते हैं। क्योंकि वास्तव में वह आधार फाउण्डेशन लैस होता है इसलिए वह ठहर नही पाता है। थोड़े ही समय पर वह आधार हमारे लिए नुकसानदायक बन जाता है, इसलिए हर व्यक्ति की विशेषता को ग्रहण करके कमजोरी मिटाने वाला बनना चाहिए।
अव्यक्त महावाक्य, बाप दादा 19 जुलाई, 1972
लेखक : मनोज श्रीवास्तव, सहायक निदेशक सूचना एवं लोकसम्पर्क विभाग उत्तराखंड
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