देहरादून : अनुभव के अथाॅरिटी द्वारा विलपावर को बढ़ाया जा सकता है। जिस प्रकार हम एक सेकेण्ड के भीतर शरीर को जहाँ चाहें, वहाँ मोड़ सकते हैं उसी प्रकार रूहानी ड्रिल द्वारा अपनी बुद्धि को भी मोड़ सकते हैं। रूहानी ड्रिल से एक सेकेण्ड में बुद्धि को जहाँ चाहें, जब चाहें उसी स्टेज पर और उसी परसेंटेज में स्थित कर सकते हैं। दुनियां के आकर्षण से परे का अनुभव एक सेकेण्ड में कर लेना है, क्योंकि हमारी हार-जीत के बीच का अन्तर एक सेकेण्ड का ही होता है। ऐसा करके हम एक सेकेण्ड के भीतर हारी हुई बाजी जीत सकते हैं।
लेकिन वर्तमान की स्टेज में हम इतने कमजोर हो चुके हैं कि हमें हर स्टेज पर किसी की मदद चाहिए, आशीर्वाद चाहिए, शक्ति चाहिए। जब हमारा लक्ष्य ऊँचा होता है तब हमारे ऊपर चाहिए शब्द शोभा नहीं देता है। हमें याद रखना होगा कि हम दाता, विधाता और वरदाता के बच्चे हैं। इसलिए हमें किसी से कुछ लेना नहीं है बल्कि हर व्यक्ति को कुछ न कुछ देना है।
हमें यह चाहिए, वह चाहिए यह सब व्यर्थ की बातें संकल्प में नहीं आना चाहिए। ऐसी स्टेज पर हम साधारण व्यक्ति से विशेष व्यक्ति बन जाते हैं। साधारण और विशेष का अन्तर जान लेने पर विशेष व्यक्ति की विशेषता हमारे भीतर प्रत्यक्ष दिखने लगती है।
जब ज्ञान की बातें अनुभव में आ जायेगी तब यह हमारे लिए स्थाई सम्पति हो जायेगी। सुनी हुई बातें, सुनाई गयी बातें और वातावरण से प्राप्त की गयी बातों का प्रभाव अल्पकाल के लिए होता है, जबकि अनुभव से प्राप्त की गयी बातों का प्रभाव सदाकाल के लिए बना रहता है। अतः हमें विषय वस्तु की बातों का मनन करने के बाद अनुभवी बनना है और अनुभव से मिले ज्ञान के खजाने को प्रैक्टिकल जीवन में लाना है।
अनुभवी बनने के बाद हम अपने पावरफुल स्टेज पर आ जाते हैं। क्योंकि अनुभव से हमारे भीतर विलपावर आ जाता है। विलपावर से हम किसी भी समस्या, स्थिति और परिस्थिति का सामना कर सकते हैं। जिसमें विलपावर होगा वह सर्व समस्याओं का सामना सहज ही कर सकता है और सभी व्यक्तियों का सतुष्ट कर सकता है, क्योंकि विलपावर से सामना करने की शक्ति सहज ही प्राप्त हो जाती है।
विलपावर की शक्ति और सामना करने की शक्ति प्राप्त कर लेने के बाद हम प्रत्येक परिस्थिति में विजयी बनते हैं। विजयी बनना अर्थात स्वप्न में भी हार का अनुभव नहीं करना है। जब स्वप्न में भी हार का अनुभव नहीं करेंगे तब हमें प्रैक्टिकल जीवन में विजय अवश्य मिलेगी। हमें अपने हर संकल्प, बोल और कर्म में विजयी बनना है, ऐसा करने से हमारे जीवन से हार का नामोनिशान मिट जायेगा। चेक करें कि हम अपने संकल्प, वचन, कर्म, सम्बन्ध, स्नेह और सेवा में कहां तक विजयी बने हैं।
अव्यक्त महावाक्य बाप दादा मुरली 31 अक्टूबर, 1971
लेखक : मनोज श्रीवास्तव, सहायक निदेशक सूचना एवं लोकसम्पर्क विभाग उत्तराखंड, देहरादून
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