नई दिल्ली: यह लंबे समय से माना जाता रहा है कि बचपन में पढ़ाई, खेल, संगीत या किसी अन्य क्षेत्र में सबसे आगे रहने वाले बच्चे ही आगे चलकर दुनिया के टॉप पर पहुंचते हैं। लेकिन जर्मनी की आरपीटीयू यूनिवर्सिटी (RPTU Kaiserslautern-Landau) के प्रोफेसर अर्ने गुल्लिच के नेतृत्व में हाल ही में प्रकाशित एक बड़ी स्टडी ने इस धारणा को पूरी तरह चुनौती दी है।
स्टडी, जो साइंस जर्नल में दिसंबर 2025 में प्रकाशित हुई, में 34,000 से अधिक विश्व स्तरीय परफॉर्मर्स (नोबेल विजेता वैज्ञानिक, ओलंपिक एथलीट्स, विश्व स्तरीय शतरंज खिलाड़ी और प्रसिद्ध क्लासिकल संगीतकार) के विकास पैटर्न का विश्लेषण किया गया। नतीजे चौंकाने वाले हैं:
- बचपन में टॉप परफॉर्म करने वाले बच्चों में से केवल लगभग 10% ही वयस्क होने पर विश्व स्तरीय (world-class) बन पाते हैं।
- वहीं, वयस्क स्तर पर टॉप पर पहुंचने वाले 90% से अधिक लोग बचपन में औसत या सामान्य प्रदर्शन करने वाले थे।
प्रोफेसर गुल्लिच का कहना है, “बचपन में असाधारण प्रतिभा वाले बच्चे आगे भी टॉप पर रह सकते हैं, लेकिन ऐसे मामले अपवाद हैं, नियम नहीं।” स्टडी में पाया गया कि अधिकांश विश्व स्तरीय परफॉर्मर्स ने बचपन में धीमी और क्रमिक प्रगति दिखाई, और वे अपने मुख्य क्षेत्र में बहुत कम उम्र में स्पेशलाइज नहीं हुए।
विविधता से ज्यादा फायदा, स्पेशलाइजेशन नहीं स्टडी के प्रमुख निष्कर्षों में से एक है कि सफल लोगों ने बचपन में केवल एक ही क्षेत्र पर फोकस नहीं किया। वे खेल, संगीत, पढ़ाई या अन्य गतिविधियों में विविध अनुभव लेते रहे। उदाहरण के लिए:
- विश्व स्तरीय एथलीट्स ने बचपन और किशोरावस्था में औसतन दो अन्य खेलों में भाग लिया।
- इससे मानसिक और शारीरिक विकास में संतुलन बना, और वे लंबे समय तक सफल रहे।
इसके विपरीत, कम उम्र में एक ही क्षेत्र में ज्यादा स्पेशलाइजेशन से बर्नआउट, चोटें और जल्दी थकान का खतरा बढ़ता है। स्टडी ने “10,000 घंटे की प्रैक्टिस” वाली प्रसिद्ध थ्योरी पर भी सवाल उठाए हैं, जिसमें कहा गया कि शुरुआती दबाव सफलता की गारंटी नहीं देता।
माता-पिता और ट्रेनिंग प्रोग्राम्स के लिए संदेश प्रोफेसर गुल्लिच सलाह देते हैं: “बच्चों को बहुत कम उम्र में एक ही क्षेत्र में स्पेशलाइज करने के बजाय विभिन्न रुचियों को एक्सप्लोर करने दें। इससे वे अपना सबसे उपयुक्त क्षेत्र ढूंढ पाते हैं और लंबे समय तक बेहतर प्रदर्शन करते हैं।”
यह स्टडी टैलेंट प्रोग्राम्स, स्कूलों और खेल अकादमियों के लिए एक बड़ा संदेश है कि अर्ली स्पेशलाइजेशन की जगह विविधता और संतुलन पर फोकस करना ज्यादा फायदेमंद हो सकता है।


