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प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव डॉ. पी. के. मिश्र का आईआईएम मुंबई में दीक्षांत भाषण, शासन में निरंतर सीखने और नैतिक नेतृत्व के जरिए विकसित भारत के लिए क्षमता निर्माण पर दिया जोर

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posted on : सितम्बर 21, 2025 1:35 अपराह्न
  • मिशन कर्मयोगी गति, पैमाने और उद्देश्य के साथ शासन को पुनर्परिभाषित कर रहा है

मुंबई : प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव डॉ. पी. के. मिश्र ने आज भारतीय प्रबंधन संस्थान, मुंबई के दीक्षांत समारोह को संबोधित किया और एमबीए, कार्यकारी एमबीए और पीएचडी करने वाले विद्यार्थियों को बधाई दी तथा भारत के अग्रणी आईआईएम की सूची में इस संस्थान के छठे स्थान पर पहुंचने की सराहना की। विद्यार्थियों और अभिभावकों को बधाई देते हुए, डॉ. मिश्र ने जोर देकर कहा कि सफलता एक सामूहिक उपलब्धि है जिसमें शिक्षक, परिवार और सहकर्मी शामिल होते हैं। उन्होंने कहा, “यह डिग्री आपके अपने प्रयासों के साथ-साथ उनके प्यार, धैर्य और सहयोग का भी परिणाम है।”

वैश्विक चुनौतियों का उल्लेख करते हुए, डॉ. मिश्र ने कोविड-19 महामारी, व्यापार युद्धों, भू-राजनैतिक तनावों, जलवायु परिवर्तन और तकनीकी व्यवधानों का हवाला देकर वर्तमान आर्थिक परिदृश्य की जटिलताओं को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि “सुधार, प्रदर्शन और परिवर्तन” के मंत्र से प्रेरित प्रधानमंत्री मोदी जी के विकसित भारत @ 2047 के विजन के तहत भारत साहस और आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ रहा है। 100 से अधिक यूनिकॉर्न और 1.9 लाख स्टार्टअप के साथ भारत के वैश्विक नवाचार महाशक्ति के रूप में उभरने पर प्रकाश डालते हुए, डॉ. मिश्र ने 1 लाख करोड़ रुपये की लागत से अनुसंधान राष्ट्रीय रिसर्च कोष, इंडियाएआई मिशन और डीप टेक फंड ऑफ फंड्स सहित विभिन्न सरकारी पहलों का विस्तृत विवरण दिया।

मानव संसाधन विकास पर ध्यान केन्द्रित करते हुए, डॉ. मिश्र ने इस बात पर जोर दिया कि केवल तकनीकी कौशल ही पर्याप्त नहीं है। उन्होंने दृष्टिकोण, टीम वर्क, खुलेपन, आपसी सम्मान, विनम्रता, नैतिकता, पारदर्शिता और न्यायसंगत के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा, “टीम वर्क शायद व्यक्तिगत प्रतिभा से कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण है।” मानव संसाधन विकास के बारे में बोलते हुए, उन्होंने स्नातकों से निरंतर सीखने का आग्रह किया और कहा कि तेजी से बदलती दुनिया में ज्ञान अप्रचलित हो जाता है। उन्होंने बड़े संगठनों में मूल्यों को स्थापित करने की चुनौती और निरंतर प्रेरणा की आवश्यकता पर जोर दिया।

प्रशासनिक सुधारों की विकसित होती संरचना के बारे में बोलते हुए, डॉ. पी. के. मिश्र ने 2014 से कार्मिक प्रबंधन में हुए रणनीतिक बदलाव पर जोर दिया, जिसका उद्देश्य 21वीं सदी की सिविल सेवा का निर्माण करना है। एक प्रमुख सुधार भारत सरकार के संयुक्त सचिव, अपर सचिव और सचिव जैसे वरिष्ठ पदों के लिए पैनल प्रक्रिया में लाया गया व्यापक बदलाव रहा है। उन्होंने कहा कि वार्षिक मूल्यांकन रिपोर्टों की सीमाओं से आगे बढ़ते हुए, सरकार ने 2016 में एक बहु-स्रोत प्रतिक्रिया (एमएसएफ) प्रणाली शुरू की। इस प्रणाली में वरिष्ठों, कनिष्ठों, सहकर्मियों और बाहरी हितधारकों के मूल्यांकन शामिल हैं, जो निर्णय लेने, स्वामित्व, वितरण, सक्रियता और ईमानदारी के मामले में प्रतिष्ठा जैसी विशेषताओं का आकलन करते हैं।

डॉ. मिश्र ने इस तथ्य को रेखांकित किया कि इस सुधार ने प्रतिभाओं के समूह को व्यापक बनाया है और चयन की निष्पक्षता के मामले में मजबूत विश्वसनीयता प्रदान की है। अब केन्द्र सरकार और सार्वजनिक उपक्रमों में नियुक्तियों में विशेषज्ञता, योग्यता और प्रतिष्ठा को प्राथमिकता दी जाती है। उन्होंने जोर देकर कहा कि ये बदलाव लगभग एक दशक से जारी हैं और तेजी से विकसित हो रहे भारत की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए शासन व्यवस्था को धीरे-धीरे नया रूप दे रहे हैं।

उन्होंने 2016 में ग्रुप बी और सी के पदों के लिए व्यक्तिगत साक्षात्कार बंद करने के तथ्य को भी रेखांकित किया, जिससे पक्षपात और व्यक्तिपरकता कम हुई। उन्होंने मिशन कर्मयोगी के बारे में भी विस्तार से बताया। इस मिशन ने आईजीओटी कर्मयोगी प्लेटफॉर्म के जरिए सिविल सेवा क्षमता निर्माण में व्यापक बदलाव लाया है, जो अब 3,300 से अधिक पाठ्यक्रमों को उपलब्ध कराता है और 1.3 करोड़ से अधिक उपयोगकर्ताओं को सेवा प्रदान करता है।

डॉ. मिश्र ने बताया कि इसमें शामिल किए गए 79 प्रतिशत कर्मचारी जूनियर स्तर के हैं और 50 लाख से ज़्यादा कर्मचारियों ने विशिष्ट भूमिका वाले पाठ्यक्रम पूरे कर लिए हैं। उन्होंने पाठ्यक्रम पूरा करने को वार्षिक कार्य-निष्पादन मूल्यांकन में शामिल करने और कर्मयोगी योग्यता मॉडल के विकास पर जोर दिया। उन्होंने 107 मंत्रालयों/विभागों एवं संगठनों की सहायता करने और प्रशिक्षण संस्थानों के लिए राष्ट्रीय मानक निर्धारित करने में क्षमता निर्माण आयोग की भूमिका का विस्तृत विवरण दिया। उन्होंने संसाधनों के अधिकतम उपयोग के लिए गतिशक्ति प्लेटफॉर्म से जुड़ी एक डिजिटल एसेट रजिस्ट्री के निर्माण की घोषणा की।

इसके अलावा, डॉ. मिश्र ने जीवनचक्र-आधारित कर्मचारी सेवाओं के लिए ई-एचआरएमएस प्रणाली और व्यक्तिगत एआई-संचालित शिक्षण योजनाओं के एकीकरण का उल्लेख किया। उन्होंने भारत के डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे के एक भाग के रूप में आईजीओटी की वैश्विक मान्यता का हवाला दिया और इसे कैरिबियाई एवं अफ्रीकी देशों को प्रदान करने की योजना के बारे में बताया।
सुधारों के पैमाने को दोहराते हुए, डॉ. मिश्र ने बताया कि मिशन कर्मयोगी सार्वजनिक क्षेत्र की क्षमता निर्माण में एक परिवर्तनकारी शक्ति के रूप में उभरा है, जो 30 लाख से अधिक केन्द्रीय लोक सेवकों और राज्यों, शहरी स्थानीय निकायों एवं पंचायती राज संस्थाओं के 1 करोड़ से अधिक अधिकारियों तक पहुंच चुका है। उन्होंने आगे कहा कि आईजीओटी कर्मयोगी प्लेटफॉर्म – जो 1.3 करोड़ उपयोगकर्ताओं और 3,300 से अधिक बहुभाषी पाठ्यक्रमों के साथ दुनिया की सबसे बड़ी शासन शिक्षण प्रणाली है – के जरिए 5 करोड़ से अधिक पाठ्यक्रम पूरे किए जा चुके हैं, जिनमें से 2 लाख पाठ्यक्रम प्रतिदिन लिए जाते हैं। 10 लाख से अधिक अधिकारियों ने नागरिक-केन्द्रित सेवा भाव प्रशिक्षण प्राप्त किया है, जबकि 190 से अधिक प्रशिक्षण संस्थानों को मान्यता प्रदान दी गई है और उनका सुदृढ़ीकरण किया गया है।

डॉ. मिश्र ने इस तथ्य को भी रेखांकित किया कि 100 से अधिक मंत्रालय/विभाग अब समर्पित क्षमता निर्माण इकाइयां संचालित कर रहे हैं, जो व्यक्तिगत भूमिकाओं और करियर के विभिन्न चरणों के अनुरूप एआई-संचालित वैयक्तिकृत शिक्षण योजनाओं द्वारा समर्थित हैं। 22 राज्यों के साथ सक्रियता से जुड़कर, यह प्लेटफॉर्म 60 से अधिक भारतीय केस स्टडी और ज्ञान कोष पोर्टल की सुविधा भी उपलब्ध कराता है, जिसका संदर्भ अब एडीबी और अन्य वैश्विक संस्थान ले रहे हैं। डॉ. मिश्र ने बताया कि भारत के डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे के एक हिस्से के रूप में मान्यता प्राप्त, आईजीओटी का विस्तार कैरिबियाई और अफ्रीकी देशों तक किया जा रहा है। सभ्यतागत ज्ञान को आधुनिक शासन में एकीकृत करने हेतु एक नई भारतीय ज्ञान प्रणाली (आईकेएस) इकाई शुरू की गई है। इसके अतिरिक्त, उन्होंने बताया कि वरिष्ठ सिविल सेवा नियुक्तियों की चयन प्रक्रिया में मूलभूत सुधार किए गए हैं, जिससे पारदर्शिता और योग्यता में वृद्धि हुई है।

अपने संबोधन का समापन करते हुए, डॉ. मिश्र ने इस बात पर जोर दिया कि ये सुधार साबित करते हैं कि सबसे बड़े संस्थानों में भी बदलाव लाया जा सकता है। उन्होंने जोर देकर कहा, “आज भारत केवल बदलाव की बात ही नहीं कर रहा है। बल्कि हम इसे गति, पैमाने और उद्देश्य के जरिए साबित भी कर रहे हैं।” उन्होंने स्नातकों से आग्रह किया कि वे अपनी नेतृत्वकारी यात्रा में कर्मयोगी की भावना को आगे बढ़ाएं।

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