नई दिल्ली : “नदियों के नाम इतिहास के सूत्र छोड़ते हैं”, नदी जल विज्ञानियों, जीआईएस विशेषज्ञों, भाषा विज्ञानियों को इस दिशा में काम करना चाहिए! गंगा का नाम तो नदी शब्द का करीबन पर्यायवाची ही बन गया है. आदिगंगा से लेकर गोरीगंगा और काली गंगा से लेकर वनगंगा और बाल गंगा तक नाम की नदियां अस्तित्व में हैं.
हिंदुओं के लिए स्वर्ग के द्वार खोलने वाली वैतरणी नदी ओडिशा में भी है और महाराष्ट्र में भी. रावी, व्यास और सतलज हांगकांग में भी हैं और कर्नाटक की अधिकांश नदियों के नाम वैदिक संस्कृत में हैं. जाहिर है, नदियों के नाम इतिहास के सूत्र छोड़ते हैं. नदी जल विज्ञानियों, जीआईएस विशेषज्ञों,भाषा विज्ञानियों को इस दिशा में काम करना चाहिए.हिंदुओं के लिए गरुण पुराण बेहद महत्वपूर्ण है. मुमुक्षुओं के लिए इसकी महत्ता काफी अधिक है और आखिरी सांसें गिन रहे लोगों को यह पुराण पढ़कर सुनाया जाता है.
गुरुड़ पुराण के मुताबिक, मरने के बाद वैतरणी नाम की नदी पार करनी होती है. बहरहाल, ओडिशा में एक नदी है जिसका नाम वैतरणी है. इसके बेसिन को ब्राह्मणी-वैतरणी बेसिन कहा जाता है. लेकिन इसके साथ ही महाराष्ट्र में भी एक वैतरणी नदी है, जो नासिक के पास पश्चिमी घाट से निकलती है और अरब सागर में गिरती है. अब इसमें से किस नदी को पार करने पर स्वर्ग मिलेगा यह स्पष्ट नहीं है. वैतरणी से थोड़ी ही दूरी पर मशहूर गोदावरी का भी उद्गम स्थल है, और नासिक के पास से निकलकर यह प्रायद्वीपीय भारत की सबसे लंबी नदी बन जाती है. इसको दक्षिण की गंगा भी कहते ही हैं. लेकिन, एक अदद गोदावरी नेपाल में भी है.
वैसे, बुंदेलखंड के चित्रकूट में एक गुप्त गोदावरी भी निकलती है और जो एक पहाड़ी गुफा के भीतर से पतली धारा के रूप में बहती है. गोदावरी की सहायक नदी है इंद्रावती, जो छत्तीसगढ़ में बहती है पर एक इंद्रावती नेपाल में भी मौजूद है.उत्तर प्रदेश की प्रदूषित नदियों में शर्मनाक रूप से टॉप पर रहने वाली गोमती नदी की बात करें तो एक गोमती त्रिपुरा में भी है जो वहां से आगे बांग्लादेश में घुस जाती है. इसी नदी पर त्रिपुरा में का सबसे बड़ा और बदनाम बांध बना हुआ है.
पंजाब की रावी का एक नाम इरावती भी है. लेकिन, एक और इरावती है. पर यह इरावती नमाइ और माली नदियों के मिलने से बनती है और म्यांमार में बहती है. यह हिमालयी हिमनदों से शुरू होती है. पंजाब वाली रावी पाकिस्तान होती हुई सिंधु में मिल जाती है और म्यांमार वाली इरावदी अंडमान सागर में. कावेरी नाम की भी दो नदियां हैं. एक तो वह मशहूर कावेरी नदी, जिसके पानी के लिए तमिलनाडु और कर्नाटक में रार मचा रहता है. जबकि दूसरी कावेरी पश्चिम की तरफ बहने वाली नदी नर्मदा की सहायक नदी है,
हांगकांग में सतलज, झेलम और व्यास नदियां मौजूद हैं. संभवतया, यह 1860 के आसपास हुआ जब हांगकांग में तैनात पंजाब के सिख सैनिकों ने वहां की नदियों के नाम अपने पसंद के रख दिए. हांगकांग की सबसे बड़ी ताजे पानी की नम भूमि लॉन्ग वैली को दोआब नाम दिया गया और यह वहां की सतलज और व्यास के बीच की भूमि है. शायद, इन छोटे मैदानों को देखकर सिख फौजियों को अपने वतन की याद आती होगी. “प्राचीन वैदिक लोग अपने साथ नाम लेकर चले थे. असली सरस्वती और सरयू नदियां (जिनका जिक्र रामायण में है, अफगानिस्तान और ईरान में थीं. असली यमुना फारस की मुख्य देवी थीं.”
जाहिर है, इतिहास के इस नए नजरिए के साथ भी देखना चाहिए.नदियों के नामों में वैदिक संस्कृत का प्रभाव स्पष्ट रूप से कर्नाटक में दिखता है जहां शाल्मला, नेत्रावती, कुमारधारा, पयस्विनी, शौपर्णिका, स्वर्णा, अर्कावती, अग्नाशिनी, कबिनी, वेदवती, कुमुदावती, शर्वती, वृषभावती, गात्रप्रभा, मालप्रभा जैसी नदियों के नाम मौजूद हैं. गुजरात की नदियों साबरमती और रुक्मावती का नाम याद करिए. कितने सुंदर और शास्त्रीय नाम हैं! लेकिन एक नदी वहां ऐसी भी है जिसका नाम है भूखी. एक अन्य नदी है उतावली. राजस्थान अलवर जिले में एक नदी का नाम जहाजवाली भी है.
कुछ नदियों के नाम भी वक्त के साथ बदले हैं जैसे, गोदावरी आंध्र प्रदेश में गोदारी कही जाने लगती है और पद्मा बांग्लादेश में पोद्दा. चर्मावती चंबल हो जाती है और वेत्रावती, कुछ नदियों के नाम में इलाकाई और भाषायी असर भी आता है. मसलन, तमिल और मलयालम में आर और पुझा (यानी नदी) कई नदियों के नाम में जुड़ा हुआ है. गौर कीजिए, चालाकुडी पूझा, पेरियार, पेंडियार वगैरह. इसी तरह भूटान, सिक्कम और तवांग इलाके में छू का मतलब नदी ही होता है. अब वहां की नदियों हैं, न्यामजांगछू या राथोंग छू. तो अब इसके आगे नदी शब्द मत लगाइए. क्योंकि पहले ही छू कहकर नदी कह चुके हैं. असम में भी नदियों के नाम के आगे कुछ खास शब्द लगाए जाते हैं, और वो हैं दि. दिहांग, दिबांग, दिखोऊ, दिक्रोंग आदि. बोडो में दि शब्द का मतलब होता है पानी और याद रखिए ब्रह्मपुत्र घाटी में सबसे पहले बसने का दावा भी बोडी ही करते हैं.
लेखक : पीयूष गुप्ता, सहायक वास्तविक समय सूचना विशेषज्ञ, राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन, जल शक्ति मंत्रालय
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