नैनीताल (हिमांशु जोशी): 03 जून 2018 में संयुक्त राष्ट्र ने साईकिल उपयोग को बढ़ावा देने के लिये पहली बार विश्व साईकिल दिवस मनाने की शुरुआत की थी। आज यह तीसरी बार मनाया जा रहा है।
इस बीच मुझे कुछ महीने पुराना किस्सा याद आ गया । कोरोना काल से पहले मुंबई से स्थान्तरित हो चंडीगढ़ आये अपने भाईसाहब से मेरी चंडीगढ़ के परिवहन साधनों पर चर्चा हो रही थी। चंडीगढ़ में मुंबई लोकल की तरह परिवहन का सस्ता और सुलभ साधन नही है। कार, स्कूटी के विकल्प पर विचार किया जा रहा था पर चीनियों से उपहार में आयी कोरोना महामारी ने देश की सभी योजनाओं की तरह हमारी भी इस योजना पर पानी फेर दिया। सार्वजनिक परिवहन में कोरोना संक्रमण के खतरे को देखते हुए काम पर जाने के लिये भाईसाहब ले आए एक चमचमाती नई साईकिल।
कोरोना काल न होता तो शायद उनकी इस पाषाण युग की पसंद का मैं जम कर उपहास बनाता पर वक़्त की नज़ाकत को भांपते हुए मुझे उनकी समझदारी से ईर्ष्या होने लगी। कोरोना से एकमात्र बचाव सामाजिक दूरी के लिये इससे अच्छा परिवहन साधन और कुछ हो ही नही सकता।
यूरोपीय देशों में 18वीं शताब्दी के दौरान जन्म ले चुकी साईकिल का रखरखाव बहुत ही आसान है। साईकिल की चेन में समय-समय पर तेल डालते रहने, पहियों में समय से हवा भरते रहने, समय-समय पर साईकिल के नट बोल्टों को कस कर, उसके ब्रेकों का ध्यान रख, समय से साईकिल की सफाई कर उसे जंग मुक्त रख कर और पहिये का पंक्चर बनाने का ज्ञान रख साईकिल को लम्बे समय तक प्रयोग में लाया जा सकता है।
मोटरसाईकिल, कारों के दाम समय के साथ आसमान छूने लगे पर साईकिल अब भी बेहद ही किफायती दाम में मिल जाती है। गरीब इसे लेकर घरेलू सामान बेचने के लिये फेरी लगाकर या इससे सम्बन्धित कोई अन्य स्वरोज़गार अपना कर अपने परिवार का भरण-पोषण आसानी से कर सकता है। सुबह फैक्ट्री जाने के लिये साईकिल की सवारी करते सड़कों पर लम्बी श्रृंखला में जाते मज़दूरों के लिये उनका यह वाहन वरदान है।
लॉकडाउन में हम यह देख चुके हैं कि बिना वाहनों और फैक्ट्रियों के चले यह हवा कितनी शुद्ध रहती है। साईकिल के प्रयोग से पृथ्वी के लिये गम्भीर होते जा रहे वायु प्रदूषण की इस समस्या पर लगाम लगायी जा सकती है। बुज़ुर्ग, जवान और बच्चें हर आयु वर्ग के लोग साईकिल की सवारी कर खुद को चुस्त और दुरस्त रख सकते हैं। साईकिल की सवारी मनुष्य को मानसिक और शारीरिक रूप से मज़बूत बनाने का कार्य करती है। इसमें अन्य व्यायामों की तरह ना चोटिल होने का डर है औऱ ना ही इसे चलाने में किसी विशेष तकनीकी ज्ञान की जानकारी की आवश्यकता। रोज़ाना साईकिल चलाने से शरीर की मांसपेशियां मज़बूत होती हैं और शरीर में वसा भी नही बनता। उच्च रक्तचाप और ह्रदय रोगों को साईकिल की सवारी पीछे छोड़ देती है। शोध में सामने आया है कि निरंतर साईकिल चलाने वालों को मधुमेह और ह्रदयाघात का खतरा अन्य लोगों से कम रहता है।
यह सच है कि साईकिल को वक़्त ने चुनौती दी है। सड़क पर दोड़ती बसें, ट्रक, कार, महंगी मोटरसाईकिल साईकिल चलाने वाले को रफ़्तार में कहीं पीछे छोड़ देती हैं। इस तेज़ रफ़्तार के साथ चल रही ज़िंदगी में हर किसी को वक्त की कमी है। मनुष्य ने विकास के पीछे अंधी दौड़ लगायी हुई है। उसमें साईकिल के सफ़र में लगता ज्यादा समय मनुष्य को चुभने लगता है। पर कोरोना ने दिखा दिया है कि कैसे प्रकृति मनुष्य की रफ़्तार को कभी भी रोक सकती है और वैसे भी मेट्रो स्टेशनों की भीड़, बसों की दमघोंटू भीड़ और असुरक्षित तेज़ दौड़ती मोटरसाईकिलों से दूर एक साईकिल के सफ़र का आनन्द ही कुछ और है। साईकिल चलाते ना ऑटो का कानफोड़ू संगीत है ना एक दूसरे को घूरते सफ़र करते लोगों के बनावटी चेहरे। वहाँ है तो सिर्फ आपका सुधरता स्वास्थ्य और आपकी खुद से होती बात जो आज के सामाजिक परिदृश्य में कहीं खो सी गयी है।
साईकिल सवारों के लिये मुख्य सड़क से अलग लेन का निर्माण इस सफर को सड़क पर तेज़ दौड़ते वाहनों से सुरक्षित बना सकता है। साईकिल सवारी के दौरान हेल्मेट का प्रयोग अनिवार्य करना चाहिए और इस विश्व साईकिल दिवस के दिन सरकार को बिना किसी देरी के साईकिल की सवारी को शान की सवारी बनाने पर गम्भीरता से विचार करना शुरू कर देना चाहिये।
लेखक हिमांशु जोशी, शोध विद्यार्थी
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