चमोली । कोरोना संक्रमण के चलते हुए लाॅक डाउन के कारण इस बार पहाड़ी क्षेत्रों में पैदा होने वाला औषधीय गुणों वाला काफल पहाड़ के बाजारों से नदारत हो गया है। जिससे काफल के शौकीन और विपणन करने वाले काश्तकारों में मायूसी साफ देखी जा सकती है।
बता दें कि काफल पहाड़ के अन्य जिलों की भांति चमोली जिले में भी काजिले में अच्छी मात्रा में उपलब्ध होता है। लेकिन इस वर्ष कोरोना के संक्रमण चलते हुए लॉकडाउन के कारण काफल ग्रामीण क्षेत्रों से बाजारों तक नहीं पहुंच पा रहा है। जिससे यह औषधीय फल इन दिनों जंगलों में ही बेकार हो रहा है। जबकि बीते वर्षों तक ग्रामीण काफल का बडे़ पैमान में पर यात्रा मार्गों सहित खुले बाजारों में विपणन कर अच्छी आय अर्जित करते थे। लेकिन इस वर्ष काफल के विपणन से आय अर्जित करने वालों में मायूसी है। स्थानीय निवासी अर्जुन सिंह, तेजपाल और सतेश्वरी का कहना है कि बीते वर्षों तक काफल का विपणन कर वे प्रतिदिन सात से आठ सौ रुपये तक की आय अर्जितकर लेते थे। इस वर्ष शीतकाल में अच्छी बर्फवारी के चलते अच्छी मात्रा में काफल की उत्पादन हुआ है। लेकिन लॉकडाउन के चलते काफल का दोहन और विपणन नहीं हो पा रहा है।
औषधीय गुणों युक्त है काफल
उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में समुद्र तल एक हजार से दो हजार मीटर तक पाई जाने वाले काफल का वानस्पतिक नाम माइरिया स्कूलेंटा है। जिसका उपयोग आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में एंटी ऑक्सीडेंट के रुप में किया जाता रहा है। वहीं जानकारों के अनुसार डायरिया, अल्सर, नाक, कान और गले से संबंधित रोगों के उपचार में भी काफल उपयोगी है। काफल को पाचन शक्तिवर्द्धक भी बताया जाता है। वनस्पति विज्ञानियों के अनुसार काफल के फल के साथ ही पत्ती, तना, छाल और जड़ें भी औषधीय गुणों को लिये होती हैं।
“काफल का आयुर्वेद में सर्वाधिक उपयोग एंटी ऑक्सीडेंट के रुप में किया जाता है। वहीं वर्तमान में वैज्ञानिकों ने काफल से 50 से अधिक विभिन्न दवाईयों में उपयोग आने वाले कैमिकलों को खोज निकाला है। लेकिन इसके पौधे की प्रवृत्ति के चलते इसका अनियंत्रित दोहन पौधे के भविष्य के लिये खतरा बन रहा है। वन विभाग को इसके संरक्षण के लिये विशेष कार्य योजना तैयार कर इस औषधीय महत्व के पौधे को बचाने की आवश्यकता है।”
डा. विनय नौटियाल, वनस्पति विज्ञानी, श्रीदेव सुमन विवि कैम्पस गोपेश्वर।
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