नैनीताल (हिमांशु जोशी): महात्मा गाँधी ने कहा था कि जिस दिन से एक महिला रात में सड़कों पर स्वतंत्र रूप से चलने लगेगी, उस दिन से हम कह सकते हैं कि भारत ने स्वतंत्रता हासिल कर ली हैं।
देख देख।
कभी यहाँ भी देख लिया कर।
इसको तो।।।।।।।।।
शायद गांधी जी के सपनों के भारत में वो स्वतन्त्रता अब भी नही मिली है।
अमृतसर रेप आरोपी पुलिस के छापे में पकड़ा गया। उत्तराखण्ड के मुनस्यारी में 17 साल की लड़की ने बार-बार बलात्कार से तंग आकर खुद को आग लगाकर आत्महत्या का प्रयास किया। हैदराबाद रेप पीड़िता को न्याय मिल गया, वर्ष 2012 में पुरे भारत को हिलाने वाले निर्भया कांड के आरोपियों को लंबे इंतजार के बाद फांसी के तख्ते पर लटका दिया गया, उन्नाव रेप पीड़िता न्याय के लिये लड़ते हुए जला दी गयी।
आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2013 जिसे निर्भया एक्ट भी कहा जाता है के रूप में मज़बूत बलात्कार विरोधी कानून बनाया गया। रॉयटर्स द्वारा किए गये एक सर्वे के अनुसार भारत महिलाओं के रहने के लिये सबसे खतरनाक देश है। महिलाओं को देवी की तरह पूजे जाने वाले देश में ऐसा क्या हो गया है जिससे महिलाओं को हवस मिटाने वाले सामान की तरह देखा जाता है। अगर बिना जोर जबरदस्ती के काम हो गया तब तो ठीक है नही तो एक लाश को नोचकर भी बलात्कारियों की हवस शांत नही होती। महिला के कपड़ों को देखकर उसके चरित्र का अंदाज़ा लगा लिया जाता है।
बलात्कार को रोकने और उन्हें सजा दिलाने के लिए अनेक संस्थाएं, संगठन इसके लिये संघर्षरत हैं। शायद बलात्कार की सजा और भी कठोर हो जाए, इसे रोकने के लिये कड़े से कड़े कानून भी बन जाये पर क्या उससे ऐसे लोग खत्म हो जायेंगे जिनके मन में एक अजन्मा बलात्कारी पल रहा है? लोग राह चलती महिला को ऊपर से नीचे घूरना बन्द कर देंगे? माता-पिता अपनी बेटियों को रात में अकेले सफर पर भेजने से पहले डरेंगे नही? अजन्में बलात्कारी को समाज से मिटाने के लिए सबसे पहले उस सोच को समाप्त करना जरुरी है जिससे एक बलात्कारी जन्म लेता है। एक भाई, बेटा, पति कैसे बलात्कारी बन जाता है और उसकी सोच इतनी विकृत कैसे हो जाती है यह जानना जरूरी है।
बलात्कार की घटनाओं की संख्या क्यों कम नही ही रही है इसका कारण जानने के लिये हमें समय में थोड़ा पीछे जाना होगा जब सस्ती मैगज़ीनें बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण अभिनेत्रियों के अश्लील चित्र छापने लगे। फिल्मों में महिलाओं को सिर्फ मनोरंजन के साधन के रूप में पेश किया जाने लगा। जनसंचार के लगभग सभी साधनों में कामुकता परोसी जाने लगी। ऐसे पुरूष जो किसी प्रकार की शिक्षा ग्रहण नही करते उनके लिये यही साहित्य सब कुछ है। मानव जो देखता, सोचता, पढ़ता है वह वही करना चाहता है , मानव मन कुछ इस प्रकार का ही होता है।
नाटकों, डिस्को, बार में अश्लीलता शामिल हो गयी। जो दिखता है वही बिकता है के सिद्धांत पर शरीर के प्रदर्शन को पैसे कमाने का जरिया बना दिया गया। भारतीय अपनी संस्कृति, संस्कार भूल कर पश्चिमी संस्कृति को अपनाने लगे। इंटरनेट की क्रांति या यूँ कहे सस्ते डाटा की शुरुआत से सब कुछ बदल गया। शिक्षण सम्बन्धी साइटों, समाचारों से जुड़ी साइटों की जगह पोर्न साइटों ने ले ली। सस्ता मिलता डाटा सिर्फ पोर्न से जुड़ी सामग्रियों में खर्च होने लगा।
हमारे शिक्षा तंत्र में यौन शिक्षा की कमी ने युवाओं को रास्ते से भटका दिया है। व्यसनी भोजन, मदिरा प्रेम अपराध और बलात्कार को जन्म देने के लिये उत्तरदायी है। मोबाइल के बहुत से एप्लिकेशनस अश्लीलता को परोसने के लिये जिम्मेदार हैं। इन एप्स की पहुंच हर उम्र के उपयोगकर्ता तक है चाहे वह उसे प्रयोग करने लायक है भी या नही। सस्ते इंटरनेट और युवा वर्ग प्रधानता की वजह से भारत इन विदेशी कम्पनियों के लिये एक बहुत बड़ा बाज़ार है। कई शोधों से यह सिद्ध हुआ है पुरुषों में मन में जन्म ले रही कामोतेजना ही उसके द्वारा बलात्कार करने का कारण बनती है।
भारत में पुरुषवादी समाज है जहाँ महिला नाम के आगे पति का नाम लगाती है और पूरी ज़िंदगी खुद के नाम को भूल जाती है, ऐसे समाज में कुछ पुरुष खुद को महिलाओं से श्रेष्ठ समझने लगते हैं उनके लिये महिला सिर्फ यौन इच्छा तृप्त करने का साधन होती हैं। यह वही पुरुष होते हैं जिन्हें बचपन से कभी महिलाओं का सम्मान करना नही सिखाया जाता। घर की महिलाओं को उनकी सेवा में लगाया जाता है ताकि वह खुद को पुरुष समझ सके । पोर्न साइटों पर बैन, टेलीविजन में अश्लीलता पर रोक, यौन शिक्षा , बच्चों के प्रथम शिक्षक उनके माता- पिता द्वारा बचपन से ही महिलाओं का सम्मान करना सिखाना शायद कुछ ऐसे उपाए हैं जो रेप पर एक सख्त कानून बनने से पहले ही एक अजन्मे बलात्कारी को मार सकते हैं।
“स्त्री और पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं। आपसी सहयोग के बिना दोनों का अस्तित्व असंभव है – महात्मा गांधी”
लेखक : हिमांशु जोशी, पत्रकारिता शोध छात्र
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