- मनोज श्रीवास्तव
देहरादून : ड्रग एडिक्शन के छुटकारा में पीड़ित व्यक्ति से अधिक उसके दोस्तों और परिवार की भूमिका अधिक होती है। अन्य शब्दों में ड्रग लेने वाले व्यक्ति की काउंसिलिंग करने से अधिक आवश्यकता है पहले उनके घर वालों की काउंसिलिंग किया जाये। नशे की चपेट में केवल वही व्यक्ति नहीं आता है बल्कि पूरा परिवार चपेट में आ जाता है। इसके पीछे पैरेन्टस द्वारा बच्चों की सही देखभाल न करना और सच्चा प्यार नहीं दे पाना होता है। झूठे दिखावे के प्यार में हम बच्चों को जो चाहिए देते जाते हैं, गाड़ी चाहिए गाडी दे देते हैं। मोबाईल चाहिए मोबाइल दे देते हैं। और वही बच्चा आज ड्रग लेकर एकांत कमरे में पड़ा रहता है।
ड्रग्स से छुटकारे के लिये केवल दवा या डाक्टर ही महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि फैमिली और फ्रेंड की थेरेपी अधिक महत्वपूर्ण है। नशा छूटने के बाद जब व्यक्ति घर या ऑफिस पहुंचने पर परिवार के लोग अथवा दोस्त यदि सहयोग नहीं करते हैं तब उस व्यक्ति में पुनः नशे की लत लगने की संभावना बढ़ जाती है। जैसे परिवार के लोग व्यंग करते हुए बोलते हैं, देखो आ गये हैं, अब देखते हैं कितनी देर तक इनका नशा छूटा रहता है।
नशे छुड़ाने के लिये तरह-तरह के मानसिक उपाय की चर्चा की जाती है। वास्तव में किसी व्यक्ति को नशे की जगह उसे नशे का विकल्प मिलना चाहिए। नशा अच्छे कार्य का भी हो सकता और बुरे कार्य का भी। इसलिए चेक करना चाहिए कि जिस सकारात्मक बात में उस व्यक्ति की श्रद्धा है, उसका आधार लेकर उसकी तरफ मोड़कर नशे को छुडाया जा सकता है। लाजिक देते समय व्यक्ति परिस्थिति व स्थान को देखकर ही देना चाहिए अन्यथा दिया गया लाजिक व्यर्थ रहेगा।
नशे का रूप तम्बाकू, शराब, हार्ड ड्रग के अतिरिक्त इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस का भी हो सकता है। सभी के लिए अलग-अलग प्रकार की कांउसलिंग करने की जरूरत होती है। इसके लिए दवा के साथ बिहेविरल थैरेपि की आवश्यकता पड़ती है। कौन सा प्वाइंट बुद्धि स्वीकार कर ले जिससे नशा छूट सकता है इस पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। इसलिए कहा जाता है कि नशा का इलाज केवल दवा ही नहीं है।
जिस व्यक्ति को नशे की लत होती है उसके अन्दर एक बायोलाजिकल क्लाक बन जाती है जो उसकी बाडी को सिग्नल देने लगती है, बाडी ड्रग का डिमांड करने लगती है अर्थात अपना कोटा मांगने लगती है। वास्तव में ऐसे लोग दारू नहीं पीते है बल्कि बीवी बच्चों का खून पीते हैं। यह लाजिक देते हुए नशे की लत वाले व्यक्ति से पूछना चाहिए कि तुम अपने बीवी बच्चों से प्यार करते हो या नशे से।
महत्वपूर्ण बात यह है कि 80 प्रतिशत लोग नशे को छोड़कर पुनः पकड लेते हैं। शुरू में ये कभी-कभी लेने वाले होते हैं। धीरे-धीरे साल में होने वाली एक बार की पार्टी महीने में और रोजाना में बदल जाती है। नशे को छोड़ने में इच्छा शक्ति का बहुत बड़ा योगदान होता है। एक शोध में पाया गया कि 40 साल से प्रतिदिन 25 पान दो पैकेट सिगरेट और गुटका खाने वाला व्यक्ति एक दिन के संकल्प में ही नशे को छोड़ दिया। इसी प्रकार कुछ लोगों ने 7 दिन में नशे को छोड़ा।
नशा छोड़ना इतना आसान नहीं होता है। नशा छोड़ने पर शरीर को तकलीफ होती है नींद नहीं आती है। बैचेनी होती है, गुस्सा आना बढ़ जाता है और हाथ-पैर कांपने लग जाता है। इस प्रकार के दबाव से पुराने नशे के मार्ग पर पुनः चलने की संभावना बढ़ जाती है। इसके पीछे प्रमुख कारण यह है कि एडिक्सन हमारे ब्रेन की बीमारी है। एडिक्सन के बाद हमारे ब्रेन पैटर्न में बदलाव हो चुका होता है। जिसे चेंज करने में बहुत अधिक समय लगता है।
नशे छोडने के लिए स्ट्रेस मैनेजमेंट थेरेपी का भी प्रयोग करना चाहिए। अपने रिलेसनशिप को मैंटेन करने का प्रयास करना चाहिए। नशे की चीज सामने आते ही स्पष्ट रूप से मना करने की छमता विकसित करना चाहिए। पूरे कांफिडेंस से अपने सीनियर को अपने बॉस को मना कर देना चाहिए। ऐसा नहीं सोचना चाहिए कि बॉस की नजरों से गिर जाउंगा। अपने बॉस को अपने दोस्तों को बता देना चाहिए कि इस नशे के कारण मेरा परिवार चला गया, मेरा स्वास्थ्य खराब हो गया। दिया गया एक पैग अनेक पेग में बदलता गया।
बॉस से यह भी कह दें कि हमको डाक्टर ने स्पष्ट लेने से मना किया है। कह दिया इसकी जगह कोल्ड ड्रिंक ले लूंगा। इसके लिये ना कहने की इच्छा शक्ति विकसित करनी होगी। कहा जाता है कि खाली दिमाग शैतान का है इसलिए अपने को बिजी कर लें। अच्छा है कि अपनी हॉबी को जागृत कर लें। प्रायः व्यक्ति को एडिक्शन के साथ डिप्रेसन की बीमारी भी होती है। इसलिए जरूरत के समय सलाह के अनुसार डिप्रेसन की दवा भी ले लेनी चाहिए।
लेखक : मनोज श्रीवास्तव, नोडल अधिकारी, कुम्भ मेला 2021, हरिद्वार