- मनोज श्रीवास्तव
देहरादून : ज्ञान का अनुभव हो जाना ही सम्पूर्णता की निशानी है। अनुभव के पूर्व ज्ञान केवल जानकारी है। यह स्थिति आने में कभी शहर, कभी मुश्किल, कभी सैकेंड में, कभी मिनट में या कभी बहुत ज्यादा समय लगता है। सहज अनुभव होना सम्पूर्णता की परख है। कार्य के लगन में मगन रहना, दिन रात सर्विस के प्लान बनाने में व्यस्त रहना, इसके फलस्वरूप प्राप्ति का परिणाम स्वयं में खुशी का अनुभव है। खुशी का अनुभव समर्थ बना देता है।
दिन रात की मंजिल को सामने रखते हुये सम्पूर्ण बनने की आशा रखते हुये। समय ज्यादा और प्राप्ति कम अनुभव नहीं होने देना है। किसी समस्या का समाना करने में ही ज्यादा समय लगाने वाले सहज को मुश्किल बना लेते है, लेकिन हमारा लक्ष्य मुश्किल को सहज बनाना है।
जो जानना था, जान लिया, जो पाना था वो पा लिया, अब बाकि कुछ भी न रहा। उस स्थिति को पा लिया, मिल रहा है और निश्चय है कि पा ही लेंगे, इस स्थिति को चेक करना है। खुशी के झूले में झूलते रहने वाले बीच-बीच में झूले को तेज झूलाने के लिए किसी आधार की आवश्यकता पड जाती है, प्रश्न है वह आधार क्या है। यह आधार हमारी सेवा के प्रति हिम्मत और उल्लास दिलाने वाला है, इस दौरान बहुत अच्छा और बहुत अच्छा कहने वाला है, नही तो खुशी का झूला झूलते-झूलते रूक जाता है, हमें रूके हुये को फिर से चलाना है। इसे आटोमेशन मोड में रखना है।
विजय के आधार पर हर्षित रहते है, परन्तु कभी-कभी बार बार होने वाले यु़द्व की परिस्थिति में थकावट का अनुभव करने लगते है। किसी न किसी साधन के सहारे, स्वयं को थोडा समय के लिए खुशी का अनुभव करने वाले, कभी खुश रहेंगे कभी शिकायत करेंगे।
क्या करूं, कैसे करूं, कर तो रहा हूं, इतनी मेहनत कर तो रहा हूं, मेरी तकदीर ही ऐसी है, कभी यह होता है कभी वह होता है, लेकिन सदा एक रस में नहीं रहता है। बुद्धियोग द्वारा सदा विजयी स्वरूप, अतीन्द्रिय सुख के झूले में प्राप्ति स्वरूप बनने वाले बन जाते है।
अव्यक्त बाप-दादा, महावाक्य मुरली 09 दिसंबर 1975
लेखक : मनोज श्रीवास्तव, सहायक निदेशक सूचना एवं लोकसम्पर्क विभाग उत्तराखंड